राष्‍ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण(एनएएलएसए) के कार्यों की समीक्षा :विधि मंत्रालय

राष्‍ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण(एनएएलएसए) के कार्यों की समीक्षा :विधि मंत्रालय
पेसूका ००००००००००००००००००००००००००००केन्‍द्रीय विधि और न्‍याय मंत्री श्री डीवी सदानंनद गौड़ा ने कहा है कि साधन हीन वाद‍कारियों को न्‍याय मिलने के दौरान अपना पक्ष रखने में हो रही कठिनाइयों को देखते हुए राष्‍ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण(एनएएलएसए) के कार्यकलापों को और प्रभावी और तर्कसंगत बनाया जाएगा। वे संसद की परामर्शदात्री समिति के सदस्‍यों की चिंता पर प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त कर रहे थे। यह समिति नालसा के कार्यों पर उनके मंत्रालय से सबद्ध है। यह गत शाम आयोजित बैठक के एजेंडे में शामिल था। 

विधि एवं न्‍याय मंत्रालय द्वारा हाल ही में उठाए गए कदमों के बारे में उन्‍होंने कहा कि वर्तमान लोकसभा सत्र में “मध्यस्थता एवं समझौता (संशोधन) विधेयक, 2015” और “वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग, 2015 उच्च न्यायालयों विधेयक में वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन” विधेयक पेश किए गए। ये विधेयक 23.10.2015 को जारी अध्‍यादेशों की जगह लेंगे। “मध्यस्थता एवं समझौता (संशोधन) अधिनियम 2015 में देश अनुबंध को लागू करने की दिशा में व्‍यापार को आसान बनाने ताकि भारत अंतर्राष्‍ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का हब बने। वाणिज्यिक न्‍यायालय विधेयक के अनुसार एक करोड़ या इससे अधिक के विशेष मूल्‍य के वाणिज्यिक विवाद से संबंधित अपील और अर्जी की सुनवाई उच्‍च न्‍यायालय के वाणिज्यिक प्रभाग द्वारा सुने जाएंगे। संसद के चालू सत्र में उच्‍च न्‍यायालय और सर्वोच्‍च न्‍यायलय (सेवा व वेतन की शर्तें) संशोधन विधेयक को भी लोकसभा से पारित कराया गया। इस विधेयक में बार से आए न्‍यायधीशों के लिए पेंशन लाभ पाने की योग्‍यता को अभ्‍यास सेवा न्‍यूनतम दस साल करने का प्रावधान है। इसके अलावा कई अन्‍य अनावश्‍यक प्रावधानों को हटाया गया है। दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय संशोधन अधिनियम 2015 में दिल्‍ली के जिला अदालतों का आर्थिक न्‍यायक्षेत्र को 20 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपए कर दिए गए हैं। इस अधिनियम को 10.8.2015 को राष्‍ट्रपति की सहमति प्राप्‍त हो गई है और 26.10.2015 से लागू भी हो गया है। उच्‍च न्‍यायलयों (नाम परिवर्तन) विधेयक भी लाने का प्रस्‍ताव है। इस विधेयक में संबंधित राज्‍य के राज्‍यपालों , मुख्‍यमंत्रियों और मुख्‍य न्‍यायधीशों की सहमति से राष्‍ट्रपति के माध्‍यम से संबंधित उच्‍च न्‍यायलयों के नाम में बदलाव लाने का प्रावधान है।

उन्‍होंने बताया कि अदालतों में चल रहे मामलों जिनमें केन्‍द्र सरकार पक्षकार है की डिजिटल निगरानी के लिए विधि कार्य विभाग विधि सूचना प्रबंधन और ब्रीफिंग (एलएमबीएस) की प्रक्रिया क्रियान्वित करने वाला है। इस डाटाबेस और कृत्रिम बौद्धिकता का प्रयोग कर उच्‍चतर प्रशासन, भारत सरकार के बदले मामलों के बचाव या बहस करने में प्रभावशीलता, दक्षता और जवाबदेही पेश करेगा। हाल ही में मंत्रालय ने भी नोटरी एप्‍वाइटमेंट के लिए जरूरी समर्थक दस्‍तावेजों के साथ ऑनलाइन आवेदन प्राप्‍त करने का सिस्‍टम लाया है। इससे उम्‍मीद है कि डाक में दस्‍तावेजों के खोने और इससे होने वाले विलंब या अधूरे आवेदनों के मामलों में कमी आएगी। इससे आवेदक अपने आवेदनों की स्थिति का पता ऑनलाइन कर सकेंगे।

मंत्री महोदय ने बताया कि हालांकि अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है तथापि केन्‍द्र सरकार ने इसके लिए राज्‍यों और केन्‍द्र शसित प्रदेशों को 30 सितम्‍बर 2015 को वर्ष 2011-12 के लिए 3528 करोड़ रुपए जारी किए हैं। मुख्‍यमंत्रियों की समिति की सिफारिशों के अनुसार बेहतर स्‍वरूप में यह स्‍कीम चालू वर्ष भी जारी रहेगा।

श्री गौड़ा ने कहा है कि ई–कोर्ट परियोजना के दूसरे चरण का काम भी शुरू कर दिया गया है। इस परियोजना के तहत बेहतर आईसीटी की व्‍यवस्‍था की जाएगी। इसके माध्‍यम से सभी आदलतों को वैश्विक कम्‍पूटरीकरण के जरिये क्‍लाउड कम्‍यूटिंग और वकीलों तथा वदकारियों के लिए ई- सेवा की बेहतर उपलब्‍धता प्रस्‍तुत करना है। वकील और पक्षकार ई – फाइलिंग, ई- पेमेंट,और मोबाइल के जरिये इस सेवा का लाभ उठा सकेंगे। सलाहकार समिति में नालसा के कार्यों पर चर्चा का मामला उठाया गया है।

कानूनी सेवाएं प्राधिकरण अधिनियम 1987 के तहत कानूनी मदद और सहायता प्रदान करने के लिए एक राष्‍ट्रव्‍यापी नेटवर्क की परिकल्‍पना की गई थी। इस अधिनियम के तहत कानूनी सेवाओं के लिए प्रभावी आर्थिक स्‍कीम के लिए नीतियों ओर सिद्धांतों का प्रतिपादन करने की नालसा सर्वोचच संस्‍था है। नालसा के सिद्धांतों और नीतियों को साकार करने के लिए प्रत्‍येक राज्‍य में राज्‍य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण का गठन किया गया है। नालसा आम लोगों को कानूनी सहायता देती है और लोक अदालतों का भी आयोजन करती है। भारत के मुख्‍य न्‍यायधीश प्रधान संरक्षक और इसके बाद सबसे वरिष्‍ठ न्‍यायधीश नालसा के कार्यकारी अध्‍यक्ष होते हैं। संबंधित उच्‍च न्‍यायलय के मुख्‍य न्‍यायधीश राज्‍य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण के प्रधान और इसके मुख्‍य संरक्षक भी होते हैं। सेवा निवृत्‍त या उच्‍च न्‍यायलय के कार्यरत न्‍यायधीश को इसका कार्यकारी अध्‍यक्ष मनोनित किया जाता है। इसके साथ ही तालुक और जिला स्‍तर पर भी कानूनी सेवा प्रदान करने का जनादेश अधिनियम देता है। हालांकि अधिकतर देशों में कानूनी सहायता प्रदान करना कार्यपालिका का काम है लेकिन भारत में इसका संपादन ओर क्रियान्‍वयन न्‍यायपालिका द्वारा की जाती है।

संवैधानिक गारंटी सुरक्षित करने के लिए नालसा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लंबित मामलों के साथ-साथ पूर्व-मुकदमेबाजी स्तर पर विवादों को निपटाने के लिए देश के सभी जिलों में स्थायी और सतत लोक अदालतों की स्थापना करना, कानूनी साक्षरता और कानूनी जागरूकता अभियान चलाना जैसे कई कदम उठा रही। इसके अलावा, देश में मजिस्ट्रेट स्‍तर के सभी न्यायालयों में “कानूनी सहायता वकील” की नियुक्ति की गई है, जेलों में कानूनी सहायता सुविधाओं के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए कानूनी सहायता योजनाएं और कार्यक्रमों के प्रचार, देश के सभी जिलों में परामर्श और सुलह केन्द्रों की स्थापना, और कानूनी सेवाओं संबंधी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाने का काम भी नालसा करती है।

नालसा गरीबों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए अनुदान देती है। इसके तहत वर्ष 2012-13 में 39.03 करोड़, 2013-14 में 83.02 करोड़, 2014-15 में 58.66 करोड़ रुपए खर्च किए गए और 2015-16 में 73.3 करोड़ खर्च होने का अनुमान है। हाल ही में नालसा ने कमजोर व्यक्तियों, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, बच्चों, मानसिक रूप से बीमार, आदिवासियों और नशीली दवाओं के शिकार लोगों के लिए कानूनी सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से सात नई योजनाओं की शुरूआत की है।

बाद में, चर्चा में भाग लेते हुए श्री के.टी.एस. तुलसी, श्री मजीद मेमन, श्री ए. नवानीथाकृष्णन और श्री जोस जॉर्ज ने आरोप तय करने के बाद जमानत राशि न होने, पैनल वकीलों को कम पारिश्रमिक, और वकीलों की उपलब्धता जैसे मुद्दों के कारण न्याय होने में देरी पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्‍होंने बताया कि नजरबंदी के क्षण से लोगों के लिए कुशल और अच्छे वकील उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वादी के पास वकील चुनने का विकल्‍प होना चाहिए। स्थानीय रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों को इस उद्देश्य में शामिल किया जाना चाहिए। श्री तुलसी ने कहा कि बहु अनुशासनिक ढांचे वाला कानूनी सहायता कार्यक्रम चलाना चाहिए। यह भी सुझाव दिया गया कि न्याय वितरण में विश्वास बनाए रखने के लिए और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए हमें बेहतर दोषसिद्धि की दर को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। श्री मजीद मेमन ने कहा कि न्याय होने में देरी की वजह से लोगों का न्याय प्रणाली से विश्वास उठ रहा है।

उन्‍होंने कहा कि मुकदमा 10 सालों से भी ज्‍यादा अवधि तक चलता है और फैसले में पता चलता है कि वह दोषी नहीं है, तो इस दौरान हुई उस व्‍यक्ति के कीमती समय की क्षतिपूर्ति को कोई रास्‍ता नहीं है। श्री ए. नवानीथाकृष्णन ने औद्योगिक आपदाओं और बड़े पैमाने पर हिंसा और आतंकवादी वारदातों के पीड़ितों को न्याय के लिए मंत्री से आग्रह किया। श्री जोस जॉर्ज महिलाओं और असहाय बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर चिंता जताई और शीघ्र निवारण के लिए आग्रह किया। यह भी सुझाव दिया गया कि मामलों की स्थिति पर उचित और नियमित अद्यतन नालसा और साल्सा दोनों के लिए उपलब्ध कराए जा सकते हैं। मंत्री महोदय ने सभी सदस्‍यों को आश्‍वासन दिया कि उनके सुझावों पर उचित ध्‍यान दिया जाएगा और इस संबंध में सुधारों को आगे बढ़ाया जाएगा। बैठक के दौरान नालसा की उपलब्धियों पर एक प्रस्‍तुति भी पेश की गई।

बैठक में 20 मई 2015 को आयोजित परामर्शदात्री समिति की पिछली बैठक के मिनट और एटीआर रिपोर्ट की पुष्टि की गई।

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