- December 21, 2015
राजस्थान भाजपा में दरार : राज करेगा खालसा , आकी रहे न कोई – जग मोहन ठाकन
चुरु – अभी सरकार को जुम्मे जुम्मे दो ही वर्ष पूरे हुए हैं कि राजस्थान भाजपा में विरोध के स्वर प्रस्फुटित होने प्रारम्भ हो गए हैं और वो भी गुरु गोबिंद सिंह जी के नीति वाक्य –“राज करेगा खालसा , आकी रहे न कोई” के उदघोष के साथ |
अभी तेरह दिसम्बर को ही प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपनी एक छत्र सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में अपना कीर्ति ध्वज फहराया ही था कि एक सप्ताह बाद ही उन्नीस दिसम्बर को भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता एवं सांगानेर से विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने अपनी दीनदयाल सेनानी वाहिनी के माध्यम से कभी अर्जुन के रथ पर फहराए गए कपिध्वज को भाजपा की ही मुख्यमंत्री राजे के खिलाफ प्रतीक स्वरुप फहराना प्रारम्भ कर दिया है |
गत वर्ष तक विधान सभा में भाजपा के १६३ में से १५० विधायकों एवं २५ सांसदों के दम पर केंद्रीय नेतृत्व के सामने अकड़ कर चहल कदमी करने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर ललित मोदी प्रकरण तथा सिंघवी खान घोटाले की काली छाया ने राजे को अपनी रणनीति बदलने को मजबूर कर दिया |और यही वजह रही कि अपनी सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने पर अभी तेरह दिसम्बर को मनाये गए जश्न में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को बुलाना पड़ा | गत छब्बीस नवम्बर को वसुंधरा ने स्वयं अमित शाह के घर जाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस जश्न में आने का न्योता दिया और राज्य में की जाने वाली राजनीतिक नियुक्तियों तथा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के लिए करवाए जा रहे चुनावों को लेकर भी चर्चा की |
अमित शाह ने भी मौके की नजाकत को समझते हुए जश्न में सरकार के विकास में संगठन की भूमिका की सराहना की | शाह ने कहा –राजस्थान सरकार एवं संगठन के बीच अच्छे ताल मेल के चलते ही यहाँ विकास के कई आयाम स्थापित किये गए हैं और इन्हें देखते हुए कांग्रेस वर्षों तक दूर दूर तक दिखाई नहीं देगी |शाह को जश्न में शामिल कर वसुंधरा ने एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास किया है |एक तरफ केंद्रीय नेतृत्व की नाराजगी दूर की तो दूसरी तरफ जनता व प्रदेश भाजपा बेड़े में यह सन्देश प्रेषण करने में सफलता पायी कि राजे का अभी भी सरकार व संगठन में पूरा दबदबा कायम है |
इसी के परिणाम स्वरुप केन्द्रीय नेतृत्व के आशीर्वाद से भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष चुनाव में अभी दिसम्बर माह में ही अपने खासमखास अशोक परनामी को ही निर्विरोध दोबारा प्रदेशाध्यक्ष की गद्दी सौंपने में कामयाबी हासिल कर ली | परनामी भी दोबारा अध्यक्ष बनाने पर वसुंधरा राजे व राष्ट्रीय नेतृत्व का आभार जताना नहीं भूले |साथ ही राजे ने भी प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व की जमकर तारीफ की |
जब जब सत्ता का केंद्र चंद हाथों में कैद हो जाता है तो कहीं न कहीं से विरोध के स्वर प्रस्फुटित होने शुरू हो ही जाते हैं , जिन पर यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यही मंद मंद स्वर विस्फोटक नारों में बदल जाते हैं |राजस्थान भाजपा में भी विरोध के स्वर उभरने लगे हैं |भाजपा के सांगानेर से विधायक एवं वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी पिछले कुछ दिनों से राजे के अप्रत्यक्ष विरोध में उतरे हुए हैं | हालांकि तिवाड़ी राजे के पिछले कार्यकाल वर्ष २००३ -२००८ की सरकार में शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं |
राज्य में भैरों सिंह शेखावत के बाद उपजी रिक्तता को देखते हुए तिवाड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी के सपने बुनने लगे थे , परन्तु राजे ने उनके सारे सपने चकनाचूर कर दोनों ही बार मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली | अब तिवाड़ी पार्टी में मिल रहे तिरष्कार से विचलित हो बगावती तेवर अपनाने को विवश हो गए हैं | तिवाड़ी की सांप छछूंदर वाली गति हो गयी है , न पार्टी छोड़ते बनता है न पार्टी में रहकर तिरष्कार सहना बनता है | तिवाड़ी ने राजे से विरोध जताने के लिए विधान सभा की लाइब्रेरी समिति से भी इस्तीफा दे दिया है और कह रहे हैं कि वे अब राजनीतिक संस्कृति यात्रा पर निकलेंगे , इसमे वे विभिन्न शहरों में जाकर राजनीतिक संस्कृति की बात करेंगें |
उल्लेखनीये है कि दो अक्टूबर को राजस्थान भाजपा के सांगानेर मंडल के एक प्रशिक्षण शिविर में विधायक घनश्याम तिवाड़ी को पार्टी के ही एक गुट विशेष के कार्यकर्ताओं ने प्रवेश तक नहीं करने दिया था और इसी धक्का मुक्की में तिवाड़ी को शारीरिक चोट के साथ साथ साख की चोट भी लगी थी | कहावत है कि शरीर की चोट का घाव भर जाता है परन्तु बोल का घाव नहीं भरता | इसी साख की चोट से आहत हो तिवाड़ी ने राजे के विरोध का बीड़ा उठाया है | तिवाड़ी अब बदसलूकी के इस घाव को भुलाना नहीं चाहते अपितु भुनाना चाहते हैं |
इसी कड़ी में अभी उन्नीस दिसम्बर को ही तिवाड़ी ने पण्डित दीनदयाल स्मृति संस्थान के बैनर तले अपने आवास पर ही जयपुर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की एक हंगामी मीटिंग आयोजित की है , जिसमे उन्होंने बिना किसी का नाम लिए विरोध की दहाड़ लगाई | उन्होंने इशारों ही इशारों में सरकार पर प्रहार भी किये |
तिवाड़ी ने अपने कार्यकर्ताओं के मुख से सिक्ख गुरु गोबिंद सिंह के नीति वाक्य “राज करेगा खालसा , आकी रहे न कोई” के नारे लगवा कर वर्तमान सरकार को चुनौती देने का प्रयास भी किया | मीटिंग में इस नारे का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा कि खालसा यानि पवित्र तथा आकी यानि पापी | इसी नारे के साथ ही तिवाड़ी ने उदघोष कर दिया कि अब समय आ गया है कि पवित्र व्यक्ति ही राज करेगा , पापी नहीं |
इसी मीटिंग में दीनदयाल सेनानी वाहिनी का गठन कर आगे का कार्यक्रम भी तय किया गया कि राज्य स्तरीय सम्मलेन बुलाकर कार्यकर्ताओं को संगठित किया जाएगा | तिवाड़ी ने कहा कि कार्यकर्ता दीनदयाल सेनानी वाहिनी के जरिये राज्य भर में पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के विचारों का संचार करेंगे |कार्यकर्ताओं के हाथों में लहराते कपिध्वज एवं जोश से उद्वेलित हो तिवाड़ी ने कहा कि ऐसा ही कपिध्वज महाभारत की लड़ाई में अर्जुन के रथ पर फहराया गया था और इसी कपिध्वज की लहर में अर्जुन विजयी हुआ था |
तिवाड़ी ने राजे के विरोध का उदघोष तो कर दिया है ,परन्तु उन्हें इसमें कितनी सफलता मिलती है यह तो आने वाला समय ही निर्णित करेगा | हाँ , राजे के बारे में राजनीतिक पंडितों का आंकलन है कि राजे अपने विरोध के स्वर को चाणक्य नीति के तहत ऐसा दबाती है कि विरोध करने वाला ही विलुप्त हो जाता है | कभी राजस्थान भाजपा में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्गज नेता जसवंत सिंह की तूती बोलती थी , राजे से टकराव के कारण उन्हें भाजपा से गर्म दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकलना पड़ा | क्या घनश्याम तिवाड़ी अपने विरोधी स्वर को कामयाबी के मुकाम तक पहुंचा पाएंगे ? क्या वे राजे को मात दे पाएंगे ? या जसवंत सिंह की तरह ही दूध में गिरी उस मक्खी की तरह ही बाहर फेंक दिए जायेंगे जो अपने पंख जलने के कारण छटपटा तो सकती है पर उड़ नहीं सकती ?
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