अगले पांच सालों में पृथ्वी अनुभव कर सकती है अपना सबसे गर्म साल

अगले पांच सालों में पृथ्वी अनुभव कर सकती है अपना सबसे गर्म साल

लखनऊ (निशांत कुमार )– इस बात की 90 फ़ीसद उम्मीद है कि साल 2021-2025 के बीच कम से कम एक साल ऐसा होगा जो अब तक सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड बनाएगा और पिछले रिकार्ड होल्डर, 2016 और 2020, को पीछे छोड़ देगा।
इस बात का ख़ुलासा हुआ है वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाइजेशन (डब्लूएम्ओ) और UK MET यूके (यूनाइटेड किंगडम) मेट (मौसम) कार्यालय की सालाना जारी होने वाली ताज़ा टू ग्लोबल क्लाइमेट अपडेट नाम की रिपोर्ट में, जो अगले पांच वर्षों के लिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों की भविष्यवाणी करती है।
रिपोर्ट मोटे तौर पर साल दर साल तापमान में वृद्धि को दिखाती है। साथ ही यह इस बात पर और स्पष्टता देती है कि हम अगले पांच वर्षों में अस्थायी रूप से 1.5C के वैश्विक औसत तापमान तक पहुंचने सकने की कितनी संभावना रखते हैं। हम जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के निचले लक्ष्य के मापने योग्य और अथक रूप से क़रीब आ रहे हैं। यह दुनिया को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धताओं के पूरा होने में तेज़ी लाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
पृथ्वी भी समान रूप से गर्म नहीं हो रही है और दुनिया के कुछ हिस्सों में पहले से ही 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर अस्थायी स्थानीय वार्मिंग का अनुभव हो रहा है, और इसके साथ आने वाले जलवायु प्रभावों का भी। पेरिस समझौता इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा के नीचे रखने, और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। उत्सर्जन में कटौती के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं, जिन्हें नेशनली डिटर्मिनड कंट्रिब्यूशंस के रूप में जाना जाता है, वर्तमान में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक से बहुत कम हैं। यह रिपोर्ट बढ़ते समुद्र के स्तर, समुद्री बर्फ के पिघलने और चरम मौसम जैसे जलवायु परिवर्तन संकेतकों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास पर बिगड़ते प्रभावों मंौ तेज़ी को भी दर्शाती है।
एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट के वरिष्ठ सहयोगी रिचर्ड ब्लैक ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जैसा कि WMO (डब्लूएमओ) नोट करता है, यह रिपोर्ट साफ़ करती है कि पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के दरवाजे को खुला रखने के लिए सरकारों और व्यवसायों को अगले कुछ वर्षों में कार्बन एमिशन को तत्काल कम करना चाहिए। इस रिपोर्ट की सबसे गर्म साल होने की चेतावनी एक अचूक चेतावनी संकेत है कि अगर सरकार ग़लत विकल्प चुनती है तो पृथ्वी की बेहतरी के दरवाज़े बंद हो जायेंगे।”
उन्होंने आगे कहा, “कोयला जलाने को समाप्त करने, जंगलों की रक्षा करने, मीथेन उत्सर्जन को कम करने और एनर्जी सेक्टर के वेस्ट को काटने वाले कदमों से कई लाभ होंगे। रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि दुनिया के सबसे गरीब देशों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ रहे हैं, जिससे विकसित देशों द्वारा वित्तीय सहायता के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का एक गंभीर मामला रच रहा है – जिसका अगले महीने के जी 7 शिखर सम्मेलन के एजेंडा में उच्च होना (उच्च प्राथमिकता रखना) निश्चित है।”
रिपोर्ट के अनुसार- 2021-2025 के दौरान अटलांटिक में हाल के पिछले दिनों की तुलना में अधिक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों होने की संभावना बढ़ गई है । साथ ही 2021 में, उत्तरी गोलार्ध में बड़े भू-क्षेत्रों के हाल के पिछले दिनों की तुलना में 0.8°C से अधिक गर्म होने की संभावना है ।
इस पर भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान की जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा, “ग्लोबल वार्मिंग से अतिरिक्त गर्मी का 93% से अधिक महासागरों द्वारा सोखा जाता है। महासागरों के बीच, कुछ क्षेत्र काफ़ी तेज़ी से गर्म हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में दर्ज की गई लम्बे समय में देखि गयी सतह की वार्मिंग 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस की रेंज में है। इसका मानसून और गंभीर मौसम की घटनाओं पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। समुद्र के गर्म होने की स्थिति के परिणामस्वरूप चक्रवातों के तेज़ी से तीव्रता भी हो रही है। हाल ही में तूफ़ान तौकते, एक कमज़ोर चक्रवात से बहुत कम समय में एक अत्यंत गंभीर चक्रवात में बदल गया।”

डब्ल्यूएमओ में यह भी कहा गया है कि 2021 में, आर्कटिक (60°N के उत्तर में) के हाल के पिछले दिनों की तुलना में वैश्विक औसत से दोगुने से अधिक गर्म हो चुके जाने की संभावना है। आर्कटिक मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट प्रोग्राम (आर्कटिक निगरानी और आकलन कार्यक्रम) (AMAP) (एएमएपी) के अनुसार पता चलता है कि 1979 और 2019 के बीच आर्कटिक औसत सतह के तापमान में वृद्धि इस अवधि के दौरान वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक थी। आर्कटिक समुदायों, पारिस्थितिक तंत्रों और प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, विशेष रूप से जब यह चरम घटनाओं से जुड़ा हुआ होता हैं, बेहद और तेज़ होता हैं। समुद्री बर्फ का नुकसान, ग्लेशियरों का रिट्रीट (पीछे हटना) और बर्फ का कम होना आम बात है।

आगे, गेल व्हाइटमैन, आर्कटिक बेसकैंप के संस्थापक और यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के बिज़नेस स्कूल में सस्टेनेबिलिटी के प्रोफेसर कहते हैं, “आर्कटिक पूरे विश्व की तुलना में लगभग तीन गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है, जो समुद्र के स्तर में वृद्धि को बढ़ा रहा है, और वैश्विक तापन को बढ़ाने के साथ-साथ चरम मौसम की घटनाओं को भी बदतर कर रहा है, कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया और साइबेरिया में जंगल की आग से लेकर उत्तरी अमेरिका, यूरोप और जापान में अत्यधिक बर्फबारी तक। आर्कटिक वार्मिंग पहले से ही दुनिया भर के नागरिकों, कंपनियों और देशों के लिए पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक जोखिम पैदा कर रही है।”
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