- December 27, 2014
सडांध ही देती हैं पुरानी निष्ठाएं -डॉ. दीपक आचार्य
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निष्ठाओं के अपने पृथक-पृथक समीकरण हैं। दुनिया में जहां निष्ठाएं हैं वहीं संबंधों की प्रगाढ़ता व विश्वास का ग्राफ निरंतर बना रहता है।
निष्ठाओं की बुनियाद कई कारकों पर निर्भर करती है। पहले जहां आदमी की लोकमंगल में भागीदारी, अच्छाईयों, सज्जनता, धर्म, सत्य और ईमानदारी को आधार माना जाकर निष्ठाओं का प्रकटीकरण होता था, वहां अब निष्ठाओं का सृजन अपने काम बनाने, स्वार्थों की पूर्ति, दूसरों के काम बिगाड़ने, अपनी आदतों व तलब को पूर्ण करने, अपने ऎशो-आराम को निर्बाध ढंग से बरकरार रखने और अपनी मनचाही को पूर्ण करने के लिए होता है।
इस दृष्टि से निष्ठाओं का ग्राफ न्यूनाधिक रूप से घटता-बढ़ता रहता है और कई बार इनमें बदलाव भी आता रहता है। निष्ठाओं का होना या इनके लिए पात्रों में बदलाव आदमी की फितरत में होता है।
निष्ठाएं हर इंसान का अपना वैयक्तिक अधिकार है, लेकिन इनका संबंध सिर्फ व्यक्तिगत संवाद, सम्पर्क या कार्यों से हो तब तक ही ठीक है, लेकिन निष्ठाओं का प्रभाव किसी भी कार्य स्थल पर जरा भी नहीं पड़ना चाहिए।
हम अक्सर यह देखते आएं है कि वैयक्तिक निष्ठाओं का प्रभाव कार्य स्थलों पर पड़ने लगता है और यही स्थिति कर्मयोग से जुडे़ कार्यालयों/प्रतिष्ठानाें व तमाम प्रकार के बाड़ों व गलियारों पर भयानक व गंभीर दुष्परिणाम के रूप में सामने आती है।
देखा यह गया है कि इन बाड़ों व गलियारों के वर्तमान लोग कई प्रकार के स्वार्थों व नापाक संबंधों, षड़यंत्रों में रमे रहने, बतरस का आनंद पाने आदि के चलते पुरानों, रिटायर्ड, परित्यक्त और अवधिपार लोगों के प्रति गहरी निष्ठाएं बरकरार रखकर कार्य स्थलों का माहौल बिगाड़ने पर आमादा रहते है।
ऎसे निष्ठावान लोगों की हरकतों व चाल-चलन को देखकर ही महसूस होता है कि ये जो कुछ करते है वह अपने निष्ठा केन्द्र बने हुए आकाओं के इशारों का ही परिणाम है। हर विघ्नसंतोषी आका इस बदनीयत से घिरा होता है कि उसका अस्तित्व रहने तक कोई दूसरा उनके पुराने व परित्यक्त बाड़ों में उनसे लंबी लकीर न खींच पाए।
इस नापाक व प्रदूषित मानसिकता से भरे पूरे लोगों के निष्ठावान परम भक्त इन्हीं के इशारों पर चलकर ही कार्य स्थलों का कबाड़ा कर दिया करते हैं व इन्हीं लोगाें की पूर्ण उदासीनता या अति सक्रियता की वजह से अच्छे-भले कर्म क्षेत्र बेवजह बदनामी का कलंक झेलने को मजबूर हो जाते हैं व इन क्षेत्रों का माहौल बिना किसी ठोस कारण के नकारात्मक व विषादों से भरा रखने लगता है।
हालांकि विषम माहौल के बदनामी व पाप से वे लोग भी बच नही पाते हैं, जो अपने आकाओं के प्रति निष्ठाओं की वजह से अपनी दूषित व विघ्नसंतोषी मानसिकता का परिचय दिया करते हैं।
निष्ठाओं का होना अच्छी बात है, लेकिन स्वामी भक्ति की बलि चढ़ाकर पुरानों के प्रति निष्ठा दर्शा कर वर्तमान की अवहेलना करना अपने आप में ऎसा घृणित कृत्य है, जो राजद्रोह के समान माना जाना चाहिए। पुरानी निष्ठाओं को वैयक्तिक सीमाओं तक की सीमित रखना श्रेयस्कर है। इन निष्ठाओं को कार्य स्थलों से बाहर रखना सभी के लिए हितकारी है। निष्ठाओं का महत्व तभी है, जब स्वामीभक्ति हो।