सियासत की कोठरी में जय-जवान जय-किसान! : सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार)

सियासत की कोठरी में जय-जवान जय-किसान! : सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार)

वाह रे देश की सियासत! जिसको जब चाहे, जैसा चाहे, जहाँ चाहे, जिस रूप में चाहे वह खड़ा कर देने में महारत रखती है। यह एक ऐसा सत्य है जोकि नकारा नहीं जा सकता। सियासत का ऐसा चक्रव्यूह है जिसके कद के बराबर कोई पहुँच नहीं पाता।

सियासत अपने हिसाब से पूरे सिस्टम को गढ़ देती है फिर उसके बाद वह अपने अनुसार अपने अनुकूल सिस्टम का प्रयोग भी बखूबी कर लेती है। सियासत ही एक ऐसा रूप है जो जब चाहे जिसे चाहे अलग कर देने की क्षमता रखती है और जब चाहे जिसे चाहे उसे जोड़कर भी एक कर देती है। यदि शब्दों को सरल करके कहें तो सियासत ही एक ऐसा मंत्र है कि वह जब चाहे जिसे चाहे बाँटकर अलग-अलग कर देती है और जब उसको अपनी जरूरत के अनुसार जोड़ करके एक भी कर देने की महारत रखती है। क्योंकि सियासत को ऐसी महारत हासिल है जिसके सामने कोई भी टिक ही नहीं पाता।

सियासत को अपने अनुसार समाकरणों के ताने-बाने को गढ़कर बनाकर तैयार करना बखूबी आता है। सियासत रूपी मंत्र जनसंख्या के आधार पर अपना हित साधते हुए पड़ोसी को भी पड़ोसी से अलग कर देती है। ऐसा इसलिए कि वह समीकरण के आधार पर फिट नहीं बैठता। सियासत ही है जोकि धर्म और जाति तथा संप्रदाय के नाम पर बँटवारा करते हुए अपने कदमों को तेजी के साथ आगे बढ़ाते हुए अपना हित साधते हुए तेज गकि के साथ निकल जाती है। जोकि अपने अनुसार महौल को गढ़कर तैयार करने में महारत रखती है।

जी हाँ बात करते हैं देश के दो अहम किरदारों की। जोकि हमारे देश की रीढ़ की हड्डी हैं। जिन्हें किसान और जवान के नाम से जाना जाता है। लेकिन देश के बदलते हुए समीकरण ने बहुत ही अचंभित कर दिया है। क्योंकि देश में किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय है जिसका आंकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि देश का किसान अपने जीवन से तंग आकर फाँसी के फंदे पर झूलने से भी गुरेज़ नहीं करता। इसका मुख्य कारण है किसानों की तंगहाली। इसी कड़ी में अगर जवानों की बात की जाए तो किसान और जवान लगभग एक ही स्थान से आते हैं यह भी सत्य है। क्योंकि किसी भी क्षेत्र में जो भी जवान आज सुरक्षा और सेवा में लगे हुए हैं वह 99 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं जोकि किसानों की ही संताने हैं। लेकिन एक बात बहुत ही चौकाने वाली है वह यह कि जब भी देश में किसानों ने आवाजे उठाई तो उनको इन्हीं जवानों के द्वारा दबाया गया जिसके पीछे मात्र सियासत ही थी जोकि अपने अनुकूल सिस्टम प्रयोग करती थी। जिसका उदाहरण देने की जरूरत नहीं हैं।

मध्य प्रदेश की घटना किसी से भी छिपी हुई नहीं सरकारें बदलती रहीं लेकिन कार्य शैली नहीं बदली। जवानों का प्रयोग करके जिम्मेदारों ने किसानों की आवाजों को दबाने का कार्य किया। जबकि यह जवान इन्हीं किसानों की ही संताने हैं। दोनों एक ही स्थान से आए हुए हैं। लेकिन सिस्टम के अनुसार अपने-अपने दायित्व का पालन कर रहे हैं। इसलिए जवानों और किसानों को शांतिपूर्वक रूप से एक दूसरे के साथ उचित व्यवहार करते हुए अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए विशेष रूप से शांति व्यवस्था कायम रखने की जरूरत है।

क्योंकि कभी भी पुलिस प्रशासन अपने अनुसार कोई फैसला नहीं लेता यह अडिग सत्य है। पुलिस प्रशासन सत्ता और संघर्ष के बीच पिसता है यह भी सत्य है। सत्ता के द्वारा दिए गए आदेशों का पुलिस प्रशासन को पालन करना होता है यह भी सत्य है। पुलिस प्रशासन सत्ता के इशारे पर कार्य करने के कारण बदनाम होता है जबकि इसके पीछे सत्ता की कुर्सी पर आसीन व्यक्ति ही मूल रूप से जिम्मेदार होता है। लेकिन वह प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आता। अगर कोई भी सामने आता है तो वह एक जवान होता है जोकि सुरक्षा व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए खुद भी संघर्ष करता रहता है।

जवान और किसान दोनों एक ही मिट्टी में पले बढ़े हैं यह समझने की आवश्यकता है मात्र पापी पेट के कारण दोनों अलग-अलग दिशा में खड़े हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण है आर्थिक समस्याएं। तो सवाल यह उठता है कि क्या यह आर्थिक समस्याएं इसी प्रकार इंसानों से लिपटी रहेंगी या इसमें कुछ बदलाव हो भी सकता…? देश के जिम्मेदारों को यह सोचना और समझना चाहिए। क्योंकि यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि इस मुद्दे की बुनियाद मात्र आर्थिक स्थिति है जिस पर कार्य करने की जरूरत है। क्योंकि आर्थिक स्थिति में सुधार की बहुत सख्त जरूरत है। इसलिए आर्थिक स्थिति में उचित कदम उठाते हुए समस्याओं के निदान की ओर गहनता से विचार करते हुए नीति बनाते हुए अमली जामा पहनाने की जरूरत है। जिससे कि किसान भी अपना जीवन आसानी के साथ गुजार सके।

देश के कई राज्यों का किसान आज फिर सड़कों पर आ गया है जिसमें पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश का किसान संगठन दिल्ली की ओर कूच कर रहा है। यह अलग बात है कि सरकार ने जवानों के द्वारा किसानों को रोकने का प्रयास किया और सड़कों पर जवान और किसान दोनो एक बार फिर से आमने-सामने आ गए। जिसमें किसानों को रोकने के लिए जवानो के द्वारा पानी और आंसू गैस का भी प्रयोग किया गया। साथ ही कुछ स्थानों पर सड़को को भी खोद दिया गया। अगर हम इस प्रदर्शन के पीछे झाँक कर देखते हैं तो पंजाब के किसान पिछले कुछ दिनों से सड़कों पर उतरे हुए थे जोकि रेल लाईनों पर बैठकर अपना विरोध इस प्रदर्शन के माध्यम से दर्ज करवा रहे थे। लेकिन किसी भी जिम्मेदार ने सुध नहीं ली।

अगर समय रहते सुध ली जाती तो शायद यह मुद्दा पंजाब में ही समाप्त हो जाता। सरकार के द्वारा बनाए गए नए कृषि कानून का किसानो के गले नहीं उतरना चिंताजनक है। जबकि सरकार इसे किसानों के हित में अभूतपूर्व कदम बता रही है। सरकार इस बिल के पक्ष में तारीफ का पुलिंदा बना रही है लेकिन किसान इसके ठीक विपरीत खड़ा है। किसानों का कहना है कि यह बिल भारी संकट खड़ा करने वाला है। अतः इसके लिए अब मात्र एक ही रास्ता है वह यह कि सरकार के जिम्मेदारों को अब किसानों से बात करके कोई रास्ता निकालना ही चाहिए।

जिन कानूनों को लेकर देश का किसान सड़कों पर उतर आया है वह कुछ इस प्रकार हैं। जिसमें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण विधेयक 2020 इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और कारोबारियों को मंडियों के बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी कम करने की भी बात इस कानून में कही गई है। इसके बाद दूसरा नंबर आता है कृषक सशक्तिकरण संरक्षण का इस कानून में कृषि करारों एग्रीकल्चर एग्रीमेंट पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। यह कृषि उत्पादों की बिक्री फार्म सेवाओं कृषि बिजनेस फर्म प्रोसेसर्स थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है।

किसानों को क्वालिटी वाले बीज की आपूर्ति करना भी शामिल है। जिसमें फसल स्वास्थ्य की निगरानी तथा धन की सुविधाएं और फसल बीमा की सुविधाएं भी इस कानून में शामिल है। नंबर तीन आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 इस कानून में अनाज दलहन तिलहन खाद्य तेल प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। सरकार के मुताबिक इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल सकेगी। लेकिन किसानों का तर्क यह है कि इस ढ़ाँचे का एक नमूना बिहार में लागू किया जा चुका है जिससे कि किसानों की परिस्थिति और बदतर हो गई।

बिहार में अब किसानों को पलायन करना ही पड़ रहा है और मजबूरन एक मजदूर बनकर किसी बड़े शहर में जाकर अपना गुजारा करना ही पड़ रहा है। जब बिहार में यह कानून काफी पहले प्रयोग किया जा चुका और सार्थक परिणाम नहीं आए। बिहार के किसानों की तकदीर में किसी प्रकार का उछाल नहीं आया तो यह कानून किसानों के हित के लिए नहीं है। इससे मात्र नुकसान ही है।

किसान अपनी जमीनों को किसी पूँजी पति को ठेके पर देगा फिर पूँजी पति अपने अनुसार उस खेत का प्रयोग करेगा जिसमें अधिक पैदावार के लिए पूँजी पतियों के द्वारा तरह-तरह की कैमिकल तकनीकि का प्रयोग किया जाएगा जिससे कि भूमि की ऊर्जा भी समाप्त होने का भय है साथ ही वाटर लेबल को भी जमीन से समाप्त होने का बड़ा डर है क्योंकि जो भी उद्य़ोगपति ठेके पर भूमि लेगा वह उससे आय करेगा जिससे कि कुछ ही दिनों में गाँव का जमीन के नीचे का पानी भी सूख जाएगा और लोग प्यास से मरने लगेगें। जिससे कि भारी संकट पैदा हो जाएगा जोकि किसी भी महामारी से भी अधिक घातक होगा।

किसानों का कहना है कि इस कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का कोई खाका ही नहीं है। क्योंकि मंडियों से जुड़ी समस्याएं जो हैं वह जस की तस हैं। किसानों की समस्याएं इससे बहुत ही अलग हैं। किसानों का कहना है कि उनकी समस्याएं यह हैं कि मंडियों में फसल बिक्री के समय पांच आढ़ती मिलकर किसान की फसल का दाम तय कर देते हैं जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है क्योंकि मंडी व्यवसायियों का संगठन है वह अपने संगठन के अनुसार आपस में चर्चा करके अपने अनुसार मूल्य को निर्धारित कर देते हैं जिससे कि किसानों को सरकार के द्वारा निर्धारित किए गए मूल्यों का दाम नहीं मिल पाता। सरकार को चाहिए कि किसानों को निर्धारित मूल्यों को दिलाने में कदम उठाए और बंदर बाँट को समाप्त करवाए।

किसानों का कहना है कि आज जैसे मंडियों में व्यापारी संगठन मिलकर आपस में मूल्य निर्धारित कर देते हैं यह छोटे स्तर पर है इस कानून से यही खेल बहुत बडे स्तर पर शुरू हो जाएगा जो आज एक मंडी में व्यापारी संगठन के द्वारा किया जा रहा है वह बड़े स्तर पर उद्योग पतियों के द्वारा किया जाएगा। जिससे समस्या और अधिक बढ़ जाएगी। किसानों का कहना है कि यदि सरकार को सुधार करना है तो हमसे संवाद किया जाए तो हम अपनी बीमारी और मर्ज बताएं तो उसका ईलाज हो। यह तो वही हुआ कि बीमार हम हैं तकलीफ हमें है और पड़ोसी का एक्सरे करके हमारी रिपोर्ट तैयार कर दी गई और हमको स्पीड पोष्ट से दवाई भेज दी गई की यह दवाई खा लीजिए। अब बताईए बीमारी हमारी और चेकअप पड़ोसी का इस प्रकार की उपचार व्यवस्था यदि होगी तो किस प्रकार का ईलाज होगा। और उस ईलाज के परिणाम क्या होंगे…?

किसानों का कहना यह है कि आज के समय में सीमित मंडियों का होना सबसे बड़ी समस्या है। जोकि किसानों के लिए बहुत ही समस्या का विषय है। जिसमें नई मंडियों को बनाने की आवश्यकता है। जिसपर कार्य होना चाहिए क्योंकि नियम के अनुसार हर 5 किमी के क्षेत्र में एक मंडी का होना सुनिश्चित जाना चाहिए जोकि नहीं है। क्योंकि अभी वर्तमान में देश में कुल 7000 मंडियां हैं लेकिन जरूरत 42000 मंडियों की है जोकि अनुपात के अनुसार बहुत ही कम है।

किसानों के इस प्रकार के कई तर्क हैं लेकिन अब देखना यह है कि सरकार क्या करती है और क्या फैसला लेती है। खास बात यह है कि देश में जब भी किसी भी प्रकार का जनसमूह सड़कों पर निकला तो राजनीति भी पीछे नहीं रहती और उस भीड़ में अपनी सियासी संभावनाओं को तलाशने का अवसर मिल जाता है और वह उसमें कूद पड़ती है और अपनी सियासी रोटियों को सेंकते हुए अपनी राजनितिक जमीन को तलाश करने में जुट जाती है।

राजनीति एक ऐसा चक्व्यूह है जिसमें कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि कब कौन सा ऊँट किस करवट बैठ जाए। क्योंकि राजनीति में पूरा खेल वोट बैंक का होता है प्रत्येक सियासी पार्टियां प्रत्येक स्थान पर अपना हित साधने का कार्य करती हैं। जिसका सटीक आँकलन लगा पाना बहुत ही मुश्किल होता है। क्योंकि राजनीति सदैव ही वोट बैंक के समीकरण की परिकरमा करती है।

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