विचित्र परिस्थिति में आम-जनमानस— सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं समाज चिंतक)

विचित्र परिस्थिति में आम-जनमानस— सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं समाज चिंतक)

देश बहुत ही विचित्र परिस्थिति से गुजर रहा है। मात्र कागजों पर छोटी लाईन के सामने लम्बी लाईन खींच देने से समस्या का निदान नहीं हो सकता। जमीन पर उतरकर देखने की जरूरत है। जिस प्रकार की समस्या से आम-जनमानस जूझ रहा है वह बहुत ही घातक है। बड़ी ही विचित्र रूप रेखा उभरकर सामने आ रही है।

यह एक ऐसा दृश्य है जोकि ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में दिखायी दे रहा है। दोनों ओर रोज मर्रा के कमाने खाने वाले बहुत ही जटिल समस्याओं से ग्रस्त हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ मजदूर एवं किसान अपनी जीविका के लिए त्रस्त दिखाई दे रहा है वहीं शहरी क्षेत्रों में भी यही हाल है। शहरी क्षेत्रों में एक समस्या बहुत ही जटिल है वह है जीविका के संसाधन। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ मनरेगा जैसी योजनाएं व्यक्तियों के आँसू पोछने के लिए मौजूद हैं उस प्रकार की शहरी क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की योजना नहीं है। यह एक सबसे बड़ा संकट है।

पलायन के कारण अचानक से घरों में बढ़े हुए परिवार बहुत बड़ी चिंता का विषय बन गए हैं। लगभग कमोबेस सभी छोटे शहरों का यही हाल है। इसका मुख्य कारण यह है कि जो भी सदियों से जहाँ अपनी जीविका चला रहा था वह अपने साथ अपना छोटा सा परिवार साथ लिए हुए था। परन्तु, पलायन के कारण अचानक से पूरा दृश्य ही बदल गया। वास्तविकता यह है कि जब भी कोई भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में अपनी जीविका नहीं चला पाता है तो वह बड़े शहरों महानगरों की ओर प्रस्थान करता है। और वहाँ वह अपना छोटा मोटा रोजगार या नौकरी करके अपने परिवार का भरण पोषण आरंभ कर देता है। जिससे कि वह परिवार हंसी खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगता है। और कुछ समय के बाद वह शहर ही उसका आशियाना बन जाता है। देश के अधिकतर हिस्से में ऐसा ही दिखाई देता है। दिल्ली और मुम्बई जैसे बड़ी आय संसाधनों वाले क्षेत्रों की वास्तविकता यही है। ऐसे जगहों पर अधिकतर गरीब तबका ही निवास करता है।

झोपड़ी-झुग्गी किराए के कमरों में अपना जीवन यापन करता है। परन्तु इस महामारी ने सबका आशियाना उजाड़ दिया। बरसों बरस से रहने वाले उन मजदूरों-गरीबों के लिए आज वही शहर पराया हो गया जहाँ कल तक वह बड़ी ही उम्मीद के साथ खुश होकर जीवन यापन कर रहे थे। आज वही शहर उनके लिए पराया हो गया। आज उसी शहर में उनको कोई नहीं पहचानता। कल तक जिस शहर में किराने की दुकान से उनको महीने के हिसाब पर राशन प्राप्त हो जाता था आज राशन वहाँ नहीं प्राप्त हो रहा। कल तक जहाँ दूध का हिसाब महीने की निर्धारित तारीख पर हुआ करता था आज वह दूध भी नहीं मिल पा रहा। छोटे-छोटे मासूम बच्चे भूख से तड़प रहे हैं कोई भी फरियाद सुनने वाला नहीं है। आज के समय में एक-एक रोटी के लाले पड़ गए हैं।

जरा सोचिए। यह कैसी परिस्थिति आ गई है। कल तक जिस शहर पर इतना विश्वास बढ़ा कि व्यक्ति सब कुछ उसी शहर को अपना मान बैठा था आज वही शहर उसके लिए बेगाना हो गया। इस बात का अंदाजा इस प्रकार से लगाया जा सकता है। कि व्यक्ति खुद कमाने के लिए जाता है। परन्तु विश्वास बढ़ जाने के कारण अपना परिवार कुछ समय बाद वहीं पर अपने साथ रख लेता है। और हँसी खुशी वहीं पर अपनों सपनों की दुनिया लिए हुए दिन रात मेहनत करने लगता है। लेकिन एक ऐसा भी समय आया की ना चाहते हुए भी सब कुछ छोड़कर फिर से वही पुरानी गलियों की ओर निहारना पड रहा है। यह बहुत ही भयावक स्थिति है।

जिसको समझने के लिए जमीन पर उतरना ही होगा। कमरों में बैठकर एयर कंडीशन की हवा खाकर इस समस्या के दर्द को महसूस नहीं किया जा सकता। इस समस्या के पीछे वह दर्द है जिसे शब्दों के माध्यम से उकेर पाना नामुमकिन ही नहीं अपितु पूर्ण रूप से असंभव है। क्योंकि, इस त्रासदी के पीछे का जो चित्र है वह हृदय ही नहीं आत्मा को भी झिझोंड़ देने वाला है। चूँकि व्यक्ति ऐसे दो राहे पर आ खड़ा हुआ है जिसका कोई भी रास्ता किसी भी मंज़िल की तरफ सीधा नहीं जाता। बडी ही त्रास्दी का आलम है।

क्योंकि, व्यक्ति ऐसे दो राहे पर आकर खड़ा हो गया है। जिसके दोनों ओर गहरे खड्ढे और खाई हैं। व्यक्ति जिस भी रास्ते को चुनता है उस पर आगे का दृश्य बड़ा ही भयानक है। यदि व्यक्ति उस शहर को नहीं छोड़ता तो वहाँ भूख से मर जाने का खतरा है। बेरोजगारी का जिन्न इस कदर से घेरे हुए है जोकि रोज सुबह और शाम सवार हो जाता है। चूँकि आय के संसाधन समाप्त हो चुके हैं। कोई भी उधार देने को तैयार नहीं हैं। घर का राशन खत्म हो चुका है। दुकानदार ने साफ शब्दों में राशन देने से साफ मना कर दिया है। अब वहाँ जीवन का कोई रास्ता ही नहीं बचा।

अब थक हार कर व्यक्ति फिर वही अपनी पुरानी गलियों की ओर निहार रहा है जिस संकरी गली से निकलकर वह कभी चकाचौंध के शहर की ओर गया था। परन्तु, समस्या ऐसी आ गयी की न चाहते हुए भी घर वापसी का निर्णय लेकर घर आना ही पड़ रहा है। जिसमें पैदल तथा साधन जिस भी माध्यम से संभव हो घर पहुँचने की आस लिए हुए अपने कदमों को घसीटता हुआ सिर पर एक बोरी और कंधे पर बच्चों को बैठाए हुए निकल पड़ा है। लेकिन यह रास्ता इतना सरल भी नहीं है। अपनी पुरानी जिस गली की ओर निहारकर वह चल पड़ा है वहाँ के भी हालात इसी प्रकार हैं वहाँ भी भूख और प्यास का वही आलम है जोकि उसके घेरे हुए है। उसे इस बात का पूरा ज्ञान है कि वहाँ भी यही हालात हैं।

लेकिन बेचारा क्या करे कोई और रास्ता बचा ही नहीं। अपने घर पहुँचने की आस समेटे हुए थकी हुई आँखो से बेबसी की निगाहों से निहारता हुआ सड़कों पर निकल पड़ा है। चुँकि घर में संपन्नता पहले सी नहीं है इस बात का ड़र उसे सता रहा है कि घर पहुँचकर क्या करेंगे…? किस प्रकार इन बच्चों का पेट भरेंगे। क्योंकि, गरीबी के कारण ही तो उसने अपने घर को छोड़कर बड़े शहर की ओर रुख किया था। परन्तु, आज ऐसी परिस्थिति आ खड़ी हुई कि जिसने एक ही झटके में सबकुछ छीन लिया। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मनरेगा जैसे आय के संसाधन उपलब्ध हैं लेकिन शहरी क्षेत्रों में ऐसा नहीं है। जिसके कारण एक बडा संकट खड़ा हो गया। यह एक ऐसी परिस्थिति है कि जिसका किसी भी सरकार के पास उत्तर नहीं है।

इस समस्या के मुक्ति के लिए सरकार के पास मात्र एक ही विकल्प था वह यह कि लॉकडाउन हटा देना। सो वह तो सरकार ने हटा दिया परन्तु लॉकडाउन हट जाने के बाद की जो परिस्थिति उभरकर सामने आ रही है वह बहुत ही डराने वाली है। क्योंकि, जिस प्रकार से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। वह काफी घातक है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का जागरूक होना बहुत ही आवश्यक है अन्यथा इस समस्या को गम्भीर रूप धारण करने में तनिक भी देरी नहीं लगेगी।

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