- December 6, 2017
राज्य सरकार के 4 साल—देश में अलग पहचान
-सत्यनारायण शर्मा————–मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने इस बात को गम्भीरता से महसूस किया कि राज्य के विकास के लिए औद्योगिक शांति बनी रहनी आवश्यक है। इसके साथ ही उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों के वैधानिक अधिकार भी सुरक्षित रहें। आए दिन होने वाले आन्दोलनों और अनावश्यक छटनी व तालाबन्दी से मुक्ति मिल सके तथा विकास का पहिया अबाध गति से घूमता रहे।
अपनी इसी सोच के तहत श्रीमती राजे ने चार वर्ष के शासन के दौरान राज्य में अभिनव श्रम सुधारों की पहल की। जिनकी देश भर में सराहना हुई। इसी का नतीजा है कि राज्य में कोई बड़ा श्रमिक आन्दोलन नहीं हुआ और औद्योगिक शांति बनी रही। यही नहीं बड़ी संख्या में निवेशक भी राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए आगे आने लगे हैं।
श्रीमती राजे ने राज्य में औद्योगिक निवेश, उत्पादन तथा रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए श्रम कानूनों में आवश्यक सुधार व संशोधन करने का नीतिगत निर्णय लेते हुए विधानसभा में महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराए। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 तथा ठेका श्रमिक (उन्मूलन एवं विनियमन) अधिनियम 1970 के केन्द्रीय कानूनों में राज्य संशोधन विधेयक विधानसभा में पारित कराए गए। इन संशोधनों की वजह से राजस्थान की देशभर में अलग पहचान बनी है। अन्य राज्य सरकारों के अलावा केन्द्र सरकार ने भी इन महत्त्वपूर्ण श्रमिक व उद्योग हितैषी संशोधनों के लिए राजस्थान सरकार की सराहना की है।
राज्य विधानसभा में औद्योगिक विवाद (राजस्थान संशोधन) विधेयक-2014 के पारित होने से श्रमिकों के विवादों को निपटाने की अधिकतम सीमा तीन वर्ष तय हो गई है। इससे पूर्व छटनी, सेवा मुक्ति व बर्खास्तगी आदि से सम्बन्धित विवादों के निपटारे में वर्षों लग जाते थे। समय सीमा तय होने से निश्चित रूप से श्रमिकों को राहत मिल सकेगी।
अब छटनी या कामबन्दी करने वाले संस्थानों को इस कार्य हेतु पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। ऎसे संस्थानों में कार्यरत श्रमिकों की संख्या में भी पहले के मुकाबले वृद्धि की गई है। साथ ही छंटनी व तालाबन्दी से प्रभावित होने वाले श्रमिकों को वित्तीय सुरक्षा उपलब्ध कराने के प्रावधान भी विधेयक में किए गए है।
छंटनी किए गए श्रमिकों को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से देय मुआवजा राशि में तीन माह की औसत मजदूरी के समान राशि अतिरिक्त देने का विधेयक में प्रावधान किया गया है। इसी के साथ संस्थान के बंद होने की स्थिति में श्रमिकों को निर्धारित दर पर मुआवजे के अतिरिक्त तीन माह की औसत मजदूरी का भुगतान भी नियोजक द्वारा किया जाएगा। पहली बार ‘‘गो-स्लो’’ को भी परिभाषित किया गया है।
संशोधन विधेयक पारित कराने के साथ ही राज्य सरकार ने विवादों के निपटारे में भी तत्परता से काम किया गया, जिसका नतीजा है कि अब तक औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत श्रमिकों के सेवामुक्ति एवं शर्तों आदि की 4 हजार 665 शिकायतों, 2 हजार 92 विवादों तथा 1 हजार 862 असफल वार्ता प्रतिवेदनों का निस्तारण किया जा चुका है। अभियोजन स्वीकृति एवं अनुचित श्रम व्यवहार के 516 प्रकरणों का निस्तारण किया गया। साथ ही श्रम न्यायालयों व औद्योगिक न्यायाधिकरणों द्वारा करीब 10 हजार 11 प्रकरण निर्णित कर श्रमिकों को राहत पहुंचाई गई है।
श्रम सुधारों से ही सम्बन्धित एक अन्य पहल के तहत ठेका श्रम विनियमन और उन्मूलन (राजस्थान संशोधन) विधेयक-2014 को विधानसभा में पारित कराया गया। इस विधेयक का मकसद रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराना और छोटी व लघु इकाइयों के नियोजकों तथा छोटे ठेकेदारों को सुविधा उपलब्ध कराने का है। विधेयक के जरिए ठेका श्रमिक नियोजित करने की संख्या को बीस से बढ़ाकर पचास निश्चित कर दिया गया है।
इसी प्रकार राज्य विधानसभा में कारखाना (राजस्थान संशोधन) विधेयक-2014 को पारित कराया गया है। कारखाना अधिनियम के पुराने उपबन्धों के अधीन अपराधों के शमन हेतु कोई उपबन्ध नहीं था, जिससे अभियोजन मामलों की संख्या बढ़ रही थी।
संशोधन विधेयक में आपराधिक मामलों के त्वरित निस्तारण और वादकरण की संख्या में कमी लाने के प्रावधान किए गए हैं। कारखानों की परिभाषा में आने वाली इकाइयों में श्रमिकों की संख्या की न्यूनतम सीमा रेखा को बढ़ाकर बीस और चालीस कर दिया गया है। इससे लघु विनिर्माण इकाइयों की स्थापना से कर्मकारों के लिए नियोजन के अधिक अवसर सृजित हो सकेंगे। श्रमिक हित में एक महत्वपूर्ण संशोधन यह किया गया है कि ‘‘किसी न्यायालय द्वारा किसी भी अपराध का संज्ञान, किसी निरीक्षक द्वारा, राज्य सरकार से लिखित पूर्व मंजूरी के पश्चात, किए गए परिवाद पर लिया जाएगा।’’
राज्य सरकार ने श्रमिक हित संरक्षण के लिए जहां वैधानिक उपाय किए हैं वहीं कई कल्याणकारी योजनाएं भी लागू की हैं, जिनका हजारों श्रमिकों द्वारा लाभ उठाया जा रहा है। सरकार ने बीते साढ़े तीन वर्षों में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के प्रावधानों के तहत अकुशल, अर्धकुशल, कुशल एवं उच्च कुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी की दरों में तीन बार वृद्धि कर उनके हितों का ध्यान रखा है। राज्य में पहली बार तैयार विभागीय सॉफ्टवेयर-लेबर डिपार्टमेंट मैनेजमेंट सिस्टम (एलडीएमएस) के लोकार्पण के बाद से अब तक 14 लाख 86 हजार 155 प्रार्थना पत्रों का ऑनलाइन निस्तारण किया जा चुका है।
अन्य अभिनव प्रयोगों व नवाचारों के जरिए भी श्रमिकों को लाभान्वित किया जा रहा है। निर्माण श्रमिकों की सुविधा के लिए पंजीयन तथा योजनाओं के आवेदन ऑनलाइन किए जाने की व्यवस्था अनिवार्य की गई है। अब निर्माण श्रमिक कहीं से भी आवेदन करने हेतु सक्षम हैं। अब तक एलडीएमएस पोर्टल पर 20 लाख 43 हजार 22 पंजीयन आवेदन तथा 5 लाख 20 हजार 950 योजनाओं के आवेदन प्राप्त हो चुके हैं। सभी योजनाओं के लिए एक ही आवेदन पत्र ‘‘सरल-2016’’ जारी किया गया है।
अब कल्याण मण्डल में अंशदान राशि 60 रुपये प्रतिवर्ष के स्थान पर पांच वर्ष के लिए 60 रुपये लिए जाने लगे हैं। साथ ही एलडीएमएस के माध्यम से मण्डल की योजनाओं के हित लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तान्तरित किए जाने तथा भामाशाह योजना के प्लेट फार्म से जोड़ने की व्यवस्था भी की गई है।
पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के कार्य के दौरान उनके शून्य से 6 वर्ष वयवर्ग के बच्चों की देखरेख, पालन पोषण व शाला पूर्व शिक्षा की सेवाएं प्रदान करने हेतु केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड के अधीन व महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के उपक्रम के रूप में राजस्थान में कार्यरत राजस्थान राज्य समाज कल्याण बोर्ड जयपुर के माध्यम से एक हजार पालना गृह खोलने हेतु 3 अक्टूबर, 2017 को ही अनुबन्ध किया जा चुका है।
राज्य में भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक कल्याण मण्डल द्वारा 14 लाख 38 हजार 74 निर्माण श्रमिकों का हिताधिकारियों के रूप में पंजीयन कर अब तक उनमें से 2 लाख 18 हजार 787 को विभिन्न योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जा चुका है। प्रदेश में सभी पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को राज्य सरकार की भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना से जोड़ा गया है। इसके लिए प्रीमियम राशि का भुगतान श्रमिक कल्याण मण्डल द्वारा किया जाता है।
राज्य में जनवरी, 2016 से लागू ‘‘निर्माण श्रमिक शिक्षा व कौशल विकास येाजना के तहत पंजीकृत श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति व मेधावी छात्र-छात्राओं की प्रोत्साहन राशि में 2 से 8 गुना तक वृद्धि करने की एकीकृत योजना शुरू की गई है।
वर्तमान में योजना के तहत 8 हजार रुपये से 25 हजार रुपये तक छात्रवृत्ति तथा 4 हजार रुपये से 35 हजार रुपये तक प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इस योजना के तहत 58 हजार 33 लाभान्वितों को 64.08 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी गई है।
जनवरी, 2016 से ‘‘निर्माण श्रमिक सुलभ्य आवास योजना भी शुरू की गई है। इसके तहत निर्माण श्रमिकों को सरकार की अफोर्डेबल हाउसिंग योजना’’ अथवा केन्द्र सरकार/राज्य सरकार की अन्य किसी आवास योजना में आवास प्राप्त करने के लिए अथवा स्वयं का घर बनाने हेतु 1 लाख 50 हजार रुपये तक का अनुदान दिया जा रहा है। अब तक 464 लाभान्वितों को 7.49 करोड़ रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई है।
श्रमिकों व उनके परिजनों के कल्याण के प्रति राज्य सरकार की गम्भीरता को दर्शाने वाली कुछ अन्य योजनाएं इस प्रकार है- पंजीकृत निर्माण श्रमिक की दुर्घटना में मृत्यु पर पांच लाख रुपये, स्थाई अपंगता होने की स्थिति में एक लाख से 3 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाती है। सामान्य मृत्यु पर परिजनों को देय सहायता राशि 75 हजार रुपये से बढ़ाकर एक अप्रेल, 2016 से 2 लाख रुपये की गई है। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में सहायता योजना के तहत 3 हजार 555 लाभान्वितों को 65.22 करोड़ रुपये की मदद दी गई है।
‘‘शुभ शक्ति योजना’’ राज्य में जनवरी, 2016 से लागू की गई है। इसके तहत पंजीकृत निर्माण श्रमिकों की 2 बालिग बेटियों को उद्यमिता से सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने हेतु 55 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। अब तक योजना के तहत 42 हजार 799 लाभान्वितों को 246.24 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी जा चुकी है।
निर्माण श्रमिक जीवन व भविष्य सुरक्षा योजना के तहत ‘‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’’, ‘‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना’’ तथा ‘‘अटल पेंशन योजना’’ में जमा कराई गई प्रीमियम राशि का 50 से 100 प्रतिशत तक पुनर्भरण निर्माण श्रमिक मण्डल द्वारा किया जाता है।
‘‘भामाशाह निर्माण श्रमिक बीमा योजना’’ के तहत सभी हिताधिकारियों का ‘‘आम आदमी बीमा योजना’’ में समूह बीमा 14 जनवरी, 2016 से कराया जा रहा है। योजना के तहत दुर्घटना में मृत्यु अथवा पूर्ण अपंगता की स्थिति में 75 हजार रुपये तथा सामान्य मृत्यु पर 30 हजार रुपये बीमा लाभ भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा देय है।
इसी प्रकार पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के ‘‘सिलिकोसिस’’ बीमारी से पीड़ित होने की स्थिति में मेडिकल बोर्ड के प्रमाण पत्र के आधार पर एक लाख रुपये तथा ‘‘सिलिकोसिस’’ से मृत्यु होने पर तीन लाख रुपये की सहायता देने की योजना की भी 5 अगस्त, 2015 से शुरूआत की गई है।
योजना के तहत अब तक एक हजार 362 निर्माण श्रमिकों के मामलों में कुल 13.38 करोड़ रुपये की सहायता राशि प्रदान की जा चुकी है। ‘‘प्रसूति सहायता योजना’’ के अन्तर्गत देय राशि को 6 हजार रुपये से बढ़ाकर, लड़के का जन्म होने पर 20 हजार और लड़की के जन्म की स्थिति में 21 हजार रुपये किया गया है। अब तक योजना के तहत 8 हजार 417 लाभान्वितों को 13.58 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी जा चुकी है।
अप्रेल-2016 से पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को अपने कार्य या व्यवसाय से सम्बन्धित औजार/टूलकिट खरीदने हेतु 2 हजार रुपये तक की राशि श्रमिक कल्याण मण्डल द्वारा पुनर्भरण करने की योजना भी राज्य में शुरू की गई है। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में इस योजना के तहत अब तक 9 हजार 836 लाभान्वितों को 1.73 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी गई है।
राज्य सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों को प्रभावी तरीके से लागू करने की दिशा में भी प्रयास किए है। ऎसे श्रमिकों में जागरूकता पैदा करने के लिए विभिन्न जिलों में सुविधा एवं सूचना केन्द्र शुरू किए हैं।
श्रम सुधारों के क्षेत्र में राज्य सरकार की चार वर्षों की उपलब्धियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रदेश में श्रमिकों के वैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने के साथ ही उनके व परिवारजनों के सुखद भविश्य के लिए उल्लेखनीय योजनाओं का सूत्रपात किया गया है। इससे राजस्थान श्रम सुधारों के मामले में देश का अग्रणी राज्य बन गया है।
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