- July 18, 2016
वोट की राजनीति और उत्तरप्रदेश
सबसे पहले कांग्रेस का मुख्यमंत्री उम्मीदवार अयोग्य है । राज बब्बर और न ही शीला दीक्षित को उत्तरप्रदेश के जमीनी हकीकत का पता है ये बात और है कि बब्बर उत्तर प्रदेश में टुंडला के पैदाईश हैं साथ ही आगरा, फिरोजाबाद से सांसद भी रह चुके हैं लेकिन उनको फिल्मी- ईल्मी के सिवाय राजनीतिक ईल्म नहीं है क्योकि वे पांच रुप्ये में भरपेट भोजन का अनाप सनाप बयान दिया था . हां ! नादिया जहीर और स्मिता पाटील के पति के रुप में हिंदू – मुस्लिम नेतृत्व के रुप में देखे जा सकते हैं । अब प्रश्न है कि मतदाता किस रुप में उनको देखेगें !
शीला दीक्षित पंजाबीमूल (कपूरथला ) और उन्नाव की बहू हैं इससे पंजाबी और ब्राह्मण- हिंदूओं के वोट कि अपेक्षायें की गई है .लेकिन दिल्ली के रानी के रुप में बयान की हवालात तथा करतूतों के कारण उत्तरप्रदेश अंगीकार करे, यह असंभव है ! क्योंकि चुनाव में कब्र खोदने का काम चरम सीमा पर पहुंच जाता है अगर अलग -अलग चुनाव लडा गया तो कांग्रेस इस कब्र में दफन हो सकती है । अर्थात 50 सीटों के आंकडा पार करना असंभव है। कांग्रेस को जितना मिलेगा वह भाजपा और सपा के लिये सरदर्दी है ।
विधान सभा में सपा की जो गिरती साख है, वह है अपराध और एकपक्षीय मुस्लिम राग। जिसे मुलायम सिंह बार- बार दुहराते हैं। जिसके कारण जो सपा के ख़ास है, विदक रहे हैं। सपा जो पिछले चुनाव में मुस्लिमों से जो वादा किया था। उसने पूरी नही की। यह वादा पूरा करना आकाश को सिने के जैसा होगा। इससे मुस्लिम ठगा हुआ महसूस करते हैं ।
बसपा सत्ता में इसलिए आने वाली है की उसके पूर्व शासन से मुस्लिम और एकपक्षीय मतदाता संतुष्ट नहीं है तो रुष्ट भी नही है। सपा से बेहतर विकल्प के रुप में हैं ।
बसपा को बहुत ही संभलकर चलने कि जरुरत है उसे कोई भी कदम उठाने से पहले परिणाम को आकलन करना है । सत्ता के लिये टोपी बदलने कि बाढ सी आयी है इससे बसपा को सतर्क होना पडेगा।
कांग्रेस का हिन्दुओं में कोई साख नहीं है , क्योंकि उसे जो समय मिला वह लूट -खसोट और धर्मनिरपेक्षता जैसे संगीन खेलों में बाँट दिया। अब मतदाता धर्मनिरपेक्षता को सिर्फ मुस्लिमपेक्षता के रुप में देखते हैं ।
मुस्लिम अब बहुत ही संवेदनशील और राजनीतिक रूप से जागरूक हो चुके हैं। उनके समझ में आ गई है की भारत और प्रदेश के विकास में उसी तरह जिम्मेदार है जिस तरह हिन्दू।
सपा (मुलायम सिंह) और कांग्रेस के द्वारा जो ब्लैकमेल नीति आज तक अपनाई गई है , वह अब मुस्लिमों को समझ में आ गई है।
प्रमाण के तौर पर ! 2014 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने वही भूमिका निभाई जो भूमिका इंदिरा गांधी ने 1980 के चुनाव में अपनाई थी —— दिल्ली में इम्माम से देश के मुस्लिमों को कांग्रेसियों के चुनने का फतवा जारी करवाईं थी।
1980 और 2014 के मुस्लिमों में बहुत बड़ा मानसिक परिवर्तन हुआ है।
फिर भी उत्तरप्रदेश में चुनाव पर मुस्लिमों का बरदहस्त है तथा इस मोटे वोट को कोई गवाना नही चाहेंगे।
अगर बीजेपी हिन्दुओं को एकत्रित करने में सफल रहा तो वह सत्ता के समीप पहुँच सकती है क्योंकि अधिकाँश जागरूक मुस्लिम बीजेपी से भी सहमत है।