• January 27, 2018

राजनीति के पार्श्व खिलाडी— शैलेश कुमार

राजनीति के पार्श्व खिलाडी— शैलेश कुमार

मतदाताओं ने चुनाव को महंगा किया है .

मतदान के समय एक बोरी अनाज,कुछ रुप्ये लेकर एक दिन में एक मिनट के लिये अपना वजूद बेच रहा है .
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क्या मतदाताओं ने ये कभी सोचा है कि ये दान उसे क्यों मिल रहा है- इसे पाने के लिये कलंदर – बंदर की तरह अपने में क्यों लूट मचा रहा है ?

राजनीतिक दल को इस दान कार्य के लिये रुप्या कहां से मिल रहा है ?

मैं ये कहना चाहता हूं कि राजनीतिक दल उद्योगपति से चंदे लेते है उस चंदे को आप जैसे कलंदरों में बांटा जाता है कि लोभ से उस पार्टी को वोट देकर सत्ता सौपें.

उद्योगपति क्यों देता है चंदा ?

वह चंदा इसलिये देता है कि सरकार बनने के बाद वह उसके इशारे पर नाचे. नाच नेता नाच.

उद्योगपति ये राशि कहां – कहां से लाते है–

क) टैक्स की चोरी

ख) न्यूनतम मजदूरी की चोरी

ग) मजदूरों की मजदूरी में कटौती— काम करवा कर बिना वेतन दिये भगा देना, गलत हाजरी बही रखना , सरकार के लिये और तथा मजदूरों के लिये और.
घ) लाभांश.

देश में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री आगमन पर तोडन- फोडन द्वार की खर्चे उस क्षेत्र के धन्नामल सेठों और उद्योगपतियों द्वारा वहन किया जाता है .

सरकार जब बन जाती है तो उद्योगपतियों की चांदी हो जाती है.

इसलिये आज तक मजदूरों के हित में न कांग्रेस कानून लागू किया और न वर्तमान के बीजेपी ही करेगी और न भविष्य में आने वाले कोई पार्टी ही करेगी क्योंकि सारा खेल पैसों पर ही होता है.सोने कि अंडे देने वाली मुर्गी को कोई हलाल नही करता है.

इसलिये हर चुनाव के बाद मजदूरों और गरिबों के लिये नारा देने वालों का नारा टूट जाता है क्योंकि उसे तो एक बोरी आटा में खरीद कर एहसानमंद नेवला बना लिया जाता है.

वोट आम मतदाताओं का और मौज मलाई मारने वालों का ?

जब तक मतदाता गंभीर नही होंगे, जब तक चुनाव व्यवस्था को अपना नही समझेंगे तब तक सर मुंडाते फिरते रहेंगे.

मतदाताओं को चुनाव के समय मिलने वाले किसी भी मुफ्त वस्तुओं को नही लेना चाहिये और वोट उसे देना चाहिये जिसे मन करें–क्योंकि देश और समाज का निर्माता नेता और मीडीया नही होता है, मतदाताओं का एक- एक वोट होता है, कहावत सही है- जैसे बीज बोयेगें वैसे ही फल मिलेगा. अर्थात बोये पेड बबूल का आम कहां से खाय.

बडे ही ख्वाव से तुझे देखा गुनगुने नींद में लेकिन ख्वाव के सपने टूटे एक ही झटके में.

बीजेपी सरकार ने कुछ किया!

गरीब और मजदूरों के लिये. जीरों बैलंस से बैंक एकांउट खुलवाया और आज आहरण पर भी टैक्स लगाने की सोच रही है.आहरण ही नही, खाता अद्यतन करवाने पर भी टैक्स लेने जा रही है.

इसे इस तरह समझें की दस हजार मासिक देहाडी वाले अगर थोडा- थोडा करके पांच बार आहरण करे तो उसे पांच बार टैक्स लगेगा. वह एटीएम से निकाले या आहरण पत्र से.

मजदूरों के लिये – श्रम विभाग, मंत्रालय , श्रम आयुक्त, श्रम न्यायालय जो सुनने को मिलता है वह सब हाथी के दांत है.इस सबों के पास मजदूरहित के लिये कोई जगह नही है क्योंकि ये विभाग उद्योगपति और राजनेताओं के लिये काम करते है. मुफ्त में वेतन पाने वाले मुफ्तखोर बिभाग है.

केन्द्र और राज्य सरकार के श्रम मंत्रालाय के पास किसी भी तरह का कोई रिकार्ड नही है —-
किस फैक्ट्री में कितने श्रमिक है. किस ठीकेदार के पास कितने श्रमिक है और उसकी दुर्दशा क्या है ?

श्रम विभाग के पास निबंधित ठीकेदार की सूची भी नही है. अर्थात –आया राम गया राम————-

क्या जिला श्रम विभाग के पास कोई रिकार्ड है की उसके जिला मे कितने फैक्ट्रीयां है और उस फैक्ट्री की अद्यतन स्थिति क्या है !

जिस काम के लिये फैक्ट्री निबंधित है उसमें वह काम हो रहा है ??

क्या श्रम विभाग के पास कोई रिकार्ड है कि अमूक महिना में कुल —-श्रमिकों ने शिकायत की है और उसका समाधान किया गया है –कुल —अनुदेशित है.

नही –!!

अर्थात श्रमिकों से सबंधित सरकार के पास कोई रिकार्ड नही है! अगर होता तो बबाना की फैक्ट्री में आग से दर्जनों मजदूरों कि मौतों पर यह प्रश्न नही उठता –कौन ? कितने ? और कहां से ???

मृत मजदूरों कि पहचान क्यों नही हुई , हाजरी पुस्तक कहां है ,उसमें मजदूरों का नाम होना चाहिये.

फैक्ट्री वाले आधार कार्ड लेते है .इतने पहचान के बावजूद भी मजदूरों की पहचान नही होती तो फिर श्रम आयुक्त, श्रम विभाग और श्रम न्यायालय पर खर्च क्यों किया जा रहा है. उसे समाप्त क्यों नही किया जा रहा है.

सही में कहा गया है निर्बल के नहिं दोष गोसाई——-

अतः मजदूरों के लिये वर्तमान की बीजेपी सरकार भी पूर्व के कांग्रेस की तरह ढाक के तीन पात ही है ——-गरिबों के मत से बनी सरकार , गरीबों के लिये काल—–

राजद के सुप्रिमों ने सही कहा था –मैं तुम्हारे वोट से सरकार नही बनाई है तो क्या —–बीजेपी भी————-?

सरकार ही नही सभी राजनीतिक दल , छोटे हो या बडे, उद्योगपतियों जैसे रावण के चंगुल में फंसा हुआ है जहां से निकलना नामूमकिन है—

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