सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है – प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव

सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है – प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव

संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है। लेखकों, कवियों और साहित्यकारों को अपनी बात रखने के लिए मंच प्रदान किया है। श्री श्रीवास्तव आज  ‘संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में मूल्यनिष्ठता’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संविमर्श संबोधित कर रहे थे। संविमर्श का आयोजन महाकुम्भ सिंहस्थ-2016 के परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की।

श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि सार्वजनिक जीवन पर टीका-टिप्पणी अब चारदीवारी में दम नहीं तोड़ती, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए मुखर होती है। उन्होंने कहा कि स्टिंग और स्क्रीन की अधिकता से मनुष्य खुद को घिरा-घिरा अनुभव कर रहा है। वह टेलीविजन के शोर में एकांत तलाश रहा है। उन्होंने कहा कि कार्ल मार्क्स ने उस समय धर्म को अफीम कहा था जब टेलीविजन और सोशल मीडिया नहीं थे। यदि आज कार्ल मार्क्स जीवित होते तो निश्चित ही टेलीविजन और सोशल मीडिया को अफीम कहते। कोई व्यक्ति जितना वक्त अपने काम पर खर्च करता है, लगभग उतना ही समय वह टेलीविजन और सोशल मीडिया पर खर्च कर रहा है।

कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि कुम्भ के मेले मात्र धार्मिक नहीं हैं। उन्होंने बताया कि बौद्धिकता कुछ लोगों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज के आमजन तक जाए, यह कुम्भ मेलों का उद्देश्य रहता है। कुम्भ में आकर व्यक्ति अपनी जिज्ञासा का समाधान तलाशता है। इसी को ध्यान में रखते हुए तय किया गया है कि जीवन के मूल्य क्या होने चाहिए? इस पर सिंहस्थ से पूर्व व्यापक विमर्श कर एक बौद्धिक वातावरण का निर्माण किया जाए। उन्होंने कहा कि मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी के क्या मूल्य हों? इस पर विमर्श की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय संविमर्श के पहले दिन तीन अलग-अलग सत्र में वक्ताओं ने कहा कि मीडिया, सूचना प्रौद्योगिकी और इससे जुड़े प्रोफेशनल्स के मूल्य समाज और देश के हित में होने चाहिए। ‘मानव जीवन के मूल्य और उनकी मीडिया में प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित सत्र के मुख्य वक्ता और कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि मूल्य दो तरह के होते हैं, शाश्वत मूल्य और व्यक्तिपरक मूल्य। जनसंपर्क विशेषज्ञ श्री सुभाष सूद ने कहा कि मीडिया के क्षेत्र में शाश्वत मूल्यों और व्यक्तिपरक मूल्यों को जोड़ा जाना चाहिए। व्यावहारिकता और आदर्श के बीच समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है। इस दौरान दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार श्री केजी सुरेश ने उदाहरणों के माध्यम से मीडिया के मूल्यों को चिह्नित किया। चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार सर्वश्री राकेश शर्मा,  अशोक मलिक,  कुशल सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

दूसरे सत्र में मीडिया वृतिज्ञों (प्रोफेशनल्स) के मूल्यों पर विमर्श किया गया। सत्र की मुख्य वक्ता मीडिया विशेषज्ञ डॉ. निमो धर थी तथा अध्यक्षता अहमदाबाद के श्री विनोद सी. अग्रवाल ने की। डॉ. एमआर पात्रा (हिसार), श्री विश्वेश ठाकरे (रायपुर), श्रीमती ममता ओझा (इंदौर), प्रो. सीपी अग्रवाल,  डॉ. अनुराग सीठा और डॉ. पी. शशिकला ने भी विचार व्यक्त किए। तीसरे सत्र में मीडिया शिक्षक,  शोधार्थी, सूचना अधिकार कार्यकर्ता, एनजीओ कार्यकर्ता और मीडिया विद्यार्थियों के मूल्यों पर विमर्श किया गया। सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. गुरुदत्त थे और अध्यक्षता डॉ. विनोद सी. अग्रवाल ने की। मीडिया विशेषज्ञ डॉ. शाहिद अली, डॉ. श्रीकांत सिंह, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव और डॉ. मोनिका वर्मा ने विचार प्रस्तुत किए। राष्ट्रीय संविमर्श में रविवार को संपादक, उपसंपादक, रिपोर्टर, लेखक, मीडिया प्रबंधक, फिल्म निर्माता के जीवन मूल्यों पर विचार विमर्श किया जाएगा।    

प्रलय श्रीवास्तव

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