• February 17, 2016

समय नकार देता है इन्हें – डॉ. दीपक आचार्य

समय नकार देता है इन्हें  – डॉ. दीपक आचार्य

संपर्क –  9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

समय ही पूरी दुनिया की वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द सृष्टि घूमती है और पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक सभी कारक प्रभावित होते हैं।

काल का अनवरत गतिमान चक्र न किसी का सगा होता है न दुश्मन। वह अपनी धुरी पर अनथक गतिमान है और रहेगा। न कोई इसे रोक सका है, न मनमाफिक चलाने का दुस्साहस कर सका है।

इस सत्य से वाकिफ होने के बावजूद लोग समय को मान नहीं देते, समय के साथ नहीं चल पाते, समय की उपेक्षा करते हैं।

ये लोग चाहते हैं कि समय उनके अनुरूप चले, और ऎसा हो पाना कभी संभव है ही नहीं।  समय के मामले में लोगों की भिन्न-भिन्न आदतें हैं।

बहुत थोड़े ही लोग ऎसे बचे होंगे जो कि समय के अनुशासन का पूरी तरह पालन करते हैं और अपने हर काम समय पर करते हैं, समय के साथ चलते हैं और वर्तमान समय के एक-एक सैकण्ड को मान देते हैं, उसका पूरा उपयोग करते हैं।

इनके अलावा में वे सारे लोग आ जाते हैं जो समय के मामले में अनुशासनहीन हैं। ये लोग आलसी, प्रमादी और शैथिल्यग्रस्त होते हैं।

इनमें दो किस्मों के लोग हैं। एक प्रजाति उनकी है जिसे समय की पहचान नहीं है, समय के महत्व से अनभिज्ञ हैं और जीवन भर यही तनाव बना रहता है कि टाईमपास कैसे करें।

ये लोग उन सभी विषयों और क्षेत्रों की तरफ ताक-झाँक करते हैं जिनसे इनका कोई लेना-देना नहीं होता।

इन्हीं में काफी सारे लोग उन सभी कामों में रमे रहते हैं जिनका न इनकी जिन्दगी के लिए कोई उपयोग होता है, न समाज या देश के लिए।

इनका जीना बस जीना ही है, और वह भी जैसे-तैसे जी लेना। ऎसे लोग हर कहीं भारी तादाद में देखने को मिल जाते हैं।

इन्हीं की तरह के दूसरे लोग वे हैं जो समय के महत्व को अच्छी तरह जानते जरूर हैं लेकिन समय के अनुशासन का पालन नहीं कर पाते।

ये लोग आलसी, दरिद्री और ढीले होते हैं इस कारण से समय की पाबंदी कभी नहीं रख पाते। इनका स्वभाव ही जिन्दगी भर के लिए ऎसा लापरवाह बन जाता है कि समय के प्रति कठोर नहीं रह पाते।

कोई काम-काज न हो, ठाले बैठे हों, तब भी ये समय पर नहीं पहुँच पाते, चाहे काम-धंधों का स्थान हो या अपना दफ्तर।

ये लोग इतने आलसी और कामचोर रहते हैं कि कोई काम समय पर नहीं करते। इनके जीवन की सबसे बुरी आदत होती है कोई काम समय पर नहीं करना, समय की पाबन्दी के प्रति हमेशा बेपरवाह रहना और समय का अनादर करना।

इन सभी लोगों की यही आदत होती है कि जैसे-तैसे दिन गुजार लेना ताकि ज्यादा काम भी नहीं करना पड़े और हमारी मौजूदगी भी सुनिश्चित हो जाए। और जो मिलना है उसमें कहीं कोई कमी नहीं आए।

पता नहीं लोगों में बिना मेहनत के खाने की ये कैसी आदत पड़ गई है। ये लोग चाहते ही नहीं कुछ भी परिश्रम करना। मुफत में सब कुछ मिल जाए और जिन्दगी भर मजे करें।

काम-धाम कुछ न करना पड़े, और आवक बढ़ती ही चली जाए। इसी उद्देश्य से ये लोग हर जगह कामचोरी के हथियार का इस्तेमाल कर माल जमा करते रहते हैं।

बहुत सारे नुगरों का यही खेल है जो अर्से से चल रहा है। देश की सबसे बड़ी समस्या आज यही है। न समय का मान रहा है, न समय प्रबन्धन का खयाल।

चाहे कितना कुछ कह डालो, खूब सारे नालायकों की भरमार है जो न समय पर आते हैं न कोई काम करते हैं और जाने की जल्दी हमेशा बनी रहती है।

कोई काम न हो तब भी घर में पड़े रहेेंगे, खटिया तोड़ते रहेंगे, घर वालों से सेवा-चाकरी कराएंगे और उन्हें भी तंग करते रहेंगे। ये लोग बिना मेहनत किए कमाने-खाने  के साथ ही अपने आपको भले ही चतुर मानते रहें और यह दंभ भरते रहें कि दुनिया को मूर्ख बनाकर माल बना रहे और मौज मार रहे हैं लेकिन इन लोगों को शायद यह पता नहीं कि जिस प्राप्त समय का वे निरादर कर रहे हैं वह समय ही उनका क्षरण कर रहा है।

जो समय का उपयोग नहीं करता है, समय उन्हें खा जाता है। समय की पाबन्दी का संबंध हृदय के भावों से है।  बहुत से लोेग हैं जिन्हें चाहे कितनी ही टोका जाए, उलाहना दिया जाए, निन्दा की जाए, लेकिन ये सुधरते नहीं। निर्लज्ज और बेशर्म लोग इतने ढीट होते हैं कि इन पर कोई असर नहीं होता। इनके लिए दण्डात्मक विधान ही हैं जो इनमें सुधार ला सकते हैं।

समय की पाबन्दी के प्रति बेपरवाह लोगों के लिए सख्त दण्डात्मक कार्यवाही होनी चाहिए और वह भी ऎसी कि उसे आर्थिक दण्ड से दण्डित किया जाए,तभी कामचोरों, अनुशासहीनों और बेशर्म लोगों को अक्ल आ सकती है।

ऎसे लोगों की उपेक्षा या बचाव करना सीधे-सीधे देशद्रोह ही है क्योंकि इन्हीं कामचोरों और बिना परिश्रम के सारे भोग-विलास पा रहे लोगों के कारण देश की तरक्की  बाधित हो रही है।

अपने आस-पास भी ऎसे खूब सारे हरामखोर और कामचोर हैं जो न समय पर आते हैं, न काम करते हैं, उल्टे धरती पर बोझ की तरह ही हैं। ये सारे के सारे ‘काम के न काज के ढाई मन  अनाज’ के हैं। ऎसे पुरुषार्थहीन लोगों के कारण से ही हमारा देश आगे नहीं बढ़ पा रहा है। जो लोग इन निकम्मों को प्रश्रय देते हैं वे भी पाप के भागी होते हैं।

Related post

धार्मिक समाज सुधारकों की परंपरा को बचाने की लड़ाई

धार्मिक समाज सुधारकों की परंपरा को बचाने की लड़ाई

एड. संजय पांडे — शिवगिरी मठ सभी दलों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखता है। वार्षिक…
हिमालय की तलहटी में  6.8 तीव्रता का भूकंप,95 लोग मारे गए,नेपाल, भूटान और भारत में भी इमारतों को हिला दिया

हिमालय की तलहटी में  6.8 तीव्रता का भूकंप,95 लोग मारे गए,नेपाल, भूटान और भारत में भी…

बीजिंग/काठमांडू 7 जनवरी (रायटर) – चीनी अधिकारियों ने कहा  तिब्बत के सबसे पवित्र शहरों में से…
1991 के पूजा स्थल कानून को लागू करने की मांग याचिका पर विचार करने पर सहमति : सर्वोच्च न्यायालय

1991 के पूजा स्थल कानून को लागू करने की मांग याचिका पर विचार करने पर सहमति…

सर्वोच्च न्यायालय ने एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की उस याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई…

Leave a Reply