विश्व के सर्वाधिक तीन संगठित-अपराधों में है वन्य-प्राणी अपराध

विश्व के सर्वाधिक तीन संगठित-अपराधों में है वन्य-प्राणी अपराध

सुनीता दुबे —-बदलते परिदृश्य के साथ आज वन्य-प्राणी अपराध भी विभिन्न देश में हाईटेक हो चला है। हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों को हर तरह से वन्य-प्राणी अपराध का मुँहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम बनाने के लिये जबलपुर में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय श्री राजेन्द्र मेनन की अध्यक्षता में देश के वन्य-प्राणी अधिनियम (1972) को सशक्त बनाने पर कार्यशाला हुई।

मध्यप्रदेश वन विभाग की इस कार्यशाला का उद्देश्य वन, पुलिस, राजस्व, विधि, न्यायपालिका तथा वन्य-प्राणियों से संबंधित गैर-सरकारी संस्थानों के मध्य आपसी समन्वय बनाकर वन्य-प्राणी अपराधों से निपटने की रणनीति तैयार करना है। वन्य-प्राणी अपराध की गिनती आज विश्व के पहले तीन संगठित अपराध में होने लगी है, जो चिन्तनीय है।

वन्य-प्राणी से जुड़े अपराधों से निपटने की रणनीतियों पर विचार-विमर्श और बेहतर समन्वय के लिये स्टेक होल्डर्स के संवेदीकरण पर केन्द्रित सेमीनार को संबोधित करते हुए जस्टिस राजेन्द्र मेनन ने कहा कि वन्य-प्राणी संरक्षण के लिये किये जाने वाले प्रयासों में न्यायपालिका की ओर से सभी जरूरी सहयोग दिया जायेगा। उच्च न्यायालय के जस्टिस श्री रविशंकर झा ने वन्य-प्राणी संरक्षण के लिये अंतर्विभागीय समन्वय पर जोर देते हुए कहा कि शीघ्र प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो वन एवं वन्य-प्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। महाधिवक्ता श्री पुरुषेन्द्र कौरव ने कहा कि वन और वन्य-प्राणी संरक्षण प्रत्येक नागरिक का दायित्व है।

सेमीनार में उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तिगण, अपर मुख्य सचिव वन श्री दीपक खाण्डेकर, जबलपुर संभागायुक्त श्री गुलशन बामरा, कलेक्टर श्री महेशचन्द्र चौधरी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य-प्राणी) श्री जितेन्द्र अग्रवाल, वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो नई दिल्ली की प्रमुख श्रीमती तिलोत्तमा वर्मा, ट्रेफिक इण्डिया के प्रमुख डॉ. नीरज शेखर, प्रमुख सचिव विधि श्री ए.एम. सक्सेना, रजिस्ट्रार जनरल श्री मनोहर ममतानी, अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री के.एस. वाधवा, आई.जी. श्री श्रीनिवास राव, अतिरिक्त मुख्य प्रधान वन संरक्षक श्री आर.पी. सिंह, जिम कार्बेट नेशनल पार्क के संचालक श्री सुरेन्द्र मेहरा, संचालक राज्य वन अनुसंधान संस्थान डॉ. जी. कृष्णमूर्ति भी मौजूद थे।

कार्यशाला की अनुशंसाएँ-म.प्र. का एसटीएफ बनेगा मॉडल

वन्य-प्राणी अपराधों की जाँच के लिये मध्यप्रदेश की तरह एसटीएफ (Special Task Force) का गठन हो और अन्य विभागों के सहयोग से इसे और सशक्त बनाया जाये।

वन्य-प्राणी अपराध से संबंधित डेटाबेस बनाने के लिये मध्यप्रदेश वन विभाग का स्पेशल टॉस्क फोर्स, एसटीएफ गृह मंत्रालय, वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल बोर्ड संयुक्त रूप से समन्वय बनाकर कार्य करें। वाइल्ड लाइफ कंट्रोल बोर्ड डाटाबेस शेयरिंग प्रोटोकॉल तैयार करे।

डब्ल्यूसीसीबी नोडल एजेंसी की तरह कार्य करते हुए सभी एन्फोर्स एजेंसी को पुनर्गठित करे।

प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय वन्य-प्राणी संबंधी अपराधों के अधिनियमों की समीक्षा करते हुए समय-स्थिति अनुसार आवश्यक संशोधन किये जायें।

वन्य-प्राणी अपराधों के त्वरित निपटारे के लिये जबलपुर, भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, सतना एवं सागर जिला-स्तर पर नोडल कोर्ट की स्थापना से संबंधित प्रस्ताव रजिस्ट्रार जनरल मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जायें।

वन्य-प्राणी अपराध मामले तथा वनापराधों से संबंधित विभिन्न विभाग में क्रियाशीलता बनाये रखने के लिये हर साल कार्यशाला की जाये।

वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम (1972) के प्रावधानित 3 वर्ष के कारावास को 7 वर्ष तथा शेड्यूल-1 एवं शेड्यूल-2 वन्य-प्राणी प्रकरण में 10 हजार रुपये का अर्थदण्ड दिया जाये।

कोर-एरिया में वन्य-प्राणी अपराध के मामले में 50 हजार रुपये के अर्थदण्ड का प्रावधान हो।

वन्य-प्राणी अपराध खोज तथा उनके प्रलेखन के लिये वन विभाग के क्षेत्रीय कर्मचारियों को प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता का विकास हो।

महाराष्ट्र वन विभाग के मॉडल के अनुसार प्रदेश के प्रत्येक टाइगर रिजर्व एवं क्षेत्रीय वन मण्डलों में भी एक-एक विधि अधिकारी की नियुक्ति।

वन्य-प्राणी अपराधों के मामले में फोरेंसिक साइंस का उपयोग नियमित रूप से किया जाये।

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