- October 31, 2015
उच्चतम न्यायालय में अपील :: बिजली वितरण कंपनियों की सी0ए0जी0 से जांच कराने के फैसले निरस्त :- दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बिजली वितरण कंपनियों की भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) से जांच कराने के आम आदमी पार्टी सरकार के फैसले को आज निरस्त कर दिया। अदालत के इस फै सले से बिजली वितरण कंपनियों को बड़ी राहत मिली है।
दिल्ली में परिचालन करने वाली तीनों निजी डिस्कॉम ने अदालत में कहा था कि उनका सीएजी ऑडिट नहीं हो सकता, क्योंकि वे निजी कंपनियां हैं। दिल्ली में रिलायंस पावर प्रवर्तित बीएसईएस यमुना पावर (बीवाईपीएल) और बीएसईएस राजधानी पावर (बीआरपीएल) और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रिब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल) बिजली वितरण के कारोबार से जुड़ी हैं। इन तीनों कंपनियों में दिल्ली सरकार की 49 फीसदी हिस्सेदारी है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऑडिट का निर्देश सीएजी कानून की धारा 20 (1) के तहत जनहित में नहीं है। इससे शुल्क निर्धारण पर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि शुल्क दिल्ली विद्युत नियामक आयोग द्वारा तय की जाती है। और नियामक के पास जरूरत पडऩे पर डिस्कॉम के खातों की जांच का अधिकार है।
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद केजरीवाल ने लिखा है कि दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश दिल्ली के लोगों के लिए अस्थायी झटके की तरह है। दिल्ली सरकार जल्द ही इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करेगी। उन्होंने कहा, ‘मैं दिल्ली के लोगों को सस्ती बिजली देने के लिए प्रतिबद्ध हूं और इसकी लड़ाई जारी रहेगी।’
पिछले साल दिल्ली में सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने तीनों कंपनियों के खातों की सीएजी जांच कराने का आदेश दिया था। आप ने अपने चुनावी वादों में कंपनियों के खातों की जांच कराने का वादा किया था, क्योंकि उनका आरोप था कि वे अपनी लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही हैं।
अदालत ने दिल्ली सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि डीईआरसी को मजबूती प्रदान करने के बजाय, दिल्ली सरकार ने सीएजी जांच का आदेश देकर भ्रमित करने की कवायद की है, जबकि ऐसे ऑडिट का कोई कानूनी आधार नहीं है। सीएजी रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने से पहले ही मीडिया में आ चुकी थी।
रिपोर्ट के मसौदे में दिल्ली की तीनों डिस्कॉम पर बकाये को बढ़ाकर दिखाने का आरोप लगाया गया था। बीआरपीएल और बीवाईपीएल ने सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती दी थी। उन्होंने याचिका में सीएजी से गणना की विधि और घाटे के ब्र्रेक-अप के विवरण की मांग की।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को इस रिपोर्ट के आधार पर कोई कार्रवाई करने से रोक दिया था। उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि सीएजी रिपोर्ट का तीनों डिस्कॉम के परिचालन से कोई संबंध नहीं है। अदालत ने कहा, ‘सीएजी द्वारा डिस्कॉम के खातों की जांच का निर्देश दिया गया जबकि सीएजी की रिपोर्ट से शुल्क पर कोई असर नहीं पडऩा है, ऐसे में इससे जनहित का मामला साबित नहीं होता है।’