• March 7, 2016

अजीब हैं ये मोबाइलखोर – डॉ. दीपक आचार्य

अजीब हैं ये  मोबाइलखोर  – डॉ. दीपक आचार्य

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दुनिया जितनी विचित्र है उससे कहीं अधिक अजीबोगरीब जीवों का बाहुल्य है। इनमें भी इंसान प्रजाति का प्राणी सबसे अलग ही है जिसमें धरती के सारे जीवों के लक्षण, स्वभाव, व्यवहार और खान-पान देखने को मिल ही जाते हैं।

इनमें भी कुछ लोग किसी एक जानवर का प्रतिनिधित्व करते हैं और बहुत से लोग ऎसे हैं जो खूब सारे जानवरों का मिश्रण लगते हैं।

दुनिया भर में मनुष्य इस मामले में अजीब ही है कि वह अपने व्यवहार और स्वभाव के मामले में उन्मुक्त, स्वच्छन्द और फ्री-स्टाईल हैं। जो हमें अच्छा लगता है वह करते हैं चाहे वह मजाक हो, खेल हो या फिर हकीकत।

आदमियों की जबर्दस्त बढ़ती जा रही है इस विस्फोटक भीड़ में मोबाइलखोरों की संख्या का कोई पार नहीं है। संचार क्रान्ति के मौजूदा युग में मोबाइल की आवश्यकता स्वयंसिद्ध है लेकिन इसका अति उपयोग, दुरुपयोग और अनावश्यक उपयोग बढ़ता जा रहा है।

बहुत सारे लोगों के लिए खिलौना हो गया है, खूब लोगों के लिए प्रतीक्षालय का साथी या टाईमपास का सहचर बना हुआ है। जो बचे-खुचे रह गए हैं उनके लिए यह जीवनदायी उपकरण हो गया है जैसे कि किसी आपदा के समय ऑक्सीजन सिलेण्डर या वेंटीलेटर।

हैरत की बात यह है कि बहुत से लोगों को यह तक नहीं पता कि मोबाइल का उपयोग कैसे किया जाए। मोबाइल का उपयोग करने के दूसरे सारे पहलुओं को छोड़ दिया जाए तो काफी लोगों को यह तक नहीं पता कि मोबाइल से बात कैसे की जाए।

आज भी लोग मोबाइल पर वैसे ही बातचीत करते हैं जैसे कि फोन का चोगा उठाकर किया करते थे। मोबाइल पर बात करते समय जितनी धीमी आवाज में बोला जाए, सामने वाले को उतना अधिक साफ-साफ और अच्छा सुनाई देता है।

इस यथार्थ से अनजान लोग मोबाइल पर चिल्ला-चिल्ला कर ऎसे बातें करते हैं जैसे कि सामने वाला खानदानी बहरा हो। अधिकांश लोगों की यह आदत ही हो गई है कि जब भी मोबाइल से बात करेंगे, जोरों से करेंगे और आस-पास पचास-सौ मीटर तक आवाज करते रहेंगे।

ये लोग यह भी नहीं देखते कि वे अपने काम-धंधों, प्रतिष्ठानों, दफ्तरों, बस-रेल या सार्वजनिक स्थलों में हैं अथवा राह चलते।  इनकी जो भी बातचीत होती है उसे वहां रहने वाला या पास से गुजरने वाला अच्छी तरह समझ जाता है कि माजरा क्या है।

अधिकतर बार फालतू की बातें  करते रहते हैं। इन शोरमचाऊ मोबाइल खोरों से परिसरों की शांति भंग होती है और ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग परेशान रहते हैं। ऎसे लोगों पर भी पाबंदी लगाने के लिए सरकार को आने वाले समय में शांति भंग की धाराओं में कुछ जोड़ना जरूर पड़ेगा, ऎसा लगता है।

हर स्थान पर ऎसे लोगों का जमावड़ा है जो मोबाइल से बात करते हुए दिन भर चिल्लाते रहेंगे जैसे कि किसी पर शब्द हमला कर रहे हों या माथे पड़ रहे होंं। इन लोगों को कोई कितना ही समझाए, इन नामसझों को कोई फर्क नहीं पड़ता। ये अपनी वाली करते रहते हैं।

अपनी कर्कश, बिना किसी काम की तथा तेज आवाजों से जमाने भर की शांति भंग करने का ठेका लिए हुए ये लोग अपनी मूर्खता का परिचय  देने से नहीं चूकते।

मोबाइल पर जोरों से बातचीत करने वाले किसी न किसी अंश में दिमाग से खिसके हुए होते हैं। इनकी जीवनचर्या, घरेलू माहौल और स्वभाव का गहरा अध्ययन किया जाए तो साफ-साफ पता चलेगा कि ये घर के लोगों, घरवाले या घरवाली के प्यार से वंचित हैं, पारिवारिक तनाव से भरे या शंकालु हैं अथवा सनकी, उद्विग्न और आत्मदुःखी स्वभाव वाले।

ये लोग दूसरों को तनाव देने व शोर मचाने के लिए ही पैदा हुए हैं और आम जिन्दगी में जब भी आमने-सामने बातचीत करेंगे, जोरों से ही। कई नीच प्रवृत्ति के लोग अपने पास मोबाइल है, यह जताने के लिए भी जोर-जोर से बोलते रहते हैं।

अपने आस-पास के ऎसे लोगों को समझाएं कि मोबाइल पर बातचीत का मजा तभी है जबकि हम धीरे-धीरे और सुस्पष्ट आवाज में बात करें। जोर से बोलने पर वाणी फट जाती है और सामने वाले को साफ-साफ समझ में भी नहीं आता।

वे समझ जाएं तो ठीक है वरना यह सोचकर चुप बैठ जाएं कि अभी मोबाइल-पागलों के लिए दुनिया में कोई पागलखाना नहीं खुला है।

ईश्वर से हम सभी यह कामना करें कि ऎसे लोगों को दिव्यांग माना जाए अथवा इनके लिए कहीं कोई पागलखाना स्थापित किया जाए ताकि हम सभी लोग चैन से रह सकें।

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