यूपीएससी—हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों के लिए टेढ़ी खीर प्रो. निरंजन कुमार

यूपीएससी—हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों  के लिए टेढ़ी खीर  प्रो. निरंजन कुमार

भारतीय राज व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में सरकार के अलावा जिन संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, उनमें चुनाव आयोग, उच्चतम न्यायालय आदि के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग भी शामिल है। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) का प्रमुख कार्य सिविल सेवा में नियुक्ति संबंधी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को संपन्न कराना है।

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुकाबले यूपीएससी विवादों से मुक्त रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से यूपीएससी की परीक्षा पद्धति पर हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों द्वारा सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह परीक्षा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों के लिए टेढ़ी खीर बनती जा रही है।

हिंदी अनुवाद को लेकर विवाद

दरअसल विभिन्न विषयों के प्रश्न-पत्र मूल रूप से अंग्रेजी में बनते हैं, फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। इन प्रश्नों के हिंदी अनुवाद को लेकर ही विवाद खड़ा हुआ है। पहले भी सामान्यतया प्रश्न-पत्र अंग्रेजी में ही बनते थे, फिर उनका हिंदी में अनुवाद होता था, लेकिन लगता है कि अनुवाद में अब तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है और इसीलिए गड़बड़ियां हो रही हैं।

अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग

अनुवाद में तकनीक का उपयोग कई तरीकों से हो सकता है। एक तो मशीनी या कंप्यूटराइज्ड ट्रांसलेशन, जिसे गूगल ट्रांसलेशन भी कहते हैं। इसमें दिक्कत यह है कि इस अनुवाद में कई बार वाक्यों और शब्दों का सही अर्थ नहीं हो पाता। इसका कारण यह है कि अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग होती है।

अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता

हिंदी की वाक्य रचना में कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम होता है (राम घर जाता है), जबकि अंग्रेजी में कर्ता, क्रिया और कर्म (राम गोज होम)। यह उदाहरण अत्यंत सरल और छोटे वाक्य का है, इसलिए इसे समझना कठिन नहीं, लेकिन जटिल और बड़े अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता, जिसका खामियाजा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों को भुगतान पड़ता है।

शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका

मशीनी ट्रांसलेशन की दूसरी समस्या है कि शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका रहती है। इसका कारण यह है कि शब्दों के अर्थ अपनी संस्कृति और संदर्भ से भी निकलते हैं। उदाहरण के लिए कई बार अंग्रेजी के ‘बिग ब्रदर’ का अनुवाद ‘बड़ा भाई’ कर दिया जाता है।

‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त

समझना जरूरी है कि जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘1984’ से चर्चित; हुआ मुहावरा ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त होता है, जहां इसका अर्थ है डराने-धमकाने वाला व्यक्ति या देश, जबकि इसके उलट भारत में बड़ा भाई का प्रयोग अत्यंत सकारात्मक अर्थो में होता है।

मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है

भारतीय संदर्भो में बड़ा भाई संरक्षक और अभिभावक होता है। कहने का आशय यह है कि हिंदी या भारतीय भाषाओं में अनुवाद करते समय संदर्भ को ध्यान में न रखने से मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है। इसी तरह का एक और उदाहरण है अंग्रेजी शब्द ‘हॉट पोटैटो’। इसका अर्थ होता है एक विवादास्पद विषय या असहज करने वाला विषय, लेकिन इसका गूगल ट्रांसलेशन ‘गर्म आलू’ मिलता है, जो कहीं से भी मूल अर्थ को संप्रेषित नहीं करता।

डिलीवरी शब्द का अनुवाद परिदान किया गया

अनुवाद में तकनीक के उपयोग से होने वाली गड़बड़ी का एक अन्य आयाम यह है कि यूपीएससी अथवा विभिन्न एजेंसियों के अनुवादक मानक शब्दकोशों जैसे कि गृह मंत्रलय के राजभाषा विभाग द्वारा जारी ई-महाशब्दकोश की जगह अन्य वेबसाइटों के आधार पर अनुवाद कर देते हैं। जैसे इसी साल सिविल सेवा के प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न में अंग्रेजी के डिलीवरी शब्द का अनुवाद परिदान किया गया है। राजभाषा विभाग द्वारा जारी ई-महाशब्दकोश के अनुसार इसका अर्थ वितरण या सुपुर्दगी है।

परिदान शब्द का अर्थ भी थोड़ा भ्रामक

परिदान शब्द न केवल अप्रचलित है, बल्कि इसका अर्थ भी थोड़ा भ्रामक है। इसी तरह अंग्रेजी के सिनेरियो का अनुवाद दृश्यलेख कर दिया गया है, जो सही नहीं है। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि अगर हिंदी अनुवाद गलत या भ्रामक है, तो परीक्षाíथयों को मूल अंग्रेजी पाठ देख लेना चाहिए, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में समय इतना कम होता है कि बार-बार हिंदी और अंग्रेजी, दोनों पाठों में मिलान करना मुमकिन नहीं।

अनुवाद में अर्थ का अनर्थ भी कर दिया जाता है

दुबरेध, अबोधगम्य और भ्रामक अनुवाद के अतिरिक्त कई बार अनुवाद में अर्थ का अनर्थ भी कर दिया जाता है। जैसे 2020 की ही प्रारंभिक परीक्षा में सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट अर्थात सविनय अवज्ञा आंदोलन को असहयोग आंदोलन अनूदित कर दिया गया, जो नितांत गलत है। इन सबका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि हिंदी माध्यम के परीक्षार्थी पिछड़ते जा रहे हैं। गलत और भ्रामक अनुवाद के कारण न केवल उनके उत्तर गलत हो जाते हैं, बल्कि भ्रामक अनूदित शब्दावलियों में उलझकर परीक्षा के दौरान उनका सीमित बहुमूल्य समय भी बर्बाद होता है।

गलत अनुवाद अवसर की समानता से भी वंचित करता है

जिस कठिन परीक्षा में एक-एक अंक के लिए संघर्ष होता हो, जहां एक-एक क्षण मूल्यवान हो, वहां जटिल, भ्रामक, दुबरेध और गलत अनुवाद हिंदी माध्यम के लोगों को अवसर की समानता से भी वंचित करता है। पिछले कुछ वर्षो से हिंदी माध्यम से सफल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में जो खासी गिरावट आई है, उसका एक बड़ा कारण इस तरह के अनुवाद भी हैं। यूपीएससी को समझना होगा कि अच्छे अनुवाद के लिए जरूरी है कि मशीनी अनुवाद का न्यूनतम सहारा लिया जाए।

अनुवादक को विषय का भी सम्यक ज्ञान हो

साथ ही अनुवाद के इस बुनियादी सिद्धांत को ध्यान में रखा जाए कि अनुवादक को न केवल दोनों भाषाओं अर्थात स्रोत भाषा (जिस भाषा से अनुवाद किया जा रहा है) और लक्ष्य भाषा (जिस भाषा में अनुवाद किया जा रहा है) का ठीक-ठाक ज्ञान हो, बल्कि विषय का भी सम्यक ज्ञान हो। भ्रामक अनुवाद से हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों के साथ अन्याय हो रहा है, जो परीक्षा के उद्देश्य के विपरीत है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, यूपीएससी जैसी प्रोफेशनल संस्था से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

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