- December 10, 2022
सेबी के पंजीकृत सलाहकारों संबंधी नियमन एकदम निष्प्रभावी
बिजनेस स्टैण्डर्ड ———— बाजार में तेजी का हर दौर पिछले दौर से अलग होता है। यह बात केवल शेयरों के प्रकार और विभिन्न क्षेत्रों पर ही लागू नहीं होती बल्कि इससे होने वाले सामाजिक बदलावों पर भी यह बात लागू होती है। 2020 के मध्य में आरंभ हुए तेजी के दौर के कारण दो बदलाव आए: पहला, नए खाते खुलने में जबरदस्त तेजी आई और दूसरा, ऐसे सोशल मीडिया हैंडलों और चैनलों का जमकर विस्तार हुआ जो शेयरों की खरीद बिक्री को लेकर सलाह देते हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो वे इतने अधिक बड़े और प्रभावशाली हो गए कि वे भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के उन तीन नियमों का मजाक सा उड़ा रहे हैं जो निवेश सलाह, निवेश शोध और पोर्टफोलियो प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में गतिविधियों का संचालन करते हैं। अब सेबी इन फाइनैंशियल इन्फ्लुएंसर्स के लिए अलग नियम बनाने की योजना बना रहा है। ये इन्फ्लुएंसर सोशल मीडिया पर सामान्य निवेशकों को शेयरों, सामान्य निवेश, म्युचुअल फंड आदि को लेकर बिन मांगी सलाह देते हैं। क्या सेबी की योजना कारगर साबित होगी?
खेद की बात है कि जिन्न पहले ही बोतल से बाहर आ चुका है और अब उसे वापस बोतल में नहीं डाला जा सकता है। इन लोगों के आकार, गतिविधि और प्रभाव को देखा जाए तो वह इतना अधिक हो चुका है कि पंजीकृत सलाहकारों के लिए सेबी के कठोर नियम भी निष्प्रभावी नजर आ रहे हैं और उनका पालन करने वाले प्राय: बेवकूफ दिख रहे हैं। सेबी को समझना होगा कि समस्या बहुत बड़ी है। मैं अपनी बात की शुरुआत तीन नियमों की व्याख्या के साथ करूंगा।
वित्तीय उपभोक्ता या अनुशंसाओं के आधार पर खरीद बिक्री करना चाहते हैं या फिर वे चाहते हैं कि उनकी मुद्रा का प्रबंधन किया जाए। खरीद बिक्री संबंधी अनुशंसाओं का संचालन सेबी के शोध विश्लेषक (आरए) नियमन एवं निवेश सलाह नियमन द्वारा होता है। शोध विश्लेषक वे होते हैं जो ऐसी शोध रिपोर्ट तैयार करते हैं जो किसी शेयर के बारे में वित्तीय और परिचालन जानकारी, उसकी कीमतों का इतिहास, अनुशंसाएं, लक्षित मूल्य आदि मुहैया कराती है। उन्हें रिपोर्ट का इस्तेमाल करने वालों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। स्वतंत्र शोध विश्लेषकों को प्रोत्साहित करने के लिए शायद ही कोई कदम उठाया जा रहा हो। सेबी के नियम मोटे तौर पर ब्रोकर शोध को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं।
निवेश सलाहकार (आईए) इससे परे जाकर वित्तीय नियोजन, दीर्घकालिक पोर्टफोलियो निर्माझा, पोर्टफोलियो पर नजर रखने, पुनर्संतुलन कायम करने जैसे काम करते हैं। उनकी सलाह अलग-अलग लोगों को ध्यान में रखकर खास उनके हिसाब से बनाई जाती है। उनके लिए सेबी के नियमन भी बहुत सख्त हैं। वे क्रेडिट कार्ड के माध्यम से शुल्क नहीं ले सकते, उन्हें 26 प्रावधानों वाले निवेशक समझौते पर हस्ताक्षर करने होते हैं और उन्हें दी जाने वाली हर सलाह का उचित तर्क के साथ रिकॉर्ड रखना होता है।
उन्हें टेलीफोन रिकॉर्डिंग, ईमेल और एसएमएस को पांच सालों तक सुरक्षित रखना होता है क्योंकि यह विधिक रुप से जांचे जा सकने योग्य हैं। यह सब इतना अव्यावहारिक है कि इसके चलते निवेश विश्लेषकों का कारोबार एकदम ठप है। डीमैट खातों में आई तेज उछाल के बावजूद सलाहकार कारोबार में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
बहरहाल इसके बावजूद सेबी में इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। नियामक का काम नियम बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है। वह नियमों के नतीजों या कारोबारी वृद्धि पर उनके असर को लेकर जिम्मेदार नहीं है। भले ही अवैध सलाहकार सेवाएं फल फूल रही हों। शोध विश्लेषक और निवेश विश्लेषक ग्राहक का पैसा स्वीकार नहीं कर सकते हैं ना ही उसका प्रबंधन कर सकते हैं। इसके लिए एक तीसरा नियम है जो पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं को कवर करता है। आप आप शोध, सलाह और प्रबंधन तीनों ही नहीं कर सकते हैं। यदि आपको ऐसा करना है तो सेबी में पंजीयन कराना होगा या नियमों का पालन करना होगा। सेबी का काम कितना कठिन है यह समझने के लिए देखना होगा कि इन तीनों नियमों का कितनी तरह से उल्लंघन किया जाता है।
यूट्यूब: अवैध सलाह के लिए ज्यादातर यूट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर एन्फ्लुएंसर यहां अपने वीडियो पोस्ट करते हैं। जो ज्यादातर हिंदी, किसी क्षेत्रीय भाषा या हिंग्लिश में होते हैं। उनके निशाने पर छोटे शहरों के गैर अंग्रेजी भाषा निवेशक होते हैं। इन वीडियोज के शीर्षक कुछ इस प्रकार होते हैं: ‘अपना पहला शेयर कैसे खरीदें’, ‘सोने से नियमित आय हासिल करें’ अथवा ‘20 वर्षों में कमाए ढाई करोड़ रुपये! कैसे?’
जब क्रिप्टोकरेंसी उछाल पर थी तो उनका जोर क्रिप्टो भर था ऐसे में लोगों ने लाखों रुपये कमाए। जब भी वह किसी शहर की अनुशंसा करते हैं वह एक अवैध काम कर रहे होते हैं। वे केवल शैक्षणिक वीडियो बना सकते हैं लेकिन उन्हें शायद दर्शक नहीं मिलेंगे।
टेलीग्राम/कॉस्मोफीड: निवेश संबंधी विचारों के चार्ट में विश्लेषण तथा अन्य तस्वीरों के लिए जहां यूट्यूब की जरूरत होती है वही टेलीग्राम चैनल शेयर संबंधी सलाह के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। कई नई एप्लिकेशन भी यही कर रही हैं। कॉस्मोफीड और रिजी ऐसी ही एप्स हैं। ऐसी नई ऐप निर्माता को भुगतान स्वीकार करने की इजाजत भी देती हैं आप रिजी में भुगतान करके शेयर सलाह संबंधी टेलीग्राम और व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं। ऐसे सैकड़ों चैनल रोज शेयर खरीद की सलाह देते हैं।
मुद्रा का प्रबंधन: बिना पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा का लाइसेंस लिए पैसे का प्रबंधन करना उतना प्रचलित नहीं है लेकिन यह चिंता का विषय अवश्य है। हाल ही में एक आंख खोल देने वाली घटना सामने आई जहां एक शेयर कारोबारी ने एक विकल्प कारोबारी को एक करोड़ रुपए प्रबंधन के लिए दे दिए थे। कुछ ही समय में उस विकल्प कारोबारी ने इस राशि का 72 फीसदी हिस्सा गंवा दिया। उसने इस नुकसान की भरपाई करने के लिए अस्थायी रूप से अपना पैसा डाला और फिर 40 प्रतिशत का रिटर्न दर्शाया। इसे लेकर बहुत बातें हुई लेकिन कम ही लोगों ने ध्यान दिया कि यह एक अवैध गतिविधि थी।
मैं देख रहा हूं कि गैर पंजीकृत वित्तीय सलाहकारों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है। यह अवैध कारोबार कितना बड़ा है? इसे समझने के लिए सेबी के अवैध सलाहकारों संबंधी आदेशों को देखिए। कुछ दिन पहले जारी किया गया ऐसा ही एक आदेश कहता है कि ऐसी एक गुमनाम सी सेवा से 6 करोड़ रुपए का शुल्क वसूला गया। उसका प्रवर्तक फरार है। मेरा अनुमान है कि 200-300 लोग साल में कुछ करोड़ रुपये तो कमा ही रहे हैं।
इनमें से कुछ की कमाई दो अंकों में है। मैं एल्गो कारोबार और पीएमएस बाजार की तो बात ही नहीं कर रहा हूं जबकि ये दोनों भी अवैध हैं और पीएमएस का तो आकार भी बहुत बड़ा है। संक्षेप में कहें तो इस अवैध कारोबार का विशाल आकार और टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब पर इन फाइनैंशियल इन्फ्लुऐंसरों का प्रभाव देखकर मुझे महसूस होता है कि सेबी उन पर नियंत्रण की लड़ाई हार चुका है। वह केवल उनसे पैसे बनाता है जो पंजीकृत हैं और नियमों का पालन करते हैं। लेकिन इसकी परवाह किसे है?
(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)