लाल आतंक : एक गंभीर चुनौती —– सुरेश हिन्दुस्थानी

लाल आतंक : एक गंभीर चुनौती —– सुरेश हिन्दुस्थानी

लाल आतंकवाद के नाम से पहचान बना चुके नक्सल समस्या का वीभत्स रुप एक बार फिर हमारे सामने है। लम्बे समय से यह समस्या सुरसा के मुंह की भांति लगातार चौड़ी ही होती जा रही है। अभी ताजा नक्सली हमले ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के क्रियाकलापों की पोल खोलकर रख दी है।

यह हमला छत्तीसगढ़ की सरकार पर एक काला धब्बा के रुप में स्थापित हुआ है, साथ ही नक्सलियों ने सरकार के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती भी स्थापित की है। इस हमले में भीम मंडावी के साथ चार सुरक्षा कर्मियों की मौत हो गई। जो इस बात का संकेत करता है कि नक्सली फिर से सिर उठाने लगे हैं। वहीं नक्सलियों का यह कदम इस बात को भी उजागर कर रहा है कि कहीं न कहीं नक्सलियों का दमन किया जाना भी जरुरी है।

छत्तीसगढ़ में अभी लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं, ऐन चुनाव के अवसर पर नक्सलियों द्वारा हमला किया जाना कहीं न कहीं यह प्रमाणित तो कर ही रहा है कि नक्सली चुनाव प्रक्रिया को बाधित करते रहे हैं। इससे पूर्व भी कई बार नक्सलियों ने चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से हमले किए हैं। जिसमें कई बड़े नेता काल कवलित हो गए। ऐसे में हमारी सरकारों को नक्सलियों के विरोध में गंभीर कार्यवाही करना चाहिए। नक्सलियों द्वारा खेले गए खूनी खेल का सिलसिला अब समाप्त होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की कार्यवाही के चलते एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि नक्सली गतिविधियों पर कुछ सीमा तक विराम लग गया है, लेकिन ताजा घटना ने इस विराम शब्द को अपने शब्दकोश से हटाने का काम किया है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि लाल आतंक फैलाने वाले नक्सली हमेशा अपने विरोधी विचारों का समर्थन करने वाले पर ही हमला क्यों करते हैं?

हमें याद ही होगा कि नक्सलियों ने जब भी अपने कुत्सित मंसूबों को अंजाम दिया है उसके लक्ष्य में केवल सुरक्षा बल और राजनेता ही रहते हैं। जबकि इसके विपरीत यह बात भी जगजाहिर है कि वामपंथ के हिमायती इनके प्रकोप से बचे रहते हैं।

इससे यह भी स्पष्ट संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं वामपंथ इनको संवर्धित करता है।

सवाल यह भी है कि सरकारों द्वारा चलाए जाने नक्सल विरोधी अभियान के बाद भी लाल झंडे की छाया तले पनप रहे यह नक्सली हिंसक वारदात करने में समर्थ हो जाते हैं। नक्सलियों द्वारा किए जाने वाले हमले ज्यादातर बारुदी सुरंग में विस्फोट करके ही किए जाते हैं। वहीं गोलीबारी भी की जाती है।

यहां मुख्य बात यह भी है कि इन नक्सलियों को इन घातक हथियारों की आपूर्ति करने वाले वे कौन से तत्व हैं, जो समाज के अंदर रहकर राष्ट्रघातक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। इसके अलावा इन नक्सलियों को बारुद कौन उपलब्ध कराता है? इन सब सवालों के जवाब की जांच करना आज बहुत ही जरुरी है। नहीं तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि पूरा देश इन नक्सलियों का लक्ष्य बन जाएगा।

सरकार द्वारा बार बार यही कहा जाता है कि नक्सलियों के आतंक की ताकत कम होती जा रही है, फिर भी नक्सली अपनी चुनौती को और बढ़ाते ही जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि नक्सलियों ने इस चुनौती का साक्षात्कार केवल अभी कराया है। इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो यह परिलक्षित हो जाता है कि कभी झारखंड, कभी इसी राज्य छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में इन्होंने सरकारों के समक्ष चुनौती प्रस्तुत की है। यहां एक सवाल यह भी आता है कि जहां वामपंथ प्रभावी रहा है, उससे सटे हुए राज्यों में इनकी गतिविधियां ज्यादा दिखाई देती है। इसका आशय यह भी हो सकता है कि प्रभाव क्षेत्र राज्यों से इनको सहयोग मिलता रहा है।

यह बात पहले भी लिखी जा चुकी है कि नक्सली चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने की योजना के अनुसार ही हमला करते हैं। चुनाव आयोग भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अलग अलग चरणों में चुनाव कराता है, जिससे सुरक्षा बल की किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं हो। नक्सलियों के भय के कारण ही छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव तीन चरणों में कराने पड़ रहे हैं।

विधानसभा चुनाव दो चरणों में कराने पड़े थे। चरणों में चुनाव कराना मात्र ही नक्सली समस्या का हल नहीं है, क्योंकि इसके बाद भी नक्सली मात्र एक सप्ताह में दो बड़ी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। इसके लिए केन्द्र और राज्यों की सरकार को नक्सलियों से निपटने की ठोस और प्रभावी नीति बनानी होगी।

देश में सुरक्षा के नाम पर जो राजनीति की जाती है, उसके लिए भी राजनीतिक दलों को सचेत होना चाहिए, क्योंकि नक्सली समस्या सरकार की जिम्मेदारी तो है ही, साथ ही सभी की जिम्मेदारी भी है।

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मोबाइल-9770015780

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