उत्पादन घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 %– रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स

उत्पादन घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 %– रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने कहा कि भारत को अपनी चपेट में ले चुकी कोविड-19 की दूसरी लहर से अनिश्चितता आई है और इससे भारत की आर्थिक रिकवरी प्रभावित होगी। एसऐंडपी का कहना है कि अगर सरकार संक्रमण को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाने को बाध्य होती है तो इससे वित्त वर्ष 2021-22 के 11 प्रतिशत वृद्धि दर के पहले के अनुमान में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है।

देश पहले ही उत्पादन में स्थाई नुकसान का सामना कर रहा है और महामारी के पहले की स्थिति में पहुंचने की कवायद कर रहा है, जिससे संकेत मिलते हैं कि दीर्घावधि उत्पादन घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 प्रतिशत हो सकता है।

इसके साथ ही जिंदगियों का हो रहे नुकसान और उल्लेखनीय मानवीय चिंताओं के बीच कोरोनावायरस महामारी ने कारोबारी व्यवधान की संभावना बढ़ा दी है। रेटेड पोर्टफोलियो की ऋणात्मक क्रेडिट की संभावना सीमित है, लेकिन अस्थिरता की स्थिति है।

रोजाना संक्रमण के मामले 3 लाख बढ़ रहे हैं ऐसे में देश के स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ा है। इसमें कहा गया है कि भारत में संक्रमण के ज्यादा मामले बढऩे से अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में भी इसके प्रसार का खतरा हो सकता है। सरकार के आक्रामक राजकोषीय रुख को बनाए रखने के लिए मजबूत आर्थिक वृद्धि अहम होगी, जैसा कि हाल के भारत के बजट में पेश किया गया है। साथ ही उच्च वृद्धि से ही जीडीपी की तुलना में ज्यादा कर्ज की स्थिति में भी स्थिरता आएगी।

इसमें कहा गया है कि संकट के बाद रिकवरी सॉवरिन क्रेडिट रेटिंग के हिसाब से अहम है। सरकार ने कोविड-19 से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर बचाव के उपाय किए हैं। लॉकडाउन की वजह से रोजमर्रा का कामकाज और संबंधित आर्थिक व्यवहार प्रभावित हुआ है, जिससे कुछ कॉर्पोरेट क्षेत्रों की कमाई और राजस्व पर असर पड़ सकता है। यह खासकर उन क्षेत्रों के लिए सही होगा, जो आवाजाही को लेकर बहुत संवेदनशील हैं, जैसे कंज्यूमर रिटेल और एयरपोर्ट। बैंकों का व्यवस्था संबंधी जोखिम उच्च स्तर पर बना हुा है। कर्जदाताओं की संपत्ति की गुणवत्ता पर दबाव है और 2021-22 में भी मुनाफे पर दबाव बना रहेगा। भारत में मार्च 2021 तक तेज आर्थिक रिकवरी देखी गई, जिसकी वजह से गैर निष्पादित कर्ज का दबाव कम हुआ। सरकार की ओर से उठाए गए कदमों से मदद मिली।

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