- November 13, 2020
ख़ासा तूफ़ानी भी है साल 2020!
एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में अटलांटिक सागर के हरीकेन सीज़न में इस साल आये रिकॉर्ड संख्या में नाम-वाले तूफान
किसी ट्रॉपिकल या उष्णकटिबंधीय तूफान को कोई ख़ास नाम तब दिया जाता है जब वो 39 मील प्रति घंटे (63 किलोमीटर प्रति घंटे) गति तक पहुंचता है। और इस तूफान को हरिकेन तब कहते हैं जब हवा की गति 74 मील प्रति घंटे (119 किलोमीटर प्रति घंटे) तक पहुंच जाए।
अब बात साल 2020 की करें तो कोविड के साथ इसे तूफानों का साल भी कहें तो शायद गलत न होगा।
दरअसल, अटलांटिक महासागर में हाल ही में उठा थीटा तूफान इस साल का 29वां नाम-वाला चक्रवात है। और इसी के साथ वर्ष 2020 में अटलांटिक हरीकेन सीज़न ने एक साल में सबसे ज्यादा नाम-वाले तूफानों का रिकॉर्ड भी कायम हो गया। पिछला रिकॉर्ड साल 2005 का था।
तो आखिर ऐसा क्या हुआ जो इस साल इतने सारे तीव्र गति वाले तूफ़ान आये?
वैज्ञानिकों का इशारा जलवायु परिवर्तन की ओर है और इस साल इतनी ज्यादा तादाद में तूफान आने के पीछे यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है।
पिछली एक सदी के दौरान जहां पूरी दुनिया में ट्रॉपिकल चक्रवाती तूफानों की संख्या में आमतौर पर निरन्तरता रही, वहीं अटलांटिक बेसिन में वर्ष 1980 से अब तक नाम-वाले तूफानों की तादाद में वृद्धि हुई है।
कुछ वैज्ञानिक वर्ष 2020 में रिकॉर्ड संख्या में चक्रवाती तूफान के आने का संबंध महासागरों के तापमान में हो रही वृद्धि से जोड़ते हैं। महासागरों का बढ़ता तापमान दरअसल इंसान की नुकसानदेह गतिविधियों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से हर साल नए नए रिकॉर्ड बना रहा है।
वैज्ञानिक कुछ अन्य कारणों की तरफ भी इशारा करते हैं, जिनकी वजह से हो सकता है कि क्षेत्र में दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों ही तरह के ट्रॉपिकल चक्रवातों की संख्या में इजाफा हुआ हो। खास तौर पर 1980 के दशक से वायु प्रदूषण में आई एक क्षेत्रीय गिरावट, जिसकी वजह से महासागर और गर्म हुए हों और ला नीना मौसम चक्र इस साल एक कारक रहा हो।
अब एक नज़र इस साल आये तूफानों से हुए नुकसान पर डाल ली जाये:
· अगस्त में आये कैटेगरी 4 के हरीकेन लॉरा की वजह से लूसियाना में भूस्खलन हुआ, जिसमें 77 लोगों की मौत हो गयी और सैकड़ों लोगों को मजबूरन अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा। एक अनुमान के मुताबिक इस आपदा से 14 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इस तूफान से प्रभावित 6500 से ज्यादा लोग दो महीने बाद भी शरणालयों में रह रहे हैं।
· लॉरा के दो हफ्ते बाद हरीकेन सैली अलबामा से टकराया। इसका असर फ्लोरिडा, मिसीसिपी और लूसियाना पर भी पड़ा। इसकी वजह से आठ लोगों की मौत हो गयी और 5 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ।
· हरीकेन एता वर्ष 2020 का अब तक का सबसे शक्तिशाली तूफान था। बेइंतहा तेजी पकड़ने के बाद इसे चौथी श्रेणीय में रखा गया और यह नवम्बर में आये सबसे ताकतवर तूफानों में शामिल किया गया। यह मध्य अमेरिका के इलाकों से टकराया, जिसकी वजह से कम से कम 130 लोगों की मौत हुई।
· अमेरिका के कुछ क्षेत्र खासतौर पर प्रभावित हुए। उदाहरण के तौर पर इस सीजन में लूसियाना से पांच नाम-वाले तूफान टकराये, जो एक नया रिकॉर्ड है। उनमें से अनेक तूफान तो बमुश्किल कुछ हफ्तों के अंतर पर आये हैं।
जहां इस साल यूएस इन तूफानों से बेहाल हुआ है, वहीं अमेरिका महाद्वीप के बेलीज, बरमूडा, कनाडा, गुआटेमाला, होंडूरास, मेक्सिको, निकारागुआ और पनामा में भी इन तूफानों से गम्भीर नुकसान हुआ है।
अटलांटिक में आने वाले तूफानों का नामकरण तभी किया जाता है जब उनकी रफ्तार 39 मील/घंटा से ज्यादा होती है। इस बिंदु पर पहुंचने पर वे ट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय) चक्रवात के तौर पर जाने जाते हैं। जब उनकी गति 74 मील/घंटा से ज्यादा हो जाती है, तब उन्हें हरीकेन की श्रेणी में रखा जाता है। ट्रॉपिकल चक्रवात इन शक्तिशाली तूफानों का एक सामान्य संदर्भ है। अटलांटिक में इन्हें हरीकेन के नाम से जाना जाता है, मगर अन्य स्थानों पर इन्हें चक्रवात या टाइफून कहा जाता है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका के अर्थ सिस्टम साइंस सेंटर के डायरेक्टर प्रोफेसर माइकल मन कहते हैं, “हमारे मौसम पूर्व सांख्यिकीय पूर्वानुमान ने यह बताया था कि इस हरिकेन सत्र में कम से कम 24 नामयुक्त समुद्री तूफान आएंगे। हालांकि यह अपनी तरह का सबसे बड़ा पूर्वानुमान था लेकिन यह सामने आई वास्तविकता के मुकाबले छोटा रह गया। अब तक आ चुके नामयुक्त तूफानों की संख्या पूर्वानुमान में बताई गई तादाद से पहले ही ज्यादा हो चुकी है। यह बढ़ी हुई संख्या उष्णकटिबंधीय अटलांटिक (इंसान की गतिविधियों के कारण उत्पन्न गर्मी भी इसके लिए कम से कम आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं) में अप्रत्याशित रूप से बड़ी हुई गर्मी पर आधारित है। ला नीना स्थितियों की बढ़ती संभावना भी इसमें शामिल है।”
वो आगे कहते हैं, ‘‘जैसे कि हम अपनी धरती और ट्रॉपिकल अटलांटिक को लगातार गर्म करते जा रहे हैं, ऐसे में ट्रॉपिकल चक्रवात और हरिकेन और भी शक्तिशाली हो जाएंगे। जब ला नीना की स्थितियां बनती हैं तो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की पुष्टि होती हैं और हमें विनाशकारी तूफानों का सामना करना पड़ता है। जैसा कि हम इस वक्त कर रहे हैं।’’
इसी विषय पर नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर केविन ट्रेनबर्थ आगे कहते हैं, “इंसान की गतिविधियों के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ और अधिक मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध है जो अधिक भीषण हरिकेन गतिविधि को बढ़ावा देती है। यह संपूर्ण मौसम के लिए या एकल तूफानों के तौर पर भी कई तरह से प्रकट हो सकता है। अधिक संख्या, अधिक तीव्रता, अधिक बड़ा, ज्यादा समय तक रहने वाला और सभी मामलों में अधिक वर्षा तथा बाढ़ की संभावना। वर्ष 2020 में अटलांटिक में नामयुक्त हरिकेन तूफानों की संख्या असाधारण है। सभी तूफान वाष्पीकृत शीतलन के रूप में समुद्र से गर्मी सोखते हैं जो अव्यक्त हीटिंग के माध्यम से तूफान के लिए ऊर्जा प्रदान करता है और बहुत बड़े तथा तीव्र तूफान बाद में आने वाले तूफानों के अवरोध के लिए उनके पीछे एक स्पष्ट कोल्ड वेक छोड़ देते हैं, वर्जिन ओशन को ढूंढने की चक्रवातों की क्षमता उनके आगे बढ़ने की संभावनाओं को बढ़ा देती है।”
अटलांटिक में तूफानों की इतनी तादाद में आमद पर यूनिवर्सिटी कॉरपोरेशन फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च एण्ड एनओएए की जियोफिजिकल फ्लूड्स डायनेमिक्स लैबोरेटरी में प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉक्टर हिरोयुकी मुराकामी कहते हैं, “हो सकता है कि वर्ष 1980-2020 के दौरान मानवजनित एयरोसोल के उत्सर्जन में गिरावट की वजह से अटलांटिक हरीकेन में तेजी का रुख रहा हो। प्रदूषण नियंत्रण के लिये उठाये गये कदमों की वजह से पार्टिकुलेट प्रदूषण में आयी गिरावट से महासागर अधिक मात्रा में धूप अवशोषित करते हैं, जिससे उनके तापमान में बढ़ोत्तरी हुई है।
उत्तरी अटलांटिक में पिछले 40 वर्षों से इस स्थानीय वार्मिंग की वजह से ट्रॉपिकल चक्रवाती गतिविधि में इजाफा हुआ है। एक वजह ये हो सकती है कि 1980 और 1990 के दशकों के दौरान उत्तरी अटलांटिक में हरीकेन अपेक्षाकृत निष्क्रिय था। ऐसा वर्ष 1982 में मेक्सिको के एल चिचोक और वर्ष 1991 में फिलीपींस के पिनाटुबो में प्रमुख ज्वालामुखीय विस्फोटों और के कारण हुआ। इनकी वजह से उत्तरी गोलार्द्ध का वातावरण ठंडा हो गया। वर्ष 2000 के बाद से उत्तर अटलांटिक में तूफान की गतिविधि के फिर से पलटने के कारण महासागरीय वार्मिंग का सिलसिला साल 2000 से फिर से शुरू हो गया है।”
वो आगे एक और वजह बताते हैं और कहते हैं, “ला नीना की स्थिति वर्ष 2020 की गर्मियों में विकसित हुई है। उष्णकटिबंधीय प्रशांत में इस ला नीना की स्थिति ने दूर से बड़े पैमाने पर परिसंचरण (सर्कुलेशन) को प्रभावित किया जिससे उत्तरी अटलांटिक में सक्रिय तूफान का मौसम आया।”
उनकी मानें तो उनके बताये पहले और दूसरे कारक दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन से संबंधित हैं, जबकि तीसरा कारक आंतरिक परिवर्तनशीलता से संबंधित है।
डॉक्टर हिरोयुकी मुराकामी कहते हैं, “मैं अनुमान लगाता हूं कि सक्रिय 2020 तूफान का मौसम दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन और आंतरिक परिवर्तनशीलता का एक संयोजन था।”
आगे, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर केरी इमैनुअल ने कहा, “1980 के दशक की शुरुआत से अटलांटिक उष्णकटिबंधीय चक्रवात गतिविधि के सभी मैट्रिक्स में एक असमान रूप से बढ़त का रुझान रहा है, लेकिन यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह ज्यादातर वैश्विक के बजाय एक क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के कारण है।
दरअसल सल्फेट एयरोसोल इंसानी गतिविधियों के कारण पैदा हुआ सबसे अच्छा उदाहरण है। यह एयरोसोल जीवाश्म ईंधन को जलाने की वजह से पैदा होते हैं। इन एयरोसोल की मात्रा में 1950 से लेकर 1980 के दशक के बीच तेजी से बढ़ोत्तरी हुई और फिर साफ हवा की गतिविधि की वजह से उसी रफ्तार से इनमें गिरावट भी हुई है। उनका अप्रत्यक्ष प्रभाव यह रहा कि इससे ट्रॉपिकल अटलांटिक ठंडा हुआ, नतीजतन 70 और 80 के दशक में हरीकेन खामोश रहे। हमारा मानना है कि उसके बाद हुआ इजाफा वायु प्रदूषण में कमी की वजह से हुआ है।”
इस साल अटलांटिक में चक्रवाती तूफानों और महासागरों की दीर्घकालिक वॉर्मिंग के बीच संभावित संबंध के साथ-साथ कई अन्य कारण भी हैं, जिनसे जलवायु परिवर्तन की वजह से ट्रॉपिकल चक्रवाती तूफानों का खतरा बढ़ता है।
तापमान और तूफान की शक्ति
अब एक नज़र तूफानों के विज्ञान पर डाल ले। चक्रवात उपलब्ध ऊष्मा से शक्ति हासिल करते हैं। गर्म होते समुद्र उन्हें उपलब्ध होने वाली ऊर्जा की वजह से इन चक्रवातों को और भी शक्तिशाली बना सकते हैं। यह ऊर्जा उनकी शक्ति या गति सीमा को प्रभावशाली तरीके से बढ़ाती है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पूरी दुनिया में महासागरों का तापमान बढ़ा है और हाल के दशकों में सबसे शक्तिशाली समुद्री तूफानों की तीव्रता में वैश्विक वृद्धि हुई है। जून में प्रकाशित एक अध्ययन में इस रुख की पुष्टि की गई है। अध्ययन में यह पाया गया है कि एक दशक में सबसे शक्तिशाली तूफानों का अनुपात करीब 8% बढ़ा है। इस साल हरिकेन एता नवंबर में आये सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक था।
पिछले कुछ वर्षों में मानव की गतिविधियों की वजह से उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसों के कारण समुद्र के तापमान में इजाफा हुआ है। पिछले 5 वर्ष साल 1955 के बाद से महासागरों के लिहाज से सबसे गर्म साल रहे हैं।
द्वारा Cheng et al (2020).
तीव्रता में तेजी से बढ़ोत्तरी
ट्रॉपिकल चक्रवाती का अनुपात तेजी से बढ़ रहा है, जिसे रैपिड इंटेंसिफिकेशन भी कहा जाता है। विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक इन बदलावों का संबंध जलवायु परिवर्तन से है। महासागरों का गर्म पानी इस तीव्रता में वृद्धि का एक कारक है, लिहाजा मानव की गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के कारण बढ़ा महासागर का तापमान इस तीव्रता की संभावना को और बढ़ा देता है। तीव्रता में तेजी से बढ़ोत्तरी एक खतरा है क्योंकि इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि समुद्री तूफान कैसा होगा, लिहाजा उसके तट से टकराने की स्थिति से निपटने के लिए कैसी तैयारी की जाए।
2020 अटलांटिक सीजन के नौ ट्रॉपिकल तूफान (हन्ना, लॉरा, सैली, टेडी, गामा डेल्टा, इप्सिलोन, जीटा और एता) प्रबल तीव्रता वाले थे।
ज्यादा तेज बारिश
धरती का वातावरण कार्बन उत्सर्जन की वजह से गर्म हो रहा है। गर्म वातावरण ज्यादा मात्रा में पानी को ग्रहण कर सकता है जिसकी वजह से चक्रवातों के दौरान जबरदस्त बारिश होती है। इससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिक वातावरण में नमी बढ़ने का सीधा संबंध मानव जनित जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं। हाल के दशकों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश की घटनाओं में वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है। यह ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है और वैज्ञानिकों का पूर्वानुमान है कि जलवायु परिवर्तन अगर जारी रहा तो समुद्री तूफानों के कारण होने वाली बारिश में वृद्धि होगी।
तूफानों का बढ़ता आक्रमण
चक्रवातों की वजह से तूफान के वेग को अक्सर सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तूफान की तेजी में होने वाली वृद्धि समुद्रों का जलस्तर बढ़ने के कारण हो सकती है। इसके अलावा बढ़ता हुआ आकार और तूफानी हवाओं की बढ़ती गति भी इसका कारण हो सकती हैं। वैश्विक जलस्तर पहले से ही करीब 23 सेंटीमीटर तक बढ़ चुका है। इंसान की गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले कार्बन प्रदूषण की वजह से ऐसा हुआ है।