‘आखिरी रियासती राजा’ और ‘प्रथम सांसद’ कमल सिंह—– मुरली मनोहर श्रीवास्तव

‘आखिरी रियासती राजा’ और ‘प्रथम सांसद’ कमल सिंह—– मुरली मनोहर श्रीवास्तव

देश के ‘आखिरी रियासती राजा’ और ‘प्रथम सांसद’ कमल सिंह को लोकतंत्र में आज भी है पूर्ण आस्था
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• डुमरांव स्टेट के राजा रहे कमल सिंह, देश के पहले ऐसे जनप्रतिनिधि भी बने जो जनता के मतों से 1952 ई. में बक्सर संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए
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राजतंत्र से लोकतंत्र में तब्दील हुआ भारत। उपनिवेशी शासनकाल वर्ष 1757 से 1947 तक रहा है। आज हम बात कर रहे हैं देश के प्रथम सांसद और आखिरी बचे हुए महाराजा की। रियासती हुकूमत के आखिरी राजा महाराजा बहादुर कमल सिंह जो डुमरांव राज के महाराजा हुआ करते थे। देश आजादी के जंजीरों से जब मुक्त हुआ तो इस देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई और लोकतंत्र को पूरी तरह से बहाल करने के लिए वर्ष 1952 में भारत का प्रथम चुनाव संपन्न हुआ और यहीं से शुरु हुई लोकतंत्र की पूरी परिभाषा।

1952 से 1962 तक कमल सिंह लोकसभा के सदस्य रहेः

भारत गांवों का देश है। यहां कभी छोटी-छोटी लगभग 600 से ज्यादा रियासतें हुआ करती थीं। उन्हीं में से एक था बिहार के बक्सर जिले का डुमरांव स्टेट और इसके आखिरी महाराजा बहादुर कमल सिंह हुए। देश आजाद हुआ सिंलिंग एक्ट लगी, जरुरत से ज्यादा भूमि की हदबंदी होने लगी। फिर भी डुमरांव राज ने कई ऐसे काम किए जनमानस के लिए कि वो एक इतिहास साबित हुआ। वर्ष 1952 का दौर था, आजादी के बाद पहली बार में चुनाव हुआ, बक्सर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय कैंडिडेट के रुप में कमल सिंह उस समय सबसे कम उम्र के 32 साल में सांसद चुन लिए गए और इनका निशान था कमल का फूल। संसद की सदन में पहुंचने के बाद कमल सिंह की कार्यशैली ने इन्हें तुर्क नेता के रुप में तो स्थापित किया ही इनकी एक अलग क्षवि निखरकर सामने आयी और लागातार 1962 तक सांसद बने रहे। हलांकि बाद के दौर में इन्हें हार का भी सामना करना पड़ा।

दानवीर राजा हैं कमल सिंहः

आज की तारीख में सभी घोषणा पर घोषणा करते हैं। चुनावी रणनीति के अनुसार बयान देते हैं। मगर इन सभी से इतर हैं महाराजा बहादुर कमल सिंह जिन्होंने स्कूल, कॉलेज, अस्पताल सहित कई नहर और सरोवर, तालाब बनवायी जिससे इस इलाके में रहने वाले लोगों को काफी सुविधाएं मिलती रही हैं। चाहे वो भोजपुर जिले के आरा का महाराजा कॉलेज की भूमि हो, जैन कॉलेज के लिए दान दी गई भूमि हो या फिर प्रतापसागर (एनएच-30) में बिहार का इकलौता टीबी अस्पताल को भूमि दान में दे चुके हैं। इसके अलावे विक्रमगंज (रोहतास) में अस्पताल हो या फिर डुमरांव में राज अस्पताल हो इन सभी का इनके द्वारा दान दी गई हैं भूमि। इसी रियासत से जुड़े हुए रहे हैं पटना का प्रसिद्ध मौर्या होटलके मालिक जय प्रकाश नारायण, जो डुमरांव राज के मंत्री हुआ करते थे।

डुमरांव राजगढ़ है सौ परिवारों का आशियानाः

राजगढ़ के महलों में बैठकर कभी डुमरांव राज अपनी सत्ता का संचालन किया करता था। महलों तक आम आदमी का प्रवेश संभव नहीं था लेकिन वक्त के साथ सब कुछ ऐसा बदला की आज राजगढ़ आम आदमी का आशियाना बन चुका है। कई व्यवसायिक इकाइयों का केंद्र बना हुआ है। सदियों बाद भी राजगढ़ की दीवारें चट्टान की तरह खड़ी है। राजगढ़ का विशाल दरवाजा और दीवारों की कलात्मकता हर नजरों को एकबार अपनी ओर आकर्षित करती है। आज की तारीख में दर्जनों दफ्तर के अलावे परिसर में लगभग सौ परिवारों का निवास स्थल भी बना हुआ है।

राजा होरिल शाह थे डुमरांव राज के संस्थापकः

राजगढ़ वर्तमान में डुमरांव शहर के बीच खड़ा है। परमार क्षत्रिय वंशीय राजा होरिल शाह ने इस नगर की स्थापना की थी। पहले इसे होरिल नगर के नाम से जाना जाता था। 1745 में राजा होरिल ने राजगढ़ के निर्माण की आधार शीला रखी थी। इतिहास की मानें तो इस परिवार के राजा क्षत्रधारी सिंह ने राजमहल और अन्य इमारतों का निर्माण कराया था। महाराजा जय प्रकाश सिंह ने अपने 1805 से 1838 के कार्यकाल के बीच बांके बिहारी मंदिर और बडा बाग का निर्माण कराया था। ये वही बांके बिहारी मंदिर है जिसकी चौखट से शहनाई वादन कर शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भारत रत्न तक से नवाजे गए। राजगढ़ के दो विशाल दरवाजों के पास आज भी डुमरांव राज परिवार के सुरक्षा गार्ड तैनात रहते है।

वर्ष 1940 में डुमरांव राज पुराना भोजपुर शिफ्ट हुआ थाः

डुमरांव शहर से महज 3 किमी उत्तर की ओर पुराना भोजपुर स्थित डुमरांव महाराजा की कोठी है, डुमरांव राज परिवार के युवराज चंद्र विजय सिंह की मानें तो वर्ष 1940 के आसपास पूरा परिवार यहां आ गया, लेकिन राजगढ़ से लगाव कम नहीं हुआ है। आज भी दशहरा में तौजी परंपरा का निर्वहन यहीं होता है।

विरासत को संभाल रहे कमल सिंह के पुत्रः

डुमरांव महाराजा कमल सिंह के साथ-साथ उनके दो पुत्र युवराज चंद्र विजय सिंह (बड़ें) दूसरे कुमार मान विजय सिंह का पूरा परिवार इस अहाते में निवास करता है। इस कोठी की खास बात ये है कि इसमें बड़े पैमाने पर खेती होती है। कई परिवारों का डुमरांव राज से जीविकोपार्जन होता है। कमल सिंह की बहुत बुजुर्ग हो चुके हैं, इनके बाद युवराज चंद्र विजय सिंह राजनीति में काफी रुचि लेते थे, मगर युवराज चंद्र विजय सिंह के पुत्र शिवांग विजय सिंह, जो युवाओं के बीच काफी पापूलर भी हैं, भारतीय जनता पार्टी की राजनीति करते हैं।

‘कमल’ सिंह का ‘कमल’ निशानहमेशा बना रहाः

राजा कर्ण सिंह, माधव राव सिंधिया, पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह, त्रिपुरा स्टेट, रीवा स्टेट सहित कई स्टेटों से डुमरांव महाराजा की रिश्तेदारी है।इसमें से कई परिवार राजनीति के शिखर पर हैं। वर्ष 1980 में जिस कमल के फूल को भाजपा ने अपना सिंबल बनाया उसी को अपना सिंबल बनाकर 1952 से लेकर 1962 तक महाराजा बहादुर कमल सिंह निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाले युवा सांसद हुए थे। इस रियासत की खास बात ये है कि आज भी यह परिवार कमल निशान पर ही भरोसा जताता है।

‘हाफ गर्ल फ्रेंड’ पुस्तक के लिए चेतन भगत मांग चुके हैं माफीः

डुमरांव राज परिवार को केंद्र में रखकर चेतन भगत ने हाफ गर्ल फ्रेंड पुस्तक की रचना कर शोहरत तो खासी बटोरी मगर उस वक्त इन्हें फजीहत झेलनी पड़ी जब डुमरांव राज के युवराज चंद्र विजय सिंह ने एक करोड़ रुपए की मानहानि का दावा कर दिया था। हलांकि इस खबर के बाद चेतन भगत को डुमरांव राज परिवार से माफी मांगनी पड़ी।

(राजनीतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर लगातार रिसर्च करते रहते हैं)******

संपर्क ——
लेखक सह पत्रकार
पुनाईचक, पंप हाउस, पटना
मो. 9430623520/ 6200644848

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