- December 18, 2015
अब तो कुछ करें अंतिम पखवाड़ा बचा है – डॉ. दीपक आचार्य
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साल भर तक यों ही गुजार दिया गुलशन में, और अब लो अवसान आ गया।
पता ही नहीं चला कि कब आ गया वर्षावसान का दौर। मुट्ठी से समय की रेत सरक कर उड़ती रही और भान ही न रहा इसका।
हर बात यही सब होता है। हम स्रष्टा भी होते हैं और साक्षी भी। फिर भी साल-दर-साल वही पुराने ढर्रे पर चलने के आदी हो गए हैं। हर बार जब-जब भी नया कुछ शुरू होता है हम सीना तान कर संकल्पों के साथ आगे बढ़ते हैं, कुछ दिन करते हैं फिर वही ढाक के पात तीन के तीन।
यही हमारी सालाना नियति है। हम साल भर तक घूम फिर कर वहीं आकर अटक जाते हैं। यह अंग्रेजीदां वर्ष भी अवसान की ओर उन्मुख है। अब भी कुछ दिन शेष बचे हैं। क्यों न हम याद कर लें उन संकल्पों को, जो हमने इस साल के आरंभ में लिए थे, एक बार याद ताजा कर लें उन सपनों को जिन्हें हमने देखा था।
बहुत कुछ सोचा-समझा और स्वीकारा था, साहस भी बटोरा था कुछ कर गुजरने का। पर हो कुछ न पाया। अब भी समय बचा है, जितना है उसी का उपयोग कर लें। वरना कुछ न कर पाने का मलाल और अफसोस हमेशा हावी रहेगा हम पर। चेतन और अवचेतन दोनों में भरा रहकर परेशान करता रहेगा।
वर्ष का यह अवसान काल भले ही हमारी संस्कृति और परंपराओं में शुमार न हो, लेकिन इतना तो तय है ही कि हमें अपने आपको सजाने-सँवारने और निखारने के लिए कोई न कोई बहाना चाहिए होता है, चाहे वह अपना सांस्कृतिक नव वर्ष हो या फिर पाश्चात्यों वाला, अथवा कोई सा दूसरा मौका।
ईयर एण्ड के नाम पर एंजोय करने वाले सभी लोगों के लिए वर्ष का यह अंतिम पखवाड़ा आत्मचिन्तन का मौका है जिसमें हम सभी को यह सोचना होगा कि जिस ईयर एण्ड के नाम पर हम मनोरंजन करना और घूमना-फिरना चाहते हैं, उस ईयर मेंं हमने ऎसा कौन सा काम किया है कि जो थकान लगी हो, रिलेक्स होने की जरूरत हो।
हम सभी को चाहिए कि स्वस्थ मूल्यांकन करें और अपने इस वर्ष के जो कुछ बचे-खुचे काम हैं, उन्हें निपटाएं और उसके बाद ही मनोरंजन के बारे में सोचें।
कामों के बोझ के होते हुए मनोरंजन या भ्रमण न आनंद दे सकता है, न आत्मशांति। वर्ष का अंत मौज-शौक से मनाएं लेकिन इसके लिए यह भी देख लें कि हम काम की पूर्णता के बाद का आनंद चाहते हैं या कामों को लंबित रखते हुए आनंद पाना।
पहले कर्मयोग की पूर्णता के लिए प्रयास करें, इसके बाद मनोरंजन और भ्रमण का आनंद पाने का प्रयास करें, इसी में जीवनानंद शामिल है।