- February 28, 2015
समाज और देश के प्रति फर्ज निभाएं – राज्यपाल
जयपुर – राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री कल्याण सिंह ने विश्वविद्यालयों को सुझाव दिया है कि वे अपने क्षेत्र के किसी अत्यन्त पिछड़े और उपेक्षित गांव को गोद लें और उसे स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित कर अनूठी पहचान कायम करें।
श्री सिंह शुक्रवार को कोटा के वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के आठवें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।
राज्यपाल ने कहा कि गोद लिये गये गांव में शिक्षक और विद्यार्थी तथा विश्वविद्यालय से सम्बद्घ सभी लोग पहुंचे तथा गांव की समस्याओं को समझकर उनके समाधान का रास्ता सुझायें। उन्होंने कहा कि गांव को समस्याओं से मुक्त कराने के साथ ही सरकार की सभी सुविधाओं का लाभ उन तक पहुंचाने का संकल्प भी लें। इससे वे अपनी भागीदारी निभाते हुए स्मार्ट विलेज को नई पहचान दे सकेंगे।
राज्यपाल ने कहा कि इससे विद्यार्थियों को अपने सामाजिक सरोकारों से जुडऩे, ग्रामीण जीवन को समझने, गांव वालों से रूबरू होने और ग्रामीण लोकजीवन के प्रति अपनी समझ विकसित करने का बेहतर मौका मिलेगा।
डी. लिट की उपाधि प्रदान
कुलाधिपति राज्यपाल श्री कल्याणसिंह ने समारोह में सामाजिक सरोकारों के निर्वहन में उल्लेखनीय योगदान दे रहे प्रसिद्घ समाजसेवी, चिंतक एवं नीति निर्धारक पद्मभूषण श्री डी.आर. मेहता तथा इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एच.पी. दीक्षित को वद्र्घमान महावीर खुला विश्वविद्यालय की ओर से डी.लिट की मानद उपाधि से विभूषित किया गया।
प्रो. एच.पी. दीक्षित ने दीक्षांत भाषण प्रस्तुत किया। इसी प्रकार पद्मभूषण श्री डीआर मेहता ने भी संबोधित किया। आरंभ में कुलपति प्रो. विनय पाठक ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर विस्तृत प्रगति विवरण प्रस्तुत किया और विश्वविद्यालय की उपलब्धियों पर जानकारी दी।
राज्यपाल ने वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक की तारीफ की और कहा कि विश्वविद्यालय आदर्श पहचान कायम कर रहा है। उन्होंने शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा कि सरल भाषा में सीखने का नाम ही शिक्षा है और यह क्रम जन्म से लेकर मृत्यु तक निरन्तर बना रहता है।
श्री सिंह ने दीक्षांत समारोह को व्यवाहारिक जीवन आरंभ करने का कदम बताया और कहा कि हम अपनी योग्यता के बूते समाज को जो कुछ दे सकते हैं, देने का भरपूर प्रयास करें और इस प्रकार जीएं कि दूसरों के लिए काम आ सकें और हमारी वजह से औरों को जीने का भरोसा मिल सके। उन्होंने युवाओं से कहा कि वे जिन्दगी में हमेशा ऊंचे लक्ष्य रखें और निरन्तर कड़ी मेहनत करते हुए आगे बढ़ें तथा निराशा और निष्क्रियता के भावों से दूर रहेंं। उन्होंने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र में चुनौतियां हैं, जिन्हें स्वीकार कर आगे बढेंगे तो सफलता मिलना निश्चित है।
उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं से कहा कि वे अपनी योग्यता, व्यवहार और कत्र्तव्र्यों में आदर्श स्थापित करते हुए घर-परिवार, गांव-शहर, समुदाय और देश सभी के लिए अपनी जिम्मेदारियों और अपेक्षाओं को बखूबी पूरी करें।
राज्यपाल ने जमीन से जुड़े रहने पर बल दिया और कहा कि संस्कार, संस्कृति और अतीत की जड़ों से जुड़े रहकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। जड़ से जुड़कर ही आसमान की ऊंचाइयां प्राप्त की जा सकती हंै। जो जड़ छोड देते हैं, वे न जमीन के रहते हैं और न आसमान के। इस विचार को उन्होंने अपनी इस उक्ति के माध्यम से व्यक्त किया-”चिडिय़ा कितनो उड़ो आकाश, पर दाना है धरती के पासÓÓ।
राज्यपाल इस दौरान अपने शिक्षकीय जीवन का स्मरण कर अत्यन्त भावुक हो उठे और उन्होंने बताया कि वे शिक्षकीय जीवन में रोजाना एक घंटा गरीब छात्रों को पढ़ाते थे, कभी उन्होंने एक पाई की ट्यूशन तक नहीं की। इसमें उन्हें जो आनन्द और आत्मसंतोष की प्राप्ति होती थी, वह अवर्णनीय है। मौजूदा ट्यूशन व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा से यह विकृति दूर होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का आदर्श माहौल तभी संभव है, जब शिक्षक समय पर जायें, विद्यार्थियों की उपस्थिति रहे और विश्वविद्यालय का माहौल बढिय़ा हो और सबकी मिली-जुली भागीदारी हो।
कन्या भ्रूण हत्या को उन्होंने घोर पाप बताया और युवाओं से कहा कि वे इस दिशा में माहौल बनाने में आगे आएं। उन्होंने युवाओं से कहा कि जीवन भर सीखें, शिक्षा सीखने का ही दूसरा नाम है। उन्होंने मौजूदा दौर में शिक्षा को रोजगारपरक की बजाए रोजगारसृजक बनाने पर जोर दिया और कहा कि लर्निंग और अर्निंग साथ-साथ होनी चाहिये। इसके लिए जोब क्रिएटिव एज्यूकेशन होनी चाहिये।
राज्यपाल ने प्रारंभिक शिक्षा की नींव को मजबूत करने पर सर्वाधिक जोर दिया और कहा कि इस बुनियाद को मजबूत किये बिना शिक्षा के अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं हो सकते। आज गांवों में प्रारंभिक शिक्षा को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है और इसके लिए समाज और राज्य सरकार को मिलकर ठोस उपाय करने चाहिए और बुनियादी शिक्षा पर अधिक राशि का प्रावधान करना चाहिये।
उन्होंने कहा कि जो शिक्षा मानव का उत्पादन करती है, उसे अनुत्पादक नहीं कहा जाना चाहिए, बल्कि प्रारंभिक शिक्षा के विकास पर अधिक से अधिक खर्च होना चाहिये। उन्होंने साहित्यिक लहजे में कहा हाथ में काम हो तभी जेब मेें दाम और आंगन में खुशहाली होती है। हाथ में काम न हो तो जेब खाली और आंगन में कंगाली होती है। मौजूदा युग को उन्होंने तकनीकी शिक्षा का युग बताया और कहा कि कोई न कोई हुनर होना चाहिए।
कुलाधिपति श्री कल्याणसिंह ने कहा कि उनका प्रयास है कि राजस्थान के विश्वविद्यालयों में नियमित रूप से दीक्षांत समारोह होते रहें और छात्रों को समय पर डिग्रियां प्राप्त होती रहें। डिग्रियां डिलीवर करने में विलम्ब नहीं होना चाहिये। उन्होंने इस मामले में वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय की तारीफ की।
स्मृति चिह्न भेंट
दीक्षांत समारोह में कुलपति प्रो. विनय पाठक ने कुलाधिपति राज्यपाल श्री कल्याण सिंह को साफा, शॉल तथा स्मृति चिन्ह प्रदान किया। कुलाधिपति ने कुलपति प्रो. विनय पाठक की उत्कृष्ट सेवाओं के लिये तथा डी-लिट उपाधि से विभूषित श्री डी.आर.मेहता व प्रो. एच.पी.दीक्षित को भी शॉल, साफा व स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।
स्वर्ण पदक, डिग्रियों और उपाधियों से नवाजा
विश्वविद्यालय के आठवें दीक्षांत समारोह में दो विद्यार्थियों को पीएचडी उपाधि, स्नातकोत्तर कार्यक्रम के 6130, स्नातकोत्तर डिप्लोमा कार्यक्रम के 703, डिप्लोमा कार्यक्रम के 836, स्नातक कार्यक्रम के 6037 सहित कुल 13 हजार 708 को पाठ्यक्रमानुसार डिप्लोमा, उपाधि एवं 59 को स्वर्णपदक प्रदान किये गये।
मन गद्गद् हो गया
विश्वविद्यालय की उपलब्धियों और नवाचारों को सराहते हुए राज्यपाल और कुलाधिपति श्री कल्याणसिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय की प्रगति की जानकारी से मन गद्गद् हो गया। उन्होंने कहा कि इसके लिए मैं दिल की गहराइयों से बधाई देता हूं। डिग्रियों के समयबद्घ वितरण पर भी उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन व आचार्यों को बधाई दी।
छात्राओं को दोहरी बधाई
विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में छात्राओं की उत्कृष्ट सफलता को रेखांकित करते हुए उन्होंने छात्राओं को दोहरी बधाई दी। इस पर कहा कि यह उनके मुंह पर तमाचा है, जो कन्या को बोझ समझते हैं। उन्होंने कहा कि बेटियां भार नहीं, ‘एसेट्स हैंÓ। उन्होंने आह्वान किया कि कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीति के खिलाफ युवा आवाज उठाएं, माहौल बनाएं।
दीक्षांत अंत नहीं, प्रारंभ
राज्यपाल ने कहा – दीक्षांत अन्त नहीं, व्यावहारिक जीवन में प्रवेश का आरंभ है। उन्होंने कहा कि अपने लिए जीना, कोई जीना नहीं। जीओ तो ऐसे जीओ कि दूसरों को जीने की आशा और भरोसा जगे। हमेशा बड़ा लक्ष्य बनाओ, छोटा लक्ष्य पापकर्म के समान है। मेहनत बड़ी करो, निराश मत हो । निराशा और निष्क्रियता मतलब मृत्यु। चुनौतियां, जिम्मेदारियों को स्वीकार करें। समाज के लिए कुछ करें। एक दूसरे को सहयोग देना, सेवा का भाव रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अतीत, इतिहास, संस्कृति को, वीरों को न भूलें। जो भूलता है, वह देश और समाज नष्ट हो जाता है। जमीन से जुड़कर आकाश को छूने की चाह रखें।
संभागीय आयुक्त श्री औंकार सिंह, महानिरीक्षक पुलिस कोटा रेंज डॉ. रविप्रकाश, जिला कलक्टर श्री जोगाराम, अतिरिक्त कलक्टर (नगर) सुनीता डागा, नगर निगम आयुक्त श्री भागीरथ विश्नोई एवं अन्य अतिथि उपस्थित थे।
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