- August 19, 2017
सोशल मीडिया : कहीं हम ही तो समस्या नहीं ? – सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में सोशल मीडिया के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जिस प्रकार से दुरुपयोग किया जा रहा है। वह देश में समाधान कम, समस्या ज्यादा पैदा करता हुआ दिखाई दे रहा है।
वास्तव में सोशल मीडिया से समाज का बहुत बड़ा हिस्सा जुड़ा हुआ है, इस कारण इस प्रचार तंत्र पर समाज की भावनाएं बिना किसी नियंत्रण के परोसी जा रही हैं। यह सत्य है कि सोशल मीडिया पर जारी किए जाने वाले विचारों के कारण कई स्थानों पर समाज घातक स्थितियां भी निर्मित हुर्इं हैं। दंगे भी हुए हैं और देश के विरोध में भी वातावरण बनता हुआ भी दिखाई दिया है। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि आज हम कई प्रकार के पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं, जो किसी न किसी प्रकार से सामाजिक असमानता की खाई को और चौड़ा करने का काम कर रही है।
सामाजिक प्रचार तंत्र वास्तव में अपने विचार प्रस्तुत करने का सबसे उचित माध्यम है। लेकिन हमें अपने विचार प्रस्तुत करते समय यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि हमारी बातों से किसी का अहित तो नहीं हो रहा।
देश के महान चिंतक डॉ. शिव खेड़ा का कहना है कि हम अगर समाधान का हिस्सा नहीं बन सकते तो वास्तव में हम ही समस्या हैं।
आज सोशल मीडिया पर भी कई बार ऐसी ही स्थिति बनती दिखाई देती है। लोग समस्या को और बड़ी बनाने की कवायद करते दिखाई देते हैं। उस समस्या को समाप्त करने में मेरी अपनी क्या भूमिका है, इस बारे में भी चिंतन होना चाहिए। नहीं तो हम केवल समस्या ही व्यक्त करते रहेंगे तो समाधान कौन देगा। हमें समाधान की दिशा में आगे आना होगा।
सोशल मीडिया समाज की राय व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। जब इसे मीडिया का नाम दिया गया है तो निश्चित ही यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की श्रेणी में भी आता है। हमें इस बात का विचार अवश्य ही करना चाहिए कि लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में जो भी उपाय किए जा सकते हैं, वह करना भी चाहिए। इसके लिए सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करना चाहिए।
आज हम सोशल मीडिया पर जिस प्रकार के विचारों का सामना कर रहे हैं, वे कभी -कभी ऐसे लगते हैं कि यही न्यायपालिका और सरकारों के मार्गदर्शक हैं। कभी- कभी तो यह भी देखने में आता है कि स्व-नाम धन्य विचारकों की यह भीड़ अपना निर्णय तक सुना देती है। समाज में विद्वेष का जहर घोलने वाले यह विचारक जरा अपनी भूमिका विचार करें तो इन्हें स्वत: ही समझ में आ जाएगा कि अगर हम समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकते तो हम ही दोषी हैं।
अभी हाल ही में घटित हुए वर्णिका घटनाक्रम और गोरखपुर अस्पताल हादसे को लेकर जिस प्रकार की सक्रियता सोशल मीडिया पर देखी गई, वह एक प्रकार से सही भी कहा जा सकता है। क्योंकि इस घटना से समाज में जबरदस्त प्रतिकिया हुई है,
लेकिन क्या हमने सोचा है कि वास्तव में दोष कहां है?
ऐसी घटनाओं के पूरी तरह से समाज ही दोषी है, सरकार नहीं।
हां, यह बात अवश्य है कि सरकार की भी जिम्मेदारी होती है, लेकिन उन जिम्मेदारियों का निर्वाह कैसे किया जाना है, यह हम सबकी जिम्मेदारी है। हम किसी भी घटना के लिए सीधे तौर पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर देते हैं। बुराई के लिए दूसरों पर आरोप लगाना ही हमारी नियति बन गई है। छोटे से काम के लिए भी हम दूसरों के ऊपर आश्रित होते जा रहे हैं।
क्या यही हमारी भूमिका है ?
हम भी समाज का हिस्सा हैं, इसलिए हमारी भी समाज के प्रति जिम्मेदारी बनती है। हम सोशल मीडिया के माध्यम से अवगुणों को प्रस्तुत करके कौन सी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं। हम कैसे समाज का निर्माण करना चाह रहे हैं? हम जैसा अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही हमें विचार प्रस्तुत करना चाहिए। एक ऐसा विचार जो समाज को सकारात्मक दिशा का बोध करा सके।
प्राय: कहा जाता है कि बार-बार नकारात्मकता की बातें की जाएंगी तो स्वाभाविक ही है कि यही नकारात्मक चिंतन समाज को गलत दिशा में ले जा सकता है। इसलिए सबसे पहले हमें अपनी भूमिका तय करनी होगी, तभी हम समाज और देश के साथ न्याय कर पाएंगे, नहीं तो भविष्य क्या होगा, इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर अधकचरे राजनीतिक ज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच जो विचार प्रस्तुत किए जा रहे हैं। वह सभी विद्वेष पर आधारित एक कल्पना को ही उजागर कर रहे हैं।
मेरे साथ हुए एक घटनाक्रम का उदाहरण देना चाहूंगा, जिसमें मैंने सोशल मीडिया पर राष्ट्र की जिम्मेदारियों से संबंधित अपनी भूमिका के बारे में चिंतन करते हुए सवाल किया था कि हमें चीन की वस्तुओं का त्याग करना होगा और स्वदेशी को बढ़ावा देते हुए अपने राष्ट्र की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
इस बात पर कई जवाब आए, एक ने तो यहां तक कह दिया कि मोदी भक्त ऐसी ही बातें करते हैं।
अब जरा बताइए कि इसमें मोदी भक्ति कहां से आ गई। क्या राष्ट्रीय चिंतन को प्रस्तुत करना मोदी भक्ति है। वास्तव में देश के उत्थान के बारे में किसी भी विचार का हम सभी को सकारात्मकता के साथ समर्थन करना चाहिए, लेकिन हमारे देश में इस पर भी सवाल उठाए जाते हैं। यह कौन सी मानसिकता है।
जहां तक असामाजिक तत्वों द्वारा की जा रही गतिविधियों का सवाल है तो यक असामाजिक तत्व कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने वाले लोग ही होते हैं। उनको कौन से राजनीतिक दल संरक्षण प्रदान करते हैं, यह देश की जनता प्रमाणित कर चुकी है।
हम सोशल मीडिया पर परिपक्व विचारों को लाएंगे, तो समाज के बीच वैमनस्यता पैदा करने वाली शक्तियों को भी दिशा देने का मार्ग दिखा सकते हैं, लेकिन फिलहाल ऐसा दिखाई नहीं दे रहा। ऐसे में सवाल यही आता है कि फिर काहे का सोशल मीडिया।
वास्तव में सोशल मीडिया वही होता है जिसमें सामाजिक प्रगति का चिंतन हो। अगर यह सब नहीं होगा तो स्वाभाविक ही है कि हम अपने विचारों को संकीर्ण बनाने का काम ही करेंगे। जो हमारे लिए भी दुखदायी होगा और समाज के लिए भी।