चुनावों से पहले सूक्ष्म वित्त कैसे बना प्रमुख मुद्दा

चुनावों से पहले सूक्ष्म वित्त कैसे बना प्रमुख मुद्दा

बिजनेस स्टैंडर्ड——- समूचे असम में महिलाओं के छोटे-छोटे समूह मिलकर संगठन बन गए हैं और ऐसा लगता है कि ये रातोरात खड़े हुए हैं। उनके नाम अलग-अलग हैं, मगर उनके निशाने पर सूक्ष्म वित्त कंपनियां हैं। राज्य में ‘कर्ज से मौत’ को लेकर पहले मामूली चर्चा होती थी, लेकिन अब यह राज्य सरकार के लिए प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया है।

राज्य सरकार ने पिछले साल 30 दिसंबर को असम सूक्ष्म वित्त संस्थान (ऋण नियमन) विधेयक, 2020 पारित कर दिया। यह भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों का खुला उल्लंघन था। इस विधेयक के पारित करने का घोषित मकसद आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सूक्ष्म वित्त संस्थानों और साहूकारों के चंगुल से बचाना था।

इस विधेयक में कर्जदार के कर्ज की अधिकतम सीमा (स्वीकृत नियामकीय सीमा से काफी कम), किसी ऋणी को कर्ज लेने देने वाले एमएफआई की संख्या की अधिकतम सीमा तय करने की कोशिश की गई है और वसूली की स्वीकृत गतिविधियों का उल्लेख किया गया है। इन प्रावधानों में से कुछ सीधे उस आरबीआई के अधिकारों को चुनौती देते हैं, जो एनबीएफसी-एमएफआई समेत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को नियंत्रित करता है।

इस राज्य में सूक्ष्म वित्त एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है, जहां अप्रैल-मई में चुनाव होंगे। डिब्रूगढ़ में 5 फरवरी, 2020 को महिलाओं का एक अनोखा जुलूस देखने को मिला। हजारों महिलाएं मोरान और महामार के जिलाधिकारी कार्यालयों में पहुंचीं और एमएफआई के वसूली एजेंटों के व्यवहार और उनकी ऊंची ब्याज दरों को लेकर आत्महत्या करने की मंजूरी के लिए ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में कहा गया था कि कर्ज लेने वाली महिलाओं के घर में वसूली एजेंटों के घुसने, उन्हें परेशान किए जाने और ब्याज की ऊंची दरों से वे उस स्थिति में पहुंच गई हैं जहां से बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।

विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने हाल में असम के राज्यपाल जगदीश मुखी को पत्र लिखा था और सरकार से ऋण चुकाने की साप्ताहिक या पाक्षिक व्यवस्था को खत्म करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि बहुत से कर्जदारों को साप्ताहिक या पाक्षिक कर्ज लौटाने के लिए पशुधन, पावर टिलर, दोपहिया वाहन और यहां तक कि जमीन औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ रही है।

सैकिया ने कहा कि कुछ महिलाओं को अपना कर्ज चुकाने के लिए गैस सिलिंडर तक बेचने पड़े, जो उन्हें सरकार सेे उज्ज्वला योजना के तहत मिले थे। बहुत से लोग पहले के कर्ज चुकाने के लिए नए कर्ज ले रहे हैं जिससे वे कर्ज के मकडज़ाल में फंसते जा रहे हैं। राज्य के वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि उन्हेंं इस बात से गहरा धक्का लगा है कि ‘मेरी कुछ बहिनों को एमएफआई कर्ज चुकाने के लिए अपनी इज्जत से समझौता करना पड़ा। इसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता है।’

एनजीओ- द्वार में सूक्ष्म वित्त के मसलों पर काम करने वाली अमूल्य नीलम कहती हैं कि यह समस्या नियमन बनाने की है। ऐसा पहला राज्य, जहां 2010 में एमएफआई की अनुचित गतिविधियों का संकट खड़ा हुआ वह आंध्र प्रदेश था। उस समय राज्य सरकार ने प्रदेश में बैंकों और एनबीएफसी की ऋण गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए एक अध्यादेश पारित किया था।

इस अध्यादेश के एक साल बाद भारतीय सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में कुल ऋण पोर्टफोलियो और कर्जदारों की संख्या में करीब 20 फीसदी गिरावट दर्ज की गई। साथ ही राज्य में औसत पारिवारिक उपभोग में अहम गिरावट आई। वह कहती हैं, ‘सूक्ष्म ऋणदाताओं के अत्यधिक कर्ज में दबे परिवारों के शोषण की घटनाओं की ऐसी त्वरित प्रतिक्रियाओं से वे कम आमदनी वाले परिवार कर्ज से वंचित हो जाते हैं जिनकी कर्ज की वाजिब मांग है। इससे यह सवाल भी पैदा होता है कि अगर नागरिकों को ऋणदाताओं के साथ लेनदेन में बुनियादी सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जाती तो उन्हें औपचारिक ऋणों की तरफ रुख क्यों करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि असम भी इसी राह पर जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह आरबीआई का फर्ज है कि वह इस क्षेत्र को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर ध्यान दे।’

कालियाबोर से कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि कम आय, बेरोजगारी और ऋणग्रस्तता की समस्या गहरी है। उन्होंने कहा, ‘हमारे घोषणापत्र में इस मामले की चर्चा की गई है। हम समाज के ज्यादातर कमजोर वर्गों के कर्ज माफ करेंगे। उत्तर-पूर्व सूअरपालन का बड़ा क्षेत्र है, लेकिन अमेरिकी स्वाइन फ्लू के कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ है। हम मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार उनके नुकसान की भरपाई करे।’

वह कहते हैं कि ऐसे मसलों के समय पर समाधान नहीं होने के कारण लोग साहूकारों और एमएफआई के चंगुल में फंस जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि असम में औसत कृषि जोत करीब एक हेक्टेयर है और चाय, तेल एवं उवर्रक जैसे नकदी संपन्न उद्योगों में गिरावट आ रही है।

राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ज्यादा मुखर हैं। वह कहते हैं, ‘हम किसानों के ऋण माफ करेंगे, विशेष रूप से सूक्ष्म वित्त संस्थानों से महिलाओं द्वारा लिए गए ऋणों को।’

हालांकि विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं कि इस क्षेत्र के बेतरतीब नियमनों के अलावा इस पर राजनीति से सूक्ष्म वित्त के खराब पहलुओं के साथ अच्छे पहलू भी खत्म हो जाएंगे। असम में राजनीतिक दल सूक्ष्म ऋणों को माफ करने की बात कह रहे हैं। नीलम ने कहा, ‘ऐसे राजनीतिक फैसलों से कर्ज अदायगी में लेटलतीफी, कर्ज संस्कृति और कर्जदारों के भविष्य में कर्ज लेने की संभावनाएं कमजोर होंगी।’

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