आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम—- सूर्यकांत देवांगन

आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम—- सूर्यकांत देवांगन

कांकेर (छत्तीसगढ़) —-प्रधानमंत्री ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान कुछ महीनों पहले ही शुरू किया है, लेकिन छत्तीसगढ़ की एक ग्रामीण महिला रेणुका ढीमर ने इसकी शुरूआत आज से चार साल पहले ही कर दी थी। खेती और मजदूरी करके गुजर-बसर करने वाले परिवार की इस बहू ने 2016 में प्रशासन से मिले 25-30 कड़कनाथ के चूजों को पालना शुरू किया, जो समय के साथ बढ़ते चले गए और आज यही रेणुका और उनके परिवार की आय का मुख्य साधन बन गया है। मुर्गीपालन से ही रेणुका की आय हर महीने 15 हजार हो रही है। उनके इस प्रयास की सराहना न केवल गांव के लोग कर रहे हैं बल्कि प्रशासनिक अधिकारी भी समय-समय पर उनके घर पहुंचकर उत्साह बढ़ाते हैं।

राजनांदगांव जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम सुरगी। मुख्यतः खेती-किसानी और मजदूरी पर आश्रित लगभग 3,500 जनसंख्या वाले इस गांव में चार साल पहले प्रशासन की तरफ से 70-80 परिवारों को कड़कनाथ मुर्गीपालन हेतू चूजों का वितरण किया गया था। कुछ महीनों तक पालने के बाद ग्रामीण इस व्यवसाय को छोड़कर वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में लग गए।
लेकिन कक्षा दसवीं तक शिक्षित रेणुका ढीमर एकमात्र थीं जिसने उन चूजों को पालना शुरू किया और उसे रोजगार के रूप में बढ़ाया। रेणुका के साथ इस कार्य को बडे़ स्तर पर करने के लिए गांव की 10 महिलाओं ने सरस्वती स्व-सहायता समूह बनाया। हालांकि कुछ समय तक साथ काम करने के बाद सभी महिलाओं ने साथ छोड़ दिया और रेणुका अकेले ही कड़कनाथ मुर्गीपालन और बिक्री का कार्य करने लगीं।

कड़कनाथ मुर्गीपालन का व्यवसाय बढ़ता देख कृषि विज्ञान केन्द्र, राजनांदगांव ने भी 2017 में रेणुका को बिहान योजना के अंतर्गत हेचरी मशीन उपलब्ध कराया तथा उसे चलाने के लिए टेक्निकल विभाग द्वारा ट्रेनिंग भी दी गई। इस मशीन से एक बार में 600 अंडे से चूजे निकाले जा सकते हैं जिनकी प्रोसेसिंग में 21 दिन का समय लगता है। हेचरी का फायदा यह है कि कड़कनाथ के अंडे यहां गर्माहट में सिंकते हैं और जल्द चूजे के रूप में विकसित हो जाते हैं।

घर के एक कमरे में 25-30 चूजों के साथ शुरू किया गया यह व्यवसाय वर्तमान में व्यापक रूप ले चुका है। उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए जिला प्रशासन ने मनरेगा के तहत् मुर्गीपालन शेड भी बना दिया जिसके बाद से अब रेणुका अपने घर पर एक साथ लगभग 1000 मुर्गियों को रख सकती हैं। एक कड़कनाथ मुर्गी या मुर्गे का वजन लगभग 1 से 2 किलो तक होता है। वहीं वनराज कड़कनाथ मुर्गी का वजन ढाई किलो से चार किलो तक होता है। ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही जगहों पर कड़कनाथ की जबरदस्त डिमांड है। यही कारण है कि कड़कनाथ प्रति किलों बाजार में 500 रूपए तक बिकता है।

कड़कनाथ कुक्कुट पालन से रेणुका के जीवन में परिवर्तन आया है। चार साल पहले की अपनी स्थिति को याद करते हुए वो बताती हैं कि पहले मैं और मेरे पति राधेश्याम ढीमर दोनों मजदूरी करने जाया करते थे, कभी काम मिलता, तो कभी नहीं मिलता था। काम मिल भी जाता तो 150 से 200 रूपए तक ही एक दिन की कमाई होती थी। मुश्किल से घर में खाने का सामान ला पाते थे, ऐसे में बच्चों की शिक्षा एवं परिवार की अन्य ज़रूरतों को लेकर हमेशा मन में चिंता बनी रहती थी।

अपनी मेहनत और सरकार के सहयोग को धन्यवाद देती हुई रेणुका कहती हैं कि कड़कनाथ पालन से उन्हें बहुत लाभ हुआ है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है, अब अपने परिवार की सभी ज़रूरतों को पूरा करने में कामयाब हुई हैं। रेणुका अब कड़कनाथ के बडे़ मुर्गे और मुर्गियों के साथ चूजों को भी बेचने का व्यवसाय करती हैं। जिसके लिए वह एडवांस में ऑर्डर लेती हैं।

उन्होंने बताया कि राज्य के 10-12 जिले से व्यापारी उनसे कड़कनाथ मुर्गी खरीदने आते हैं तथा जिला मुख्यालय राजनांदगांव से रोज 4 से 5 किसान मुर्गी पालन की जानकारी लेने भी आते हैं। जिन्हें रेणुका निःशुल्क जानकारी देती हैं। सभी स्तर पर कड़कनाथ की डिमांड होने के कारण इस व्यवसाय से रेणुका ढीमर को फायदा हो रहा है। उन्होंने बताया कि हर महीने लगभग 30,000 हजार के करीब कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों की बिक्री करती हैं। जिसमें से 15 हजार उनकी देखरेख, दाना खिलाने एवं टीका लगाने जैसे कार्यों में खर्च हो जाते हैं। इस प्रकार हर महीने उन्हें लगभग 15 हजार रूपए की कमाई होती है।

कुक्कुट पालन में रेणुका की सफलता को दिखाने के लिए जिला प्रशासन के द्वारा भी समय-समय पर राज्य एवं राज्य के बाहर होने वाले कृषि संबंधी आयोजनों में प्रदर्शनी लगाया जाता है। ताकि सभी किसान इस व्यवसाय के बारे में जानकर आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो सकें। रेणुका ने बताया कि वह अपने व्यवसाय से संबंधित जानकारी देने के लिए दिल्ली भी जा चुकीं हैं जहां आयोजित प्रदर्शनी में कड़कनाथ पालन से संबंधित स्टाॅल लगाकर जानकारी दी गई थी। एक महीने पहले जिला के कलेक्टर ने भी स्वयं उनके घर पहुंचकर कड़कनाथ मुर्गी पालन व हेचरी की जानकारी ली। उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा कि खेती किसानी के साथ मुर्गीपालन को भी अपनाकर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।

राजनांदगांव कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ बी.एस. राजपूत बताते हैं कि कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गियों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है तथा इसमें वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है। यही कारण है कि हृदय रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद होता है। कड़कनाथ में रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य पक्षियों के तुलना में अत्यधिक होता है जिसके कारण इसका सेवन करने से व्यक्तियों को बहुत लाभ मिलता है।

यह विशुद्ध देशी ब्रीड है जो छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश के झाबुआ से लाया गया है। कड़कनाथ के विशिष्ट गुणों के कारण बाजार में इसकी काफी मांग है और इसकी कीमत अन्य मुर्गियों की अपेक्षा काफी अधिक है। उन्होंने बताया कि कड़कनाथ का पालन रेणुका ढीमर की तरह ही राजनांदगांव जिले में 32 ग्रामीणों के द्वारा किया जा रहा है। जिन्हें कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा आजीविका परियोजना के तहत् हेचरी मशीन के साथ तकनीकी जानकारियां भी समय-समय पर दी जाती हैं। कड़कनाथ मुर्गीपालन का व्यवसाय काफी सरल है इसमें मुर्गियों कोे कम देखभाल और ज्यादा वैक्सीन की जरूरत नहीं होती है।

छत्तीसगढ़ में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं स्व-सहायता समूहों में संगठित होकर तकनीकी कौशल के कार्य भी अब सफलतापूर्वक कर रही हैं। इसका एक उदाहरण रेणुका ढीमर हैं। इसी तरह सरकार के सहयोग से राज्य के विभिन्न जिलों कांकेर, दंतेवाड़ा, बस्तर, नारायणपुर, बीजापुर, धमतरी, रायपुर, सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, कबीरधाम, राजनांदगांव एवं गरियाबंद में भी अलग-अलग स्तर पर कड़कनाथ पालन का कार्य किया जा रहा है। वास्तव में यह किसानों के लिए खेती किसानी के साथ-साथ सफल उद्यमी बनकर आत्मनिर्भर भारत में अपना योगदान देने का सबसे अच्छा माध्यम है। (चरखा फीचर)

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