- September 18, 2016
क़ानून-व्यवस्था में सपा सरकार के बुरी तरह से विफल–
सोची-समझी रणनीति के तहत् सपा मुखिया श्री मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई को आमचुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सपा का अध्यक्ष बनाया
शासन-प्रशासन पूरी तरह से ठप्प।
नई दिल्ली, 18 सितम्बर, 2016: बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, सुश्री मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश में शीघ्र ही होने वाले विधानसभा आमचुनाव में सपा की होने वाली अवश्यंभावी करारी हार का ठीकरा अपने पुत्र के सर पर फूटने से बचाने हेतु सपा मुखिया ने अपने भाई श्री शिवपाल सिंह यादव को आमचुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश सपा का अध्यक्ष बना दिया।
सत्ताधारी समाजवादी पार्टी व परिवार में वर्चस्व को लेकर जारी संघर्ष व गृहयुद्ध की ड्रामेबाजी में सपा प्रमुख श्री मुलायम सिंह यादव के हावी पुत्रमोह पर से प्रदेश की जनता का ध्यान बांटा जा सके।
प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी व परिवार में अपने पुत्र व प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री को पूरी तरह से स्थापित करने के लिये पिछले दिनों सपा मुखिया श्री मुलायम सिंह यादव द्वारा एक सोची-समझी रणनीति के तहत् की गयी क़िस्म-क़िस्म की नाटकबाज़ी का लगभग वैसे ही पटाक्षेप जनता के सामने हो गया है जैसा कि उसकी स्क्रिप्ट तैयार की गयी थी।
इसकी क़ीमत उनके भाई मंत्री श्री शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश की तथा प्रदेश की जनता को अपने अमन-चैन व जान-माल की क़ीमत से चुकानी पड़ी हो जैसा कि बिजनौर में कल साम्प्रदायिक दंगे के दौरान् हुआ और तीन लोगों की जान चली गयी तथा प्रदेश में लोग सहम से गये।
इस बार पार्टी में भूचाल की रणनीति विधानसभा चुनाव से पहले संभावित हार की ज़िम्मेदारी से बचाने के लिये तैयार किया गया था, जिसके लिये सारी नाटकबाजी की गयी व प्रदेश की शांति-व्यवस्था प्रभावित हुआ एवं साथ ही यहाँ प्रदेश में अराजकता व जंगलराज को और बढ़ावा मिला।
हर मामले में विफल सपा सरकार श्री शिवपाल सिंह यादव को बलि का बकरा बनाया। स्पष्ट है की सपा परिवार में पारिवारिक ड्रामा एक सोची-समझी राजनीति व रणनीति का हिस्सा है।
ड्रामेबाजी का अन्त वैसा ही हुआ है जिसकी आशंका थी अर्थात कुल मिलाकर श्री मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र को प्रश्रय दिया और पार्टी का टिकट बांटने का लगभग एकाधिकार भी सौंप दिया।
वर्तमान में भी जब खनन माफिया को संरक्षण देने व उससे सम्बन्धित बहुत बड़े भ्रष्टाचार का ख़ुलासा, सी.बी.आई. ने माननीय न्यायालय के सामने अपनी रिपोर्ट में किया है।
माननीय अदालत ने खनन में व्यापक भ्रष्टाचार व उसमें लिप्त बड़े लोगों के मामले की जाँच सी.बी.आई. को सौंपी है, जिसके विरूद्ध एक तरफ इस सी.बी.आई. जाँच को रुकवाने के लिये ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है तो दूसरी तरफ इस गम्भीर संकट पर से लोगों का ध्यान बाँटने के साथ-साथ पुत्रमोह में कई मंत्री व अपने छोटे भाई को बलि का बकरा बनाकर सपा प्रमुख द्वारा किस्म-किस्म की पारिवारिक ड्रामेबाजी लगातार की जा रही है।
इससे हालांकि प्रदेश व प्रदेश के लगभग 22 करोड़ जनता का ज़बर्दस्त अहित हो रहा है और इस क्रम में ना जाने कितने ही और लोगों व अधिकारियों आदि को बलि का बकरा बनाकर कुर्बान कर दिया जायेगा।
’’अंसारी भाइयों’’ की पार्टी ’कौमी एकता मंच’ के विलय को लेकर भी सपा प्रमुख ने पुत्रमोह का ही परिचय देते हुये पहले उसका बड़े तामझाम के साथ विलय कराया किन्तु फिर अपने पुत्र की इमेज को सहारा देने के लिये उससे एक वरिष्ठ मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करवाकर पार्टी में दबाव बनवा कर फिर ’’अंसारी भाइयों’’ को बेइज़्ज़त करते हुये उस विलय को रद्द करवा दिया था।
सपा सरकार के मुखिया द्वारा खनन मामले में भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्री को पहले बर्खास्त करना और फिर से उसे मन्त्री बनाना, दाल में जरूर जबरदस्त काला है। अर्थात् यदि सम्बन्धित मन्त्री ईमानदार है, तो उसे फिर क्यों हटाया गया है और यदि उसके पहले विभाग में जबरदस्त भ्रष्टाचार हो रहा था तो फिर ऐसा मन्त्री दूसरे विभाग में भ्रष्टाचार नहीं करेगा।
बी.एस.पी. का यही कहना है कि उत्तर प्रदेश में व्याप्त हर प्रकार की अव्यवस्था व अराजकता एवं जंगलराज के बावजूद केन्द्र की भाजपा सरकार की चुप्पी व यहाँ की सपा सरकार के प्रति उसके नरम व मुलायम रवैये से लोग काफी ज़्यादा दुःखी है।
भाजपा व प्रदेश से चुने गये उसके 73 सांसद एवं मंत्री तथा स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी रहस्यात्मक तौर पर चुप्पी साधे हुये हैं। यह लोगों को काफी ज्यादा हैरान व परेशान करने वाली बात है।
क्या चुनावी रणनीति के तहत् यह सपा-भाजपा की आपसी मिलीभगत का परिणाम तो नहीं है ?
उत्तर प्रदेश व यहाँ की आमजनता भारी संकट के दौर से गुजर रही है तो इसके लिये यहाँ की सपा सरकार के साथ-साथ भाजपा व केन्द्र की उसकी सरकार क्या दोषी नही है ?
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