मौजूदा वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ 16 फ़ीसद बढ़ेगा उत्सर्जन

मौजूदा वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ 16 फ़ीसद बढ़ेगा उत्सर्जन

लखनऊ (निशांत कुमार)—- संयुक्त राष्ट्र की जलवायु मामलों की संस्था UNFCCC की ताज़ा रिपोर्ट निराश करने वाली है। इस रिपोर्ट की मानें तो जहाँ जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में प्रभावी होने के लिए NDCs या देशों के जलवायु लक्ष्यों को वैश्विक उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती करनी चाहिए, वहीँ नवीनतम उपलब्ध NDCs के साथ बढ़ने में तो वैश्विक GHG (जीएचजी) उत्सर्जन 2010 की तुलना में 2030 में लगभग 16% ज़्यादा होगा।

ज्ञात हो कि फरवरी 2021 में UNFCCC ने एक अंतरिम मूल्यांकन की पेशकश की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि दुनिया की सरकारों द्वारा किए गए नए वादों में, संयुक्त उत्सर्जन में कटौती, 2015 में प्रस्तुत किए गए पिछले दौर की प्रतिज्ञाओं की तुलना में केवल मामूली तौर पर ज़्यादा महत्वाकांक्षी थी।

छह महीने बाद, अब यह ताज़ा रिपोर्ट एक निराशाजनक संदेश देती है। अगर जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में प्रभावी होना है तो NDCs को वैश्विक उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती करनी चाहिए। वैसे भी वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5C या 2C तक सीमित करने का एक उचित मौका देने के लिए, IPCC (आईपीसीसी) ने 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में क्रमशः 45% और 25% की कटौती की पहचान की है।

लेकिन नवीनतम उपलब्ध NDCs इशारा देते हैं कि वैश्विक GHG (जीएचजी) उत्सर्जन वास्तव में 2010 की तुलना में 2030 में लगभग 16% ज़्यादा होगा। नए या अद्यतन NDCs (86 NDCs + EU27 (ईयू 27)) वाले 113 दलों के समूह के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2010 की तुलना में 2030 में 12% की गिरावट होने का अनुमान है। फिर भी, दुनिया सबसे ख़राब जलवायु परिणामों से बचने के लिए आवश्यक महत्वाकांक्षा के स्तर से काफ़ी पीछे छूट रही है।

यह रिपोर्ट IPCC द्वारा, पिछले महीने अपनी सबसे हालिया रिपोर्ट के जारी होने पर, मानवता के लिए “कोड रेड” जारी करने के बाद आई है और नेताओं के लिए आँख खोलने वाली होनी चाहिए।

यूरोपीयन क्लाइमेट जलवायु फाउंडेशन के सीईओ, लॉरेंस टुबियाना, कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन के क्रूर प्रभाव दुनिया के हर कोने में पड़ रहे हैं, जिसे नेताओं को अगले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह रिपोर्ट पेरिस समझौते के तहत अपने कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहने के कारण ग्रह पर आत्म-क्षति (खुद को नुकसान) पहुंचाने वाले बड़े उत्सर्जकों को रेखांकित करती है। हमें अब ज़रुरत है कि सभी G20 (जी2) देश 1.5C के अनुरूप COP26 द्वारा कठिन योजनाओं को पूरा करें।”

बात G20 देशों की

वैश्विक GHG के 75% के लिए हिस्सेदार, G20 राष्ट्र प्रमुख हैं। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर द्वारा इस सप्ताह प्रकाशित नए विश्लेषण के अनुसार, आज तक, अर्जेंटीना, कनाडा, यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने 2030 उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को मज़बूत किया है – लेकिन केवल यूके को ही 1.5C का पालन करनेवाले के क़रीब का दर्जा दिया गया है।

चीन, भारत, सऊदी अरब और तुर्की (जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों के 33 प्रतिशत के लिए सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार हैं) ने अभी तक अद्यतन NDCs जमा नहीं करे हैं। क्लाइमेट एनालिटिक्स और WRI (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी किए गए एक आकलन के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया ने GHG उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों के साथ अद्यतन NDCs जमा किए हैं, जो 2015 में उनके द्वारा पेश किए NDCs के एकसमान हैं।

ब्राजील और मैक्सिको ने ऐसी योजनाएं प्रस्तुत कीं जो उनके पिछले लक्ष्यों की तुलना में अधिक उत्सर्जन की अनुमति देंगी। रूस एक कदम आगे बढ़ गया, एक ऐसा लक्ष्य प्रस्तुत करते हुए जो वास्तव में उसके वर्तमान “बिज़नेस-एैज़-युसुअल” (“व्यापार-हमेशा की तरह”) प्रक्षेपवक्र की तुलना में उच्च उत्सर्जन की अनुमति देगा। जापान और दक्षिण कोरिया द्वारा COP26 से पहले नए, और सख़्त लक्ष्य प्रस्तुत करने की उम्मीद है।

हेलेन माउंटफोर्ड, वाइस-प्रेज़िडेंट, जलवायु और अर्थशास्त्र, WRI, कहते हैं, “G20 देशों की कार्रवाई या निष्क्रियता काफ़ी हद तक यह निर्धारित करेगी कि हम जलवायु परिवर्तन के सबसे ख़तरनाक और महंगे प्रभावों से बच सकते हैं या नहीं। यही वजह है कि यह इतनी ज़ोरदार और चौंकाने वाली बात है कि ब्राजील और मैक्सिको ने जो उत्सर्जन लक्ष्य पांच साल पहले प्रस्तुत किये थे, उनकी तुलना में और कमज़ोर उत्सर्जन लक्ष्यों को आगे रखा है, जबकि चीन – दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक – ने अभी तक 2060 तक उत्सर्जन शून्य करने की अपनी प्रतिज्ञा के साथ मेल खाने वाले 2030 के उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता नहीं दी है। वार्मिंग को 1.5C तक सीमित करने के लिए, सभी G20 देशों को अपना वज़न ढोना होगा और COP26 से पहले महत्वाकांक्षी जलवायु योजनाओं को प्रदान करना पड़ेगा। और विकसित देशों की ज़िम्मेदारी है कि वे विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिए धन मुहैया करें।”

भारत की स्थिति

अभी तक कोई नेट ज़ीरो प्रतिबद्धता नहीं रखने वाले एकमात्र शीर्ष उत्सर्जक में से एक के रूप में, भारत अपनी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने के लिए काफी वैश्विक दबाव में रहा है। भारत सरकार अब तक अपने NDCs को पूरा करने के लिए ट्रैक पर है, 2015 के बाद से इसकी रिन्यूएबल हिस्सेदारी लगभग 226% बढ़ गई है और ऊर्जा मंत्री आर.के.सिंह की हालिया घोषणा, कि भारत ने 100 गीगावॉट स्थापित RE (आरई) क्षमता हासिल कर ली है, सही दिशा में एक कदम है। हालांकि, स्वच्छ ऊर्जा क्रांति 2025 तक 37 गीगावाट प्रस्तावित नई ताप विद्युत क्षमता के साथ हो रही है। COP अध्यक्ष, आलोक शर्मा की हालिया यात्रा और अमेरिकी जलवायु दूत जॉन केरी की भारत यात्रा से यह स्पष्ट होता है कि जबकि भारत ने तेज़ी से संक्रमण के लिए धन और पूंजी बाजार तक पहुंच बढ़ाने का आह्वान किया है, भारत से उन्नत जलवायु कार्यों की पेशकश की उम्मीद है।

Related post

पुस्तक समीक्षा : जवानी जिन में गुजरी है,  वो गलियां याद आती हैं

पुस्तक समीक्षा : जवानी जिन में गुजरी है,  वो गलियां याद आती हैं

उमेश कुमार सिंह :  गुरुगोरखनाथ जैसे महायोगी और महाकवि के नगर गोरखपुर के किस्से बहुत हैं।…
जलवायु परिवर्तन: IPBES का ‘नेक्सस असेसमेंट’: भारत के लिए एक सबक

जलवायु परिवर्तन: IPBES का ‘नेक्सस असेसमेंट’: भारत के लिए एक सबक

लखनउ (निशांत सक्सेना) : वर्तमान में दुनिया जिन संकटों का सामना कर रही है—जैसे जैव विविधता का…
मायोट में तीन-चौथाई से अधिक लोग फ्रांसीसी गरीबी रेखा से नीचे

मायोट में तीन-चौथाई से अधिक लोग फ्रांसीसी गरीबी रेखा से नीचे

पेरिस/मोरोनी, (रायटर) – एक वरिष्ठ स्थानीय फ्रांसीसी अधिकारी ने  कहा फ्रांसीसी हिंद महासागर के द्वीपसमूह मायोट…

Leave a Reply