• November 7, 2018

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को  मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती

मुंबई। मुंबई हाईकोर्ट में राष्ट्रपति की चुनाव की प्रक्रिया को लेकर २ नवंबर २०१८ को एक जनहित याचिका (PIL- १०७/२०१८) दाखिल की गयी।यह याचिका समाजसेवक पं. राजकुमार शर्मा ने दायर की थी।जिसमे आर्टिकल ५८ को चैलेंज किया गया था। इस पर १९ नवंबर २०१८ को सुनवाई होगी।

याचिका करता पं.राजकुमार शर्मा ने इस अवसर पर कहा,” राष्ट्रपति मेंबर ऑफ़ हाउस नहीं होना चाहिए। क्यों कि यह कही ना कही किसी ना किसी राजनितिक पार्टी से जुड़ा रहता है और इसलिए कही ना कही वह जनता के बारे में ना सोच कर राजनितिक पार्टी की सरकार सपोर्ट करता है या करना पड़ता है। केंद्र सरकार जोभी आदेश भेजती है वह केवल उसपर स्टाम्प लगाकर पास करके भेज देता है और अपने विवेक का उपयोग नहीं कर पाते है या नहीं करते है। इसलिए इसके लिए न्यायिक सूझबूझ वाला व्यक्ति होना चाहिए और हमारे देश में भी अमेरिका की तरह ही डिबेट के जरिये,वोटिंग के और पब्लिक के जरिये ही राष्ट्रपति का चुनाव होना चाहिए और कार्यकाल १० वर्ष होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति का चुनाव गवर्नर प्रमोशन से होना चाहिए और ऑटोमी जनरल का चुनाव सुप्रीम कोर्ट के जजों में से होना चाहिए। तब जनता का भला हो पायेगा। उसी तरह राज्य के गवर्नर का चुनाव भी केवल राज्य के कलेक्टरों में से होना चाहिए।जिससे राज्य की क़ानून व्यवस्था बनी रहे। क्योंकि जब सरकार के लोग गवर्नर अपनी पार्टी के लोगों को बनाते है तो व कई बार सही निर्णय नहीं ले पाते। जिससे राज्य की व्यवस्था ख़राब हो जाती है। राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,राज्य के गवर्नर किसी भी पार्टी का नहीं होना चाहिए।”

जब लोकतंत्र में कानून है कि जो भी हो जनता के लिए व जनता द्वारा और उनके हित के लिए। तो क्यों राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा दिये वोट के द्वारा नहीं किया जा सकता है?

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