स्त्री — कुमारी रितिका (कक्षा-11वीं) :: उड़ान — डॉली गढ़िया

स्त्री —  कुमारी रितिका (कक्षा-11वीं)  ::   उड़ान  — डॉली गढ़िया

उसकी एक मुस्कान हर गम को भूला देती है।
इसका एक स्पर्श ममता भी कहलाती है।।

वह जन्म देती है, सारी दुनिया को।
दुर्गा भी वही, काली भी कहलाती है।।

वह गुज़रती है कई पीड़ा से।
उसकी जिंदगी कभी दहेज तो कभी भूख से मर जाती है।।

स्त्री ही जीवन को संवारती है।।
फिर कैसे वह बोझ बन जाती है।।

मोहताज नहीं होती वो किसी गुलाब की।
वो तो बागबान होती है इस कायनात की।

वो स्त्री है, जीवन को निखारती है।।

पता ::
चोरसौ, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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उड़ान — डॉली गढ़िया

उड़ना है हमको उड़ना है।
पंछी की तरह उड़ना है।।

अब न किसी से डरना है।
हर मुश्किल से लड़ना है।।

गंदी सोच को मिटाएगें।
अच्छी सोच को आगे बढ़ाएंगे।।

इस बड़ी सी दुनिया में।
अपनी एक पहचान बनाएगें।।

बुरे पल को भूल जाएंगे।
कल में नहीं, आज में जिएंगे।।

इस छोटी सी जिंदगी में।
अपनी खुशियां जिएगें।।

हरे भरे हो पेड़ वहां।
सुगंध हो फूलों की जहां।।

न किसी का डर हो।
न भय हो कोई वहां।।

बस अपनी मंजिल नेक हो।
अब तो उड़ना है हमको, उड़ना है।।
पंछी की तरह उड़ना है।।

पता ::
पोथिंग, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

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