- February 22, 2021
वित्त वर्ष 22 में जाएगा मनरेगा का बकाया
बिजनेस स्टैंडर्ड —– वित्त वर्ष 2020-21 के केंद्रीय बजट में मनरेगा के तहत व्यय का संशोधित अनुमान बढ़ाकर 1,11,500 करोड़ रुपये किए जाने के बावजूद इस मद में एक मोटी राशि का भुगतान नहीं हो पाने की संभावना है, जिसे अगले वित्त वर्ष में ले जाना होगा। ग्रामीण इलाकों में इस योजना के तहत काम की भारी मांग जारी रहने के कारण ऐसा हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका यह भी मतलब है कि वित्त वर्ष 2021-22 में मनरेगा के तहत 73,000 करोड़ रुपये बजट आवंटन का एक बड़ा हिस्सा, कम से कम 15-20 प्रतिशत बकाया भुगतान में जाएगा, जैसा कि पहले भी होता रहा है।
पीपुल्स ऐक्शन फार इंप्लाइमेंट गारंटी (पीएईजी) ने कुछ समय पहले कहा था, ‘पिछले 5 साल के दौरान औसतन 20 प्रतिशत बजट का इस्तेमात पहले की देनदारियों के भुगतान में किया गया है। अगर हम आने वाले वित्त वर्ष के लिए भी यही अनुमान लगाएं तो करीब 60,000 करोड़ रुपये ही ग्रामीण रोजगार के सृजन के लिए बचेंगे।’
पीएईजी के सचिव एमएस रौनक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘इस साल बकाया मजदूरी पहले के वर्षों की तुलना में ज्यादा होगी, जिससे ग्रामीण आबादी पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। ज्यादातर ग्रामीण परिवारों की बचत खत्म हो चुकी है, ऐसे में अगर उनकी मजदूरी के भुगतान में देरी होती है तो इसके अपने दुष्परिणाम होंगे और उन्हें ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ सकता है।’
चालू वित्त वर्ष में भी 1,11,500 करोड़ रुपये आवंटन में से 13,760 करोड़ रुपये पहले के साल के बकाये के भुगतान पर खर्च हुए हैं।
बजट अनुमान की तुलना में 2020-21 में संशोधित अनुमान में करीब 81.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बावजूद बकाया रह जाने की संभावना है, क्योंकि कोविड की वजह से ग्रामीण इलाकों में काम की अतिरिक्त मांग रही है और इस साल योजना के तहत खर्च करने के लिए वास्तविक राशि करीब 98,000 करोड़ रुपये थी।
मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक इसमें से अहम हिस्सा, करीब 94,000 करोड़ रुपये (करीब 96 प्रतिशत) पहले ही 19 फरवरी तक खर्च किया जा चुका है, जबकि काम की मांग 2019-20 की तुलना में ज्यादा बनी हुई है।
हालांकि मई, जून और जुलाई में काम की मांग सर्वाधिक थी और उसकी तुलना में अब मनरेगा के तहत काम की मांग कम हुई है, लेकिन इसके पहले वर्षों की तुलना में मांग तेज बनी हुई है।