- April 6, 2019
सड़कों पर घूमतीं गायें किस पार्टी की घोषणापत्र है ?— शैलेश कुमार
——–2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई.
—— गायों को बचाने के लिए जिस पैमाने पर अभियान चलाया गया, वह अब कई जगहों पर किसानों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है.
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राजस्थान ————– किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि वे गायों से कैसे अपनी फसल को बचाएं. आवारा घूमने वाले गायों से चने की अपनी फसल को बचाना उनके लिए चुनौती बन गया है. खेतों में पुतला खड़ा खडा करें या कांटेदार बाड़ लगायें, आवारा मवेशियों पर कोई प्रभाव नही पडता है.”
राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
गौवंश के आड में मुसलमानों और दलितों पर हमले हो रहे हैं. हत्यारों पर कार्यवाही भी काफी हो -हल्ला के बाद होता है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच भारत के अलग अलग इलाकों में लिंचिंग (भींड द्वारा सामूहिक) घटनाओं में 44 लोग मारे गए. उत्तर्प्रदेश और राजस्थान मे काफी तुल पकडा था.
डरावना माहौल तैयार होने से किसान अपने बूढ़े मवेशियों को बूचड़खानों को बेचने से डरते हैं. इसके बजाय वे उन्हें यूं ही छोड़ देते हैं, जिससे आवारा जानवरों की संख्या बढ़ रही है. इससे सड़कों पर मवेशियों की वजह से होने वाले हादसे बढ़े हैं और देहाती इलाकों में वे फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.
2012 में हुई पशुगणना के मुताबिक आवारा मवेशियों की संख्या 52 लाख थी. लेकिन उसके बाद से इनकी संख्या में इजाफा हुआ है.
राजस्थान भारत में अकेला ऐसा राज्य था जहां सरकार में अलग से एक गाय मंत्री को नियुक्त किया गया था. लेकिन मैडम की नीतियों से लोगों की नाराजगी बढी और सत्ता पलट गई.
आवारा गायों की वजह से होने वाली समस्याओं को राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र में जगह देनी चाहिए.
“एक किसान सिर्फ एक गाय की देखभाल कर सकता है.