आदिवासी मामलों के मंत्रालय : वर्षांत समीक्षा 2015 : उपलब्धियां

आदिवासी मामलों के मंत्रालय  : वर्षांत समीक्षा 2015 : उपलब्धियां

1पेसूका ०००००००००००००००००००००००० —————————–जनजातीय मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी अनुसूचित जनजाति और उससे जुड़े लोगों के समग्र विकास (स्वास्थ्य एवं शिक्षा) की है। उनके अधिकारों की सुरक्षा, संरक्षण और उनके सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने की भी जिम्मेदारी है। जनजातीय आबादी के कल्याण में विभिन्न मंत्रालयों की गतिविधियों में भूमिका के अलावा संबंधित राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों, बहु-विषयक राज्य स्तरीय समितियों की सिफारिशों और योजनाओं को लागू कराने की भूमिका है।

उपलब्धियां      

शिक्षा

Ø      आदिवासी बच्चों के बीच भाषा (जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा) सीखने की बाधाओं को दूर करने के लिए सभी जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को, द्विभाषी पुस्तिकाएं तैयार करने को लेकर वित्त पोषित किया गया है, जिसे सर्व शिक्षा अभियान के जरिये बढ़ावा दिया जा रहा है। ओडिशा, गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र में इस प्रक्रिया को पहले ही शुरू किया जा चुका है।

Ø      छुट्टियों का आदिवासी त्योहारों के साथ तालमेल किए जाने की वकालत की गई है।

Ø      सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने के मकसद से वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान करीब 40,000 सीटों और मौजूदा वित्त वर्ष में करीब 20,000 सीटों का हॉस्टल, आवासीय स्‍कूल बनाने के लिए कोष मुहैया कराया गया है।

Ø      आदिवासी बच्चों के लिए शिक्षा को प्रासंगिक बनाने के लिए आवासीय स्कूलों के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण को भी एकीकृत किया गया है। इसमें उनके शिक्षक ही काउंसलर की भूमिका निभाएंगे।

Ø      आदिवासी लड़की / महिला एएनएम के रूप में और महिला सुरक्षा और परामर्श के लिए लड़कियों के छात्रावास में सहायक वार्डन के रूप में उनकी पोस्टिंग के लिए ट्रेनिंग शुरू कर दी गई है।

Ø      आदिवासी क्षेत्रों के स्कूलों में शौचालय बनाने के लक्ष्य रखा गया है। सुरक्षा और स्वच्छता के मद्देनजर इसके लिए लड़कियों के लिए स्कूलों को लक्षित किया जा रहा है।

Ø      टॉप क्लास एजुकेशन योजना के तहत पेशेवर पाठ्यक्रम और अनुसंधान कर रहे आदिवासी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की संख्या को 667 से बढ़ाकर 1000 कर दिया गया है। नेशनल फेलोशिप योजना के तहत छात्रवृत्ति की संख्या को बढ़ाकर 625 से बढ़ाकर 750 कर दिया गया है।

शोध:

Ø      अनुसंधान एवं मूर्त, अमूर्त विरासत और प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण आदि के दस्तावेजीकरण के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को अनुदान मुहैया कराने की योजना को संशोधित कर वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान 100 प्रतिशत कर दिया गया।

Ø      आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह स्थित जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को निम्नलिखित गतिविधियों को पूरा करने के लिए सहयोग दिया जाता है।                             I.            अनुसंधान/ मूल्यांकन / नृवंशविज्ञान / मानवशास्त्रीय अध्ययन

                          II.            जनजातिय विषयों पर कार्यशाला/ सम्मेलन/ प्रदर्शनी आदि का आयोजन

                        III.            प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण

                       IV.            आदिवासी युवाओं के लिए यात्राओं का आदान-प्रदान.

                         V.            जनजातीय महोत्सव आदि। 

Ø      अनुसंधान, साक्ष्य आधारित नीति, योजना और कानून, क्षमता निर्माण, सूचना के प्रसार एवं जागरूकता आदि के निर्माण करने के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थान परस्पर कार्य करते हैं जिसमें ज्ञान एवं अनुसंधान के निकाय के रूप में काम करना शामिल है।

 संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण:

Ø      जनजातीय क्षेत्रों में आदिवासियों को सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं के प्रभावी वितरण के लिए एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी का सुदृढ़ीकरण/ एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना(आईटीडीए/आईटीडीपी)।

Ø      जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के सहयोग से एक स्वतंत्र निकाय ‘सोसायटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ ट्राइबल्स’ की स्थापना की है, जो 24×7 के हेल्पलाइन के जरिये प्रवासी आदिवासियों को बुनियादी नागरिक सुविधा, पुनर्वास और परामर्श आदि मुहैया कराएगा।

Ø      कोर कर्मचारियों और गतिविधियों के लिए 100% वित्त पोषण के माध्यम से जीवंत संस्थान बनाने के लिए जनजातीय अनुसंधान संस्थान को पुनर्जीवित किया गया है। जनजातीय अनुसंधान संस्थान, ओडिशा को राष्ट्रीय संसाधन केंद्र घोषित किया गया है।

Ø      विश्व भारती, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल में उत्कृष्ट जनजातीय भाषा एवं साहित्य के अध्ययन के केंद्र स्थापित किया गया है।

Ø      सितंबर 2015 के अंत तक 44,01,563 मामले दायरे किए गए और वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत 17,02,047 टाइटल वितरित किए गए। इनमें 16,61,214 व्यक्तिगत, 38685 सामुदायिक और  2148 सीएफआर टाइटल वितरित किए गए जो कुल वन क्षेत्र करीब 89 लाख एकड़ को घेरता है।

 प्रशासन में पारदर्शिता

Ø      मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के तहत आवंटन के लिए प्रस्तावों को मंजूरी देने और उसके मूल्यांकन को लेकर जनजातीय मामलों के सचिव की अध्यक्षता में राज्य सरकारों, वित्तिय सलाहकारों, योजना आयोग आदि के प्रतिनिधियों के साथ एक परियोजना मूल्यांकन समिति का गठन किया गया है।

Ø      बैठकों का ब्यौरा सार्वजनिक किया गया है। इसकी वजह से परामर्श और निधि को जारी करने में पारदर्शिता आई है।

 Ø      सभी मंजूरी आदेशों को परियोजना के विवरण के साथ मंत्रालय की वेबसाइट पर डालकर सार्वजनिक रखा जाता है।

Ø      मंत्रालय द्वारा जारी किए गए सभी सलाह और निर्देशों को मंत्रालय की वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक रखा जाता है।

 ई-प्रशासन

Ø      इसके अलावा मंत्रालय के कार्यों की और उसके वित्तीय जानकारी सहित मंत्रालय की अन्य सूचनाओं को मंत्रालय की वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक रखा जा रहा है। मंत्रालय की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी सोशल मीडिया ट्वीटर (@tribalaffairsin)  और फेसबुक एकाउंट (Ministry of Tribal Affairs)  पर दी जाती रहती है।

 Ø      विभिन्न मंडियों में वास्तविक मूल्य की जानकरी देने के लिए एमएफनेट (www.trifed.in) लांच किया गया है।

 Ø      सिर्फ कृषि उत्पादों के बारे में नहीं बल्कि लघु वनोपज की जानकारी देने के लिए एमएफनेट को किसान कॉल सेंटर (1800-180-1551) से जोड़ा गया है।

 Ø      जनजातीय उत्पादों को बेचने के लिए www.snapdeal.com के साथ मिलकर ई-कॉमर्स पोर्टल शुरू किया गया जो टीईरआईएफईडी के जरिये काम करेगा।

 Ø      ई-फाइल ट्रैकिंग सिस्टम (फाइल और पत्रों को खोजने के लिए), समीक्षा (रियल टाइम ऑनलाइन 65मॉनिटरिंग), प्रगति (लोक शिकायत), एईबीएएस  (बॉयोमेट्रिक एटैंडेंस सिस्टम) माईजीओवी(मंत्रालय से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लोगों की राय जानने के लिए), वीएलएमएस (वीवीआईपी लेटर मॉनिटरिंग सिस्टम) का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।

 Ø      मंत्रालय में सभी तरह के भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किए जाते हैं।

Ø      सभी खरीदारी निविदाओं के जरिये की जाती है जिसे संबंधित वेबसाइटों पर अपलोड किया जाता है।

विभिन्न कार्यक्रमों के तहत जारी की गई राशि / मंत्रालय की योजनाएं:

            जनजातीयों के सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षणिक विकास के लिए मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रम के तहत  2015-16 के दौरान विभिन्न एजेंसियों को 2969.00 करोड़ रुपये(4549 करोड़ रुपये का 65%) जारी किया गया।

संस्कृति

राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव-वनज

मंत्रालय आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय मंच मुहैया करा रहा है। आदिवासी कला, शिल्प, भोजन, साहित्य, दवाओं के प्रदर्शन और जनजातीय कला एवं शिल्प की बिक्री करने के लिए दिल्ली में 13 से 18 फ़रवरी 2015 के दौरान एक राष्ट्रीय उत्सव वनज का आयोजन किया गया था। फरवरी के दूसरे शुक्रवार और तीसरे बुधवार के बीच एक वार्षिक आयोजन होगा।

जनजातीय मामलों के मंत्री श्री जुआल ओराम वनज –2015 का नई दिल्ली में उद्घाटन करते हुए

दिल्ली में वनज के उद्घाटन समारोह के दौरान ओडिशा के आदिवासी बच्चे “गोटिपुओ” नृत्य करते हुए

.कौशल विकास एवं रोजगार:

Ø      मंत्रालय के विभिन्न उपायों एवं कौशल विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा आय सृजन योजनाओं से काफी संख्या में लोग लाभान्वित हुए हैं।

Ø      रिक्त स्थानों को भरने के लिए जनजातीय युवाओं को शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाता है।

Ø      कम से कम 2/3 प्लेसमेंट गारंटी के साथ युवाओं को आधुनिक कौशल, आतिथ्य, पर्यटन, कंप्यूटर, ब्यूटीशियन कोर्स और  मोबाइल रिपेयरिंग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।

Ø      आवासीय स्कूलों में जनजातीय बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा को प्रासंगिक बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है।

आजीविका

Ø      सहकारी समितियों के माध्यम से डेयरी विकास को बढ़ावा देने और इसे दूग्ध महासंघों के साथ जोड़कर आजीविका गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है ताकि नियमित औस स्थायी रोगजार मुहैया कराया जा सके जिससे नियमित आय के स्रोत तैयार हो सकें। साथ ही इसमें महिलाओं की भागीदारी की वकालत की जाती है। इसी तरह पोल्ट्री के जरिये लोगों के लिए अतिरिक्त आय औऱ प्रोटीन का स्रोत मुहैया कराया जा सकता है।

Ø      मछली पालन से भी आय स्रोत पैदा होंगे और परिवार को प्रोटीन मिलेगा। मौजूदा जल निकायों के मानचित्रण और मनरेगा के माध्यम से इसे बढ़ावा देने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा चुका है।

 Ø      इसके अलावा, बागवानी, मधुमक्खी पालन, फूलों की खेती, पारंपरिक बाजरे की उन्नत किस्मों के लिए मदद मुहैया कराई जाती है। स्कूलों के मेन्यू में चावल या मक्के से बाजरा ज्यादा पौष्टिक होता है।

 स्वास्थ्य और पोषण

सिकल सेल एनेमिया:  आईसीएमआर ने आदिवासी छात्रों में सिकल सेल हीमोग्लोबिन की पहचान के लिए सस्ते दर ‘टर्बिडिटी टेस्ट’ तैयार किया है। मंत्रालय द्वारा वित्त वर्ष के दौरान इस टेस्ट को करने के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। सिकल सेल स्टेटस की जांच के लिए हर बच्चे को कार्ड मुहैया कराया जाता है।

मलेरियाजनजातीय आबादी में मलेरिया के मामलों को घटाने के लिए तालाबों में कम्पोजिट फिस कल्चर को बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्यों/ केंद्र प्रशासित राज्यों में तालाबों का पता लगाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मानचित्रण शुरू करने को लेकर जनजातीय आबादी में प्रशिक्षिण कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। इससे मच्छरों का प्रजनन कम होता है जिससे मलेरिया की आशंका कम हो जाती है। मछली से अतिरिक्त आय और प्रोटीन भी मिलता है।

मंत्रालय ने उन जनजातीय छात्रों खासकर लड़कियों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू की है, जो विज्ञान में रुचि रखते हैं। उन्हें सहयोगी स्टाफ के तौर पर प्रशिक्षित कर एएनएम के रूप में नियमित पारिश्रमिक पर संस्थानों में तैनात किया जा रहा है।

अन्य पहल:

Ø      प्रतिरक्षण कार्यक्रम के तहत सभी गर्भवती महिलाओं को लाया गया।

Ø      प्रत्येक सोमवार को दोपहर के भोजन के बाद तुरंत फोलिक एसिड दिया जाता है।

Ø      हरी पत्तेदार सब्जियों के नियमित सेवन सुनिश्चित करने के लिए किचन गार्डन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। बाजरा, जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थों को स्कूल के भोजन में शामिल करने के लिए इसकी खेती को प्रोत्साहित किया गया।

Ø      स्वच्छता और सफाई के लिए स्कूली बच्चों के बीच पुर्नचक्रणीय सामग्री के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है।

Ø      स्वच्छता और साफ-सफाई के बारे में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जनजाति कल्याण विभागों को परिपत्र जारी किए गए थे।

Ø      स्वास्थ्य प्रशिक्षित महिलाओं को छात्रावासों में वार्डेन/ सहायक वार्डेन नियुक्त किया गया है।

विचार-विमर्श और समीक्षा

मंत्रालय की योजनाओं के उचित कार्यान्वयन के लिए विभिन्न जनजातीय कल्याण साझेदारों, जिनमें संसद सदस्य, एजेंसियां के मिलकर मंत्रालय ने कार्यशालाओं और सलाह-मशविरा का आयोजन किया ताकि समय पर मंत्रालय की योजनाओं का लाभ मिल सके।

जनजातीय विकास में बदलाव

ए. वनबंधु कल्याण योजना (वीकेवाई):

  • एक रणनीतिक प्रक्रिया वर्ष 2014-15 में शुरू किया गया था।
  • उचित संस्थागत तंत्र के माध्यम से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए संसाधनों का उपयोग
  • एक समग्र दृष्टिकोण के जरिये भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित करके आदिवासियों के व्यापक विकास की परिकल्पना की गई है।
  • देशभर में जनजातीय आबादी को जल, कृषि एवं सिंचाई, बिजली, शिक्षा, कौशल विकास, खेल एवं उनके सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हाउसिंग, आजीविका, स्वास्थ्य, स्वच्छता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण  सेवाओं एवं वस्तुओं को मुहैया कराने के लिए एक संस्थागत तंत्र किया गया है।

रणनीतिक तौर पर शुरू की गई वीकेवाई प्रक्रिया केंद्र की तरह ही राज्य सरकारों के लिए भी महत्वपूर्ण विषय है। विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों के साथ जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने कनवर्जेंस प्लान को शुरू किया है। यह बुनियादी सुविधाओं, सिंचाई, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, आवास के मुख्य क्षेत्रों में पीने का पानी,  सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के इच्छित लाभ को सुनिश्चित करने के लिए एक इष्टतम तरीके में आदिवासी विकास के लिए धनराशि उपलब्ध कराने का प्रयास है। इससे विभिन्न मानव विकास सूचकांक के मामले में यह निश्चित जनजातीय लोगों तक पहुँचते हैं।

सामाजिक सुरक्षा तंत्र

 ए.     लघु वन उपज का विपणन

 “लघु वन उपज के विपणन(एमएफपी) के न्यूनतम समर्थन मूल्य औऱ इसके मूल्य श्रृंखला के विकास की खातिर 2013-14 के दौरान केंद्र प्रायोजित एक योजना शुरू की गई थी। यह लघु वन उपज के विपणन के लिहाज से एक सामाजिक सुरक्षा योजना है। इसमें प्राथमिक सदस्य जनजातीय लोग हैं। यह योजना जनजातीय लोगों के उत्पादों के उचित मूल्य पर बिक्री, पैकेजिंग और परिवहन के लिए शुरू की गई थी।

 शुरू में लघु वन उपज में तेंदू, बम्बू, महुआ, साल का पत्ता, लाक, करंज, मधु, हरड़, इमली, गम और कराया को इसमें शामिल किया गया है।

  • इस योजना को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लागू किया गया है।

 शिक्षा

ए.     अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए पूर्व मैट्रिक छात्रवृत्ति

  • कक्षा नौ-दसवीं में पढ़ने वाले छात्र छात्रवृत्ति के लिए योग्य हैं। लड़कियों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • इसके लिए सभी स्रोतों से माता पिता की आय में प्रतिवर्ष 2.00 लाख से कम होना चाहिए
  • साल में 10 महीनों तक छात्रावासों में रहने वाले छात्रों को प्रतिमाह 350 रुपये जबकि डे स्कॉलर को 150 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है।
  • राज्य सरकार और केंद्र प्रशासित राज्य स्कॉलरशिप वितरित करते हैं।

बी. अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति

  • मैट्रिकुलेशन या उससे ऊपर किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से कोई मान्य प्राप्त कोर्स कर रहे छात्रों को यह स्कॉलरशिप दी जाती है। लड़कियों को इसमें प्राथमिकता दी जाती है।
  • इस स्कॉलरशिप के लिए माता-पिता की सालाना आय 2.50 लाख रुपये से कम होनी चाहिए
  • जनजातीय छात्रों के लिए 230-1200 रुपये प्रतिमाह शैक्षणिक संस्थानों में अनिवार्य फीस का भुगतान संबिधित राज्य/केंद्र प्रशासित राज्य करते हैं।
  • यह स्कॉलरशिप राज्य सरकारों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दिया जाता है।
  • जनजातीय छात्रों को नौंवी से दसवीं के छात्रों को विशेष कोचिंग दी जाती है। 

ए.     जनजातीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा योजना

  • मंत्रालय आईआईटी, आईआईएम, एम्स और एनआईआईटी सहित देशभर के 158 प्रतिष्ठित संस्थानों में जनजातीय छात्रों को छात्रवृत्ति मुहैया कराता है। लड़कियों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • प्रतिवर्ष कुल 1000 छात्रवृत्तियां दी जाती हैं।
  • इसके लिए उम्मीदवारों के सभी स्रोतों से पारिवारिक आय प्रतिवर्ष Rs.4.50 लाख से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • छात्रवृत्ति राशि में ट्यूशन फीस, रहने-खाने का खर्च के अलावा किताबों एवं कंप्यूटर के लिए पैसे भी शामिल होते हैं।

 ए. जनजातीय छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप कार्यक्रम

  • देश में एम.फील और पीएचडी करने वाले 750 जनजातीय छात्रों को हर साल फेलोशिप दी जाती है। इसमें भी लड़कियों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • यूजीसी के मापदंडों के मुताबिक यह फेलोशित दी जाती है। अभी 25,000 रुपये प्रतिमाह जेआरएफ औऱ 28,000 रुपये प्रतिमाह एसआरएफ दिया जाता है।
  • ए.     नेशनल ओवरसीज छात्रवृत्ति
  • विदेशों में पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी औऱ पोस्ट डॉक्ट्रल करने के लिए चयनित जनजातीय छात्रों आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है। लड़कियों को इसमें प्राथमिकता दी जाती है।
  • इसके तहत प्रतिवर्ष कुल 20 छात्रों को यह मदद मुहैया कराई जाती है। इनमें से 17 जनजातीय छात्रों के लिए जबकि 3 अतिसंवेदनशील जनजातीय छात्रों के लिए छात्रवृत्ती दी जाती है।
  • इसके लिए उम्मीदवारों के सभी स्रोतों से पारिवारिक आय प्रतिवर्ष Rs.6.00 लाख रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। 
  • इसका कार्यान्वयन विदेश मामलों के मंत्रालय द्वारा किया जाता है।  

बी. आदिवासी क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण की योजना

  • इसका मुख्य उद्देश्य जनजातीय लोगों में कौशल विकास करना उनका सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना है।
  • संभावनाओं को भुनाने के लिए पांच व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं। इससे कम से कम से 75% छात्रों को रोजगार मिल सकेगा।

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