अमीर देश जलवायु परिवर्तन से निपटने को कम, सीमाओं के शस्रीकरण को दे रहे हैं ज्यादा तरजीह

अमीर देश जलवायु परिवर्तन से निपटने को कम, सीमाओं के शस्रीकरण को दे रहे हैं ज्यादा तरजीह

लखनऊ (निशांत कुमार )— एक ताज़ा शोध में पाया गया है कि दुनिया के कुछ सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में उतना नहीं खर्च करते जितना अपनी सीमाओं के सशक्तिकरण पर खर्च करते हैं।

COP 26 से पहले, अनुसंधान और एडवोकेसी थिंकटैंक ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट (TNI) ने बॉर्डर हिंसा और जलवायु परिवर्तन के बीच की कड़ी पर नया शोध जारी किया है, जो हथियार और बॉर्डर सुरक्षा फर्मों को “जलवायु आपातकाल के मुनाफाखोर” के रूप में दर्शाता है।

TNI की रिपोर्ट, द ग्लोबल क्लाइमेट वॉल, को COP प्रतिनिधियों के लिए एक वेक-अप कॉल के रूप में लॉन्च किया जा रहा है। यह बताती है कि सबसे बड़े प्रदूषक सीधे जलवायु प्रभावों से निपटने के बजाय जलवायु-विस्थापित लोगों के खिलाफ सीमाओं के शस्रीकरण को प्राथमिकता दे रहे हैं।

रिपोर्ट में पता किया गया है कि दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक जलवायु वित्त की तुलना में सीमाओं के शस्रीकरण पर औसतन 2.3 गुना अधिक खर्च कर रहे हैं, और सबसे निकृष्टतम अपराधियों के लिए औसतन,15 गुना अधिक खर्च कर रहे हैं। इस “ग्लोबल क्लाइमेट वॉल” का उद्देश्य विस्थापन के कारणों को संबोधित करने के बजाय शक्तिशाली देशों को प्रवासियों के लिए बंद करना है।

रिपोर्ट दर्शाती है कि ग्लोबल क्लाइमेट वॉल जलवायु परिवर्तन से निपटने में विफल रहते हुए सीमाओं पर होने वाली मौतों और चोटों को त्वरित करेगी। जलवायु से जुड़े प्रवास के लिए सीमाओं का शस्रीकरण एक अव्यावहारिक समाधान है, और मानव पीड़ा को बढ़ाते हुए निवेश को जलवायु कार्रवाई से दूर ले जाता है। जलवायु संबंधी आपदाओं से विस्थापित लोगों की संख्या पहले से ही बढ़ रही है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि बॉर्डर, सर्विलांस (निगरानी) और सैन्य उद्योग जलवायु परिवर्तन मुनाफाखोर हैं। रिपोर्ट में उद्योग और बड़े जीवाश्म ईंधन प्रदूषकों के बीच गहरे संबंध के बारे में पता चलता है। प्रदूषकों की तरह, बॉर्डर फर्म्स (सीमा फर्में) राज्यों को इसके कारणों से निपटने के बजाय जलवायु परिणामों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया का सैन्यीकरण करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए धक्का देकर अपने राजस्व (अब $ 68[1] बिलियन सालाना) में वृद्धि करती हैं।

बढ़ते बॉर्डर और सर्विलांस उद्योग का विश्लेषण करने वाले संगठन के पिछले काम पर जलवायु वित्त और निर्माण के व्यापक अध्ययन के आधार पर TNI की रिपोर्ट आगे पता करती है कि:

· सात देश जो जलवायु वित्त की तुलना में बॉर्डर प्रवर्तन पर औसतन 2.3 गुना अधिक खर्च कर रहे हैं, उन्होंने 1850 के बाद से दुनिया की 48% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है।

· सात सबसे बड़े ऐतिहासिक GHG उत्सर्जकों द्वारा बॉर्डर खर्च 2013 और 2018 के बीच 29% बढ़ा, जबकि वे अपने जलवायु वित्त वादों को पूरा करने में विफल रहे।

· सबसे खराब अपराध करने वाले देशों में कनाडा हैं, जिन्होंने जलवायु वित्त की तुलना में सीमा प्रवर्तन पर 15 गुना अधिक खर्च किया (लगभग 100 मिलियन डॉलर की तुलना में $1.5 बिलियन), इसके बाद ऑस्ट्रेलिया जिसने 13.5 गुना अधिक खर्च किया ($200 मिलियन की तुलना में 2.7 बिलियन डॉलर); यूएस ने 10.9 गुना अधिक (1.8 अरब डॉलर की तुलना में 19.6 अरब डॉलर); और यूके ने लगभग दो गुना अधिक (1.4 बिलियन डॉलर की तुलना में 2.7 बिलियन डॉलर)।

· बॉर्डर उद्योग को इसके विकास में जीवाश्म ईंधन उद्योग द्वारा सहायता मिलती है। दुनिया की शीर्ष दस सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन फिर्में उन्हीं फर्मों की सेवाओं का कॉन्ट्रैक्ट (समझौता/अनुबंध) करती हैं जो बॉर्डर सुरक्षा कॉन्ट्रैक्टों पर हावी हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि दोनो सेक्टरों के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता बड़ी संख्या में दोनो सेक्टरों के पार हैं, जो एक-दूसरे के कार्यकारी बोर्डों में हैं।

ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट के एक शोधकर्ता और रिपोर्ट के सह-लेखक निक बक्सटन ने कहा: “तेल उद्योग एकमात्र ऐसा व्यवसाय नहीं है जो जलवायु संकट से मुनाफा कर रहा है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि बॉर्डर, सर्विलांस और सैन्य उद्योग भी जलवायु निष्क्रियता से लाभ उठाते हैं – यह एक गर्म होती दुनिया की समस्याओं से निपटने के लिए बॉर्डरों के झूठे समाधान बेच रहे हैं।”

“जलवायु आपातकाल हमारे सामने एकमात्र सबसे बड़ी चुनौती है और यह सुनिश्चित करेगा कि लोग कहाँ और कैसे रह सकते हैं और फल-फूल सकते हैं। इसके लिए सीमाओं के पार तत्काल सहयोग की आवश्यकता है – हमें पुलों की जरूरत है, दीवारों की नहीं।”

“COP 26 में, प्रतिनिधियों को बॉर्डर और युद्ध उद्योग से सार्वजनिक धन वापस लेने और इसे वास्तविक समाधान में डालने पर ज़ोर देना चाहिए; सभी के लिए रहने योग्य ग्रह सुरक्षित करते हुए ।”

रिपोर्ट के सह-लेखक टॉड मिलर ने कहा: “जबकि सबसे धनी देश जलवायु वित्त देने में विफल हो रहे हैं, बॉर्डरों पर उनका खर्च आसमान छू रहा है। “ग्लोबल क्लाइमेट वॉल” बनाने की यह रणनीति जलवायु परिवर्तन को हल करने के लिए कुछ भी नहीं करती है बल्कि दुनिया भर में लोगों पर भारी हिंसा और पीड़ा का कारण है। भयानक जलवायु परिवर्तन के परिणामों को रोकने के लिए कोई दीवार पर्याप्त ऊंचाई की नहीं है।”

मे बोव, 350.org की कार्यकारी निदेशक: “जलवायु प्रचारकों को यह समझना चाहिए कि जीवाश्म ईंधन उद्योग जलवायु आपातकाल से मुनाफा करने वाले अकेले फ्रैम्स नहीं हैं। जैसे-जैसे गर्म होती दुनिया का प्रभाव गहरा होता जाएगा, सरकारों को महंगी पर विनाशकारी आकर्षक प्रतिक्रिया रणनीतियों को अपनाने के लिए मुनाफाखोर प्रयासों का विस्तार करेंगे।”

“ग्लोबल क्लाइमेट वॉल एक ऐसी महंगी और अमानवीय गलती है – जैसे-जैसे शक्तिशाली देश दीवारों, हथियारों, खाइयों, ड्रोन और रेजर वायर के साथ खुद को उन लोगों से अलग कर लेते हैं जिन्हें एक सस्टेनेबल दुनिया के लिए सहयोगी होना चाहिए।”

“विस्थापन जैसे जलवायु परिणामों पर प्रतिक्रिया देने के लिए व्यापक और दयालु अंतर्राष्ट्रीय योजनाएं COP26 और उससे आगे की मेज पर (बातचीत के दायरे में) होनी चाहिए। हमारा ग्रह और लोग इस पर कोई विकल्प नहीं झेल सकेंगे।”

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