• December 10, 2015

मानवाधिकार अधिकार हावी – मानव ?? – डॉ. दीपक आचार्य

मानवाधिकार  अधिकार हावी – मानव ??  – डॉ. दीपक आचार्य

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 आज विश्व मानवाधिकार दिवस है। मानवाधिकारों की चर्चा हर तरफ है। दुनिया का हर कोना आज मानवाधिकारों की गूंज से भर उठने वाला है।

हम हर साल यही करते हैं। यह हमारी वार्षिक दिनचर्या में शामिल हो गया है। इसी श्रृंखला में आज मानवाधिकार दिवस भी आ ही पड़ा है।

मानवाधिकारों के मामले में साफ-साफ कहा जा सकता है कि यह मानव के अधिकारों से सीधा सम्बद्ध शब्द है और जहाँ-जहाँ मानव है वहाँ-वहाँ उसके अधिकारों की रक्षा जरूरी है। पर अब इस मामले में कुछ नई बात कही जा सकती है।

अब मानव अधिकार की बजाय अधिकार-मानव का जमाना आ गया है। जिसके पास जितने ज्यादा अधिकार हैं वही मानवश्रेष्ठ कहा जाने लगा है। अब मानव शब्द में मौलिकता, संस्कार और मानवीय श्रेष्ठता जैसे मूल्यों का क्षरण होता जा रहा है और इसकी बजाय अधिकार सम्पन्न मानव बनने की हौड़ सर्वत्र देखी जा रही है।

और ऎसा करने के लिए आजकल मानव किन्हीं भी प्रकार की मर्यादाओं में बँधा हुआ नहीं है बल्कि वह अधिकारों को ही जीवन का सर्वस्व ध्येय समझ गया है। जब से यह स्थिति आयी है तभी से प्रभुत्ववाद, साम्राज्यवाद और दूसरों पर अधिकार करने या औरों पर रौब जमाने का अधिकारी बनने का चलन जोरों पर है।

आजकल बड़ा आदमी वह नहीं है जो उसूलों पर चलता है, नेक-नीयत से काम करता है और समुदाय के लिए कुछ दे पाने की स्थिति में है। आजकल वही आदमी अपने आपको बड़ा समझता है जो औरों को अपने अधीन रख सके, मनचाहे काम करवा सके और राजा-महाराजाओं की तरह हुक्म चलाता रहे।

आजकल की दुनिया में बहुत सारे लोग इसी बीमारी से ग्रस्त होते जा रहे हैं। कइयों की यह बीमारी असाध्य हो गई है, इनके लिए कोई हकीम या वैद्य कुछ नहीं कर सकता। इनका निर्णायक ईलाज यमराज के सिवा कोई नहीं कर सकता।

बहुत से इस बीमारी की आरंभिक अवस्था में हैं, खूब सारे इस किस्म के भी हैं कि जिनके पाँव कब्र में लटके हुए हैं, श्मशान के प्रबन्धक बाट जोह रहे हैं और खुद खटिया के हवाले रहकर भी अपने अधिकारों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।

विश्व भर में यही स्थिति तकरीबन सभी स्थानों पर है। मानवाधिकार शब्द में से अधिकार ज्यादा हावी हो गया है मानव कमतर होता जा रहा है। यही वजह है कि जाने कितने बरसों से मानवाधिकारों की चर्चाओं, हर साल दिवस मनाने और ढेरों कार्यक्रमों के आयोजनों के बावजूद पूरी दुनिया को आज भी मानवाधिकारों की दरकार है और मानवाधिकारों के हनन की बातें रह-रहकर आती रहती हैं।

मानवाधिकार के प्रति समझ दिल और दिमाग में विकसित करनी जरूरी है। और यह तभी हो सकता है कि मानव-मानव के भीतर एक-दूसरे को समझने की मनोवृत्ति विकसित हो, संवेदनशीलता हो तथा मानवीय मूल्यों, संस्कारों एवं समुदाय के लिए जीने की भावना हो।

केवल मानवाधिकाराें की चर्चा से कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। मानवाधिकारों की रक्षा हम सभी का फर्ज है और इसके लिए यह जरूरी है कि हम सभी अपने आप को मानव समझें, मानव बनने का प्रयत्न करें और मानव के लिए काम आएं। विश्व मानवाधिकार हम सभी को यही कहता है। आईये अपने आपको मानव बनाएं, मानवाधिकारों को दिल से अपनाएँ।

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