ई-कचरे के निपटान को लेकर उपेक्षित नजरिया –एस० बाबू

ई-कचरे के निपटान को लेकर उपेक्षित नजरिया –एस० बाबू

आये दिन लाखों मैट्रिक टन कचरा ऑफिस, फैक्ट्रीज तथा अन्य व्यवसायिक संस्थानों से उत्पन्न हों रहा हैं| हमारे घरों और रहने की तमाम व्यवस्थाएँ भी इससे अछूती नहीं हैं| ये तमाम कचरा हमारी जरूरतों से उत्पन्न होता हैं और जरूरते एक समय के बाद पुरानी, ख़राब या अप्रासंगिक हों जाने के कारण एक कचरे का रूप इख़्तियार करती हैं|
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वे सभी वस्तुएं जिनकी हमको या हमारे संस्थानों को एक निश्चित उपयोग के पश्चात कोई आवश्यकता नहीं हैं और हम उसे फ़ेंकना चाहते हैं| कई बार कानूनी बाध्यता के चलते भी फ़ेंकना पडता हैं क्योकि वे नुकसानदायक हो सकती है और इस पर सरकारी मानक तय है|

बुनियादी तौर पर एक नई वस्तु के आने के कारण पुरानी वस्तु हमारे इस्तेमाल में नहीं रहती, घर पर एक नए एल.इ.डी टीवी के आने पर पुराना टीवी घर के एक कोने में ई-कचरा में तब्दिल हो जाता है| एक नए ऑफिस में प्रवेश के कारण, पुराने ऑफिस का बहुत कुछ कचरा होने की कगार पर दिखता हैं| इसमे कोई संदेह नहीं है कि तेजी से होता शहरीकरण भी एक बड़ा कारण हैं| ऐसा नहीं हैं की पुराना सामान पुनः इस्तेमाल मे नहीं लाया जा सकता हैं लेकिन मैं समझता हूँ की यह सोच का विषय है|

कचरे के प्रबंधन की मूलभूत अवधारणा है की कम करना, पुनः इस्तेमाल करना तथा पुनः चक्रित करना (reduse, resuse recycle).

कचरे के प्रकार

कचरा, मोटे तौर पर तरल अथवा सॉलिड हो सकता है और इन दोनों प्रारूपों में इसे पुनः इस्तेमाल और पुनः चक्रित किया जा सकता है|

हम इसका विभाजन इस प्रकार कर करते हैं:

तरल कचरा-ऐसा कचरा जो सॉलिड रूप में नहीं हो जैसे घरों और संस्थानों से निकलने वाला जल|

सॉलिड कचरा- बचा हुआ खाना, पुराने टायर, टूटा फर्नीचर इत्यादि|

हानिकारक कचरा- केमिकल, बैटरी, रिएक्टिव पदार्थ इत्यादि|

जैविक कचरा- पौधे, फल, गोंबर, सब्जियाँ हैं| ये सभी बायोडिग्रेडेबल हैं और खाद में परिवर्तित हो सकता है|

इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-वेस्ट —- ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद जैसे कंप्यूटर, लैपटॉप, एयर कंडिशन, टीवी वॉशिंग मशीन सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। इनकी बायो डिग्रेडबल न होने के कारण तय मानको के अनुसार रिसाइकल करना आवश्यक हैं

ई-वेस्ट पर बना कानून

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-वेस्ट के प्रबंध और रिसाइकल के लिए नियम २०११ के अंतर्गत मानक तय किया गया है ताकि इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ठीक प्रकार से निपटान किया जा सके|

भारत की स्थिति

भारतीय औधोगिक संस्थान ऐसोचेम (एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ़ इंडिया) के अनुसार भारत में ई कचरे का मुख्य सोर्स तालिका —

ई-कचरा उपकरण ——— ई-कचरे का हिस्सा
कंप्यूटर उपकरण ——— 70%
टेलिकॉम उपकरण ——— 12%
मेडिकल उपकरण ——— 8%
इलेक्ट्रिक उपकरण ——— 7%
अन्य (घरो का ई-कचरा) ——-3%

एक अन्य आंकडे के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक कचरे के उत्पादन में भारत 18 लाख मैट्रिक टन प्रति वर्ष ई-कचरे के साथ चौथे स्थान पर हैं, वर्ष 2020 तक 52 लाख मैट्रिक टन प्रति वर्ष पहुँचने का अनुमान हैं|

ई-वेस्ट को लेकर व्यवसायिक और औउद्योगिक ईकाईयो के साथ-साथ जनता को भी जागरूक करने की आवश्यकता हैं क्योंकि अभी तय मानको के बारे में कई ईकाईयों को ना तो पूरी जानकारी है और ना ही वो इस पर पुरजोर कोशिश करते दिखते हैं

उपलब्ध आंकड़े और जानकारी हैरान करने वाली हैं |

अगर ई -कचरे का निपटान अनुशासित और तय मानको के साथ नहीं हुआ तो भविष्य में यह बहुत जोखिम मामला होगा|

एक तरफ अपनी आने वाली पीढियों के लिए हम बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार इत्यादि की कामना के साथ अग्रसर हैं लेकिन उनको एक बेहतर और सुरक्षित पर्यावरण देना भी हमारा ही कर्तव्य है और हम इसमें चुक़ेगे नहीं|

एस० बाबू , पिछले 20 से अधिक वर्षो से कचरे के भंडारण और निपटान से जुड़े हुए हैं | पर्यावरण की सुरक्षा और बेहतरी को लेकर, पौधे तथा बीज़ रोपण के कार्यो को अपनी सामाजिक संस्था के माध्यम से निर्वहन कर रहे हैं |

-S. Babu
www.trustmerecycle.com, Founder
Linkedin: https://www.linkedin.com/in/s-babu-814a80155/

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