महिला साक्षरता में सुधार व शैक्षिक चुनौतियां

महिला साक्षरता में सुधार व शैक्षिक चुनौतियां
जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में केवल 73 प्रतिशत साक्षरता ही प्राप्‍त की जा सकी है, परन्‍तु महिला साक्षरता में उल्‍लेखनीय प्रगति हुई है। 80.9 प्रतिशत की पुरूष साक्षरता की तुलना में 64.6 प्रतिशत पर महिला साक्षरता अभी भी कमतर बनी हुई है, पर पुरूष साक्षरता की 5.6 प्रतिशत की वृद्धि दर की तुलना में महिला साक्षरता में 10.9 प्रतिशत वृद्धि हुई।

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आर्थिक समीक्षा 2014-15 में कहा गया है कि बालिकाओं की रक्षा व शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नयी योजना ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का उद्देश्‍य समाज की मानसिकता बदलना व जागरूकता फैलाना है, जो एक जन अभियान के रूप में चलाया जा रहा है। इससे बालिका शिक्षा व अन्य संबंधित समस्‍याओं का समाधान संभव होगा।

भारत में गुणवत्‍तापरक तथा प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच बनाये रखने के लिए बच्‍चों की नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 केन्‍द्र सरकार द्वारा अप्रैल 2010 में अधिनि‍यमित किया गया था। आरटीई अधिनियम के क्रियान्‍वयन के लिए नामोद्धिष्‍ट स्‍कीम सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) है।

आर्थिक समीक्षा में इंगित किया गया है कि भारत में शिक्षा प्रणाली के समग्र मानक ग्‍लोबल मानकों से काफी नीचे ही बने हुये हैं। पीसा (अंतर्राष्‍ट्रीय छात्र आकलन कार्यक्रम-2009) ने तमिलनाडु व हिमाचल प्रदेश को 74 भागीदारों में 72वें व 73वें स्‍थान पर रखा है, जो सिर्फ किग्रीजस्‍तान से ऊपर है। यह हमारी शिक्षा में व्‍याप्‍त अंतर को दर्शाता है। पीसा के तहत 15 वर्ष के आयु वर्ग के ज्ञान व कौशल को उनकी समस्‍या सुलझाने के लिए तैयार किये गये प्रश्‍नों के आधार पर मापा जाता है। स्‍कूलों से निकलने वाले युवाओं की कार्यदक्षता में सुधार लाने के लिए माध्‍यमिक शिक्षा के बाद और प्रशिक्षण प्रणालियों एवं कार्यस्‍थलों पर भी दखल कार्रवाई करने की पर्याप्‍त गुंजाइश है। बदलती हुई जनसांख्यिकीय स्थितियों और बच्‍चों की घटती आबादी के चलते, पिरामिड की बुनियाद पर मानव पूंजी की अपर्याप्‍तता के कारण मूलभूत कौशलों की राह में मौजूद बड़ा अंतर भारत के विकास में बड़ी अड़चन बन सकता है। पढ़ने-सिखने और गणितीय दक्षता का एक माहौल बनाने के लिए ‘पढ़े भारत-बढ़े भारत’ नामक पहल एक उत्‍तम कदम है। तथापि, इस प्रयास की सफलता के लिए यह आवश्‍यक होगा कि इस संबंध में स्‍थानीय प्रशासन को इस प्रक्रिया में ज्‍यादा शामिल किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए।

भारत में 15-18 वर्ष के आयु वर्ग के युवाओं की संख्‍या 100 मिलियन है। चूंकि अधिकतर व्‍यावसायिक कौशल कार्यक्रमों में दाखिले के लिए शैक्षिक और आयु संबंधी अर्हताएं होती है और 18 वर्ष की आयु से पहले इनमें प्रवेश नहीं किया जा सकता, अत: इस आबादी के अधिकांश के असंगठित क्षेत्र में जाने की संभावना हो जाती है। अवसरों के बीच व्‍याप्‍त अंतरों का सम्‍यक-समाधान करने और असंगठित क्षेत्र में उत्‍पादकता क्षमता में सुधार लाने के लिए ज्ञान अथवा कौशल की किस्‍मों पर शोध किये जाने की जरूरत है।

इसके साथ ही, प्राथमिक स्‍कूलों में दाखिला-वृद्धि के समनुरूप, सैकेंडरी स्‍कूलों की क्षमता के निर्माण करने के लिए मध्‍याहृन भोजन (एमडीएम) योजना, राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए), मॉडल स्‍कूल स्‍कीम (एमएसएस) और साक्षर-भारत (एसबी) प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रम भी क्रियान्वित किये गये हैं। एसबी महिला साक्षरता पर केन्द्रित स्‍कीम है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में प्रशिक्षित अध्‍यापकों का अभाव समस्‍या को घनीभूत करता है।

भावी अध्‍यापकों को समय रहते कैरियर का विकल्‍प मुहैया कराने के लिए शिक्षक अध्‍यापकों के संवर्ग को सुदृढ़ बनाने और शिक्षक-शिक्षण संस्‍थाओं में अध्‍यापकों के सभी रिक्‍त पदों को भरे जाने के लिए चार वर्षीय एक नया समेकित कार्यक्रम, नामत: बी.ए/बी.एड और बी.एससी/बी.एड शुरू किया गया है।

भारतीय उच्‍चतर शिक्षा प्रणाली विश्‍व में सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक है। वर्ष 2013-14 में विश्‍वविद्यालयों, महाविद्यालयों व डिप्‍लोमा स्‍तर के संस्‍थाओं की संख्‍या बढ़कर क्रमश: 713, 36,739 और 11,343 हो गयी है। आज मांग को आपूर्ति के साथ सुमेलित किये जाने और रोजगार के अवसरों के अनुरूप शिक्षा नीति में सम्‍यक परिवर्तन लाए जाने की जरूरत है।

आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि उच्‍चतर शिक्षा को भविष्‍यदृष्‍टा होना होगा और ऐसे क्षेत्रों की परिकल्‍पना करनी होगी, जो भविष्‍य में ज्‍यादा रोजगार जुटा सकें।

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