- December 3, 2014
मानसिक अस्पताल : विकलांग औरतें और लड़कियां बदतरीन हालात में रहने के लिए मजबूर- ह्यूमन राइट्स वॉच
“भारत में विकलांग औरतों और लड़कियों को जबरन मानसिक अस्पतालों में भेजा जाता है जहां उन्हें बदतरीन हालात में रहने के लिए मजबूर किया जाता है.”
ह्यूमन राइट्स वॉच ने बुधवार को ये बात कही और हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है और जैसा कि एक महिला ने कहा, “उनके साथ जानवरों से भी बदतर सुलूक किया जाता है.”
बुधवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने सरकार से विकलांग लोगों की मदद के लिए स्वैच्छिक रूप से दी जाने वाली सामुदायिक सेवाओं की दिशा में कदम उठाने की मांग की है.
अलगाव और यंत्रणा
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिसर्चर कीर्ति शर्मा ने कहा, “विकलांग महिलाओं और लड़कियों को उनके परिवार वाले मानसिक अस्पतालों में छोड़ जाते हैं क्योंकि सरकारें उन्हें जरूरी मदद और सुविधाएं देने में नाकाम रही हैं.”
कीर्ति कहती हैं, “और जब वे एक बार बंद कर दी जाती हैं तो उनकी ज़िंदगी में अलगाव, यंत्रणा, शोषण और रिहा न हो पाने की नाउम्मीद ही रह जाती है.”
“ट्रीटेड वर्स दैन एनीमल्सः एब्यूजेस अगेस्न्ट वूमेन एंड गर्ल्स विद साइकोलॉजिकल ऑर डिसबेलिटिज इन इंस्टीट्यूशन इन इंडिया” नाम से 106 पन्ने में आई रिपोर्ट भारत के छह शहरों में विकलांग महिलाओं और लड़कियों की सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी स्थिति पर रोशनी डालती है.
यौन हिंसा
रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता के एक मानसिक अस्पताल में एक महिला के साथ हॉस्पीटल के ही एक स्टाफ़ मेंबर ने यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया.
रिपोर्ट में उन कारणों का भी जिक्र है कि आखिर मानसिक रूप से विकलांग महिलाओं और लड़कियों को शोषण और यौन हिंसा के ख़िलाफ़ न्याय क्यों नहीं मिल पाता है और वे इसकी शिकायत क्यों नहीं दर्ज कर पाती हैं.
दिसंबर 2012 से नवंबर 2014 के बीच कराए गए इस सर्वे में नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे, बेंगालुरु और मैसूर को शामिल किया गया.
रिसर्च के लिए मानसिक रूप से बीमार महिलाओं और लड़कियों, उनके परिवार वालों, उनकी देखभाल करने वालों, स्वास्थ्य कर्मियों, सरकार, पुलिस से जुड़े लोगों के 200 से भी ज्यादा साक्षात्कार लिए गए.
बौद्धिक क्षमता
हालांकि सरकारी आंकड़ों में मानसिक विकलांग लोगों की संख्या पर कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं उभरती. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 2.21 फीसदी आबादी विकलांगों की है.
इसमें 15 लाख लोग बौद्धिक अक्षमता के पीड़ित बताए गए हैं. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों से कहीं कम है.
इन संगठनों के मुताबिक दुनिया की 15 फीसदी आबादी किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से पीड़ित है.
लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के दावे जनसंख्या अनुमानों से उलट हैं. उनके मुताबिक भारत में छह से सात फीसदी आबादी मानसिक विकलांगता का शिकार है और एक से दो फीसदी ऐसे लोग हैं जो ‘गंभीर किस्म की मानसिक विकलांगता’ का शिकार हैं.
(बीबीसी हिन्दी)