• April 30, 2022

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्वीकृत 1,104 पदों में से 388 रिक्त

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्वीकृत 1,104 पदों में से 388 रिक्त

नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण ने न्यायिक रिक्तियों के मुद्दे पर प्रकाश डाला और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से न्यायाधीश- जनसंख्या अनुपात में सुधार करने का आग्रह किया.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आज की स्थिति में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्वीकृत 1,104 पदों में से 388 रिक्त हैं. यहां विज्ञान भवन में मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में उन्होंने कहा कि न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कारक न्यायिक रिक्तियों को भरना और न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में वृद्धि करना है.

उन्होंने कहा, ”मेरा पहले दिन से, न्यायिक रिक्तियों को भरने का प्रयास रहा है. हमने पिछले साल विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों के लिए 180 सिफारिशें की हैं. इनमें से 126 नियुक्तियां की गई हैं. मैं नामों को मंजूरी देने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद देता हूं.”

उन्होंने कहा, ”हालांकि, 50 प्रस्तावों को अभी भी भारत सरकार के अनुमोदन की प्रतीक्षा है. उच्च न्यायालयों ने भारत सरकार को लगभग 100 नाम भेजे हैं. वे अभी तक हम तक नहीं पहुंचे हैं.

डेटा से पता चलता है कि रिक्तियों को भरने के लिये न्यायपालिका की तरफ से गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं. ” उन्होंने मुख्यमंत्रियों से कहा कि व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को जिला न्यायपालिका को मजबूत करने के प्रयासों में ”पूरे दिल से” सहयोग दें.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”जब 2016 में हमारा पिछला सम्मेलन हुआ था तो देश में न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 20,811 थी. अब, यह 24,112 है, जो छह वर्षों में 16% की वृद्धि है.

दूसरी ओर, इसी अवधि में, (मुकदमों की)लंबित संख्या जिला अदालतों में 2 करोड़ 65 लाख से बढ़कर 4 करोड़ 11 लाख हो गई है, जो कि 54.64 फीसदी की वृद्धि है. यह डेटा दिखाता है कि स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि कितनी अपर्याप्त है.”उन्होंने कहा कि जब तक बुनियाद मजबूत नहीं होगी, ढांचा कायम नहीं रह सकता.

उन्होंने कहा, ”कृपया अधिक पद सृजित करने और उन्हें भरने में उदार रहें, ताकि हमारे न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात की तुलना उन्नत लोकतांत्रिक देशों के साथ की जा सके. स्वीकृत संख्या के अनुसार, हमारे पास प्रति 10 लाख जनसंख्या पर लगभग 20 न्यायाधीश हैं, जो बेहद से कम हैं.”प्रधान न्यायाधीश ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के बयान का जिक्र करते हुए रिक्तियों और लंबित मामलों के मुद्दे पर प्रकाश डाला.

वेणुगोपाल ने कहा था कि चार करोड़ मामले निचली अदालतों में जबकि 42 लाख दीवानी मामले और 16 लाख आपराधिक मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं.

उन्होंने कहा था, ”आप कैसे उम्मीद करते हैं कि हम लंबित मामलों को कम कर पाएंगे.‘’

Related post

क्या भारत एक स्वस्थ युवाओं का देश भी है?

क्या भारत एक स्वस्थ युवाओं का देश भी है?

डॉक्टर नीलम महेंद्र : वर्तमान  भारत जिसके विषय में हम गर्व से कहते हैं कि यह…
नेहरू से हमें जो सीखना चाहिए

नेहरू से हमें जो सीखना चाहिए

कल्पना पांडे————-इतने सालों बाद हमे शर्म से ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि धार्मिक आडंबरों, पाखंड…
और सब बढ़िया…..!   अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

और सब बढ़िया…..! अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

अतुल मलिकराम ——– सुख और दुःख, हमारे जीवन के दो पहिये हैं, दोनों की धुरी पर…

Leave a Reply