- May 16, 2021
महामारी बनाम दुकानदारी,बहुत खतरनाक ! ——सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक )
देश आज जिस कगार पर खड़ा हुआ है उससे प्रत्येक नागरिक पूरी तरह से डरा एवं सहमा हुआ है। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि कोई ठोस व्यवस्था का न होना। देश में महामारी ने जिस तरह का कोहराम मचा रखा है उससे प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह से घबराया हुआ है। इसके पीछे का कारण यह है कि किसी ने अपने परिवार के सदस्य को खोया है तो किसी ने अपने रिश्तेदार को। किसी ने अपने परिचित को खोया है तो किसी ने अपने सहकर्मी को। इसलिए देश का प्रत्येक नागरिक पूरी तरह से घबराया हुआ है। क्योंकि अपनी खुली हुई आँखों के सामने अपने परिवार के सदस्य को तड़प-तड़पकर मरते हुए इन्हीं आँखों से देखा गया है। जोकि बहुत ही दुखद है। जिसे शब्दों के माध्यम से कागज पर उकेर पाना असंभव है।
सारी कोशिशों के बाद भी जान बचा पाने में अस्मर्थ परिवार अब पूरी तरह से डरा एवं सहमा हुआ है। क्योंकि तमाम प्रयासों के बाद भी वह अपने परिवार के सदस्य को नहीं बचा पाया। छोटे-छोटे मासूम बच्चे पूरी तरह से डरे एवं सहमें हुए हैं क्योंकि उन्होंने अपने पिता अथवा माता को इस महामारी में खो दिया। बिखरे एवं टूट चुके हुए परिवार के सामने कोई सहारा नहीं है। अब आँखों के नीचे अंधेरा छाया हुआ है। वृद्ध पिता अपने जवान पुत्र को खो चुका है। अब अनाथ पौत्रों की चिंता बूढ़े दादा के कंधों पर आ टिकी है। जोकि बहुत ही अधिक संकट का समय है। इससे उबर पाना बहुत ही कठिन कार्य है। क्योंकि बूढ़ा पिता अपने जवान पुत्र को खोने के बाद अपने आपको ऐसे कगार पर खड़ा पा रहा है जिससे उबर पाना किसी युद्ध को जीतने जैसा है। क्योंकि एक ओर मुँह फैलाए हुए महामारी खड़ी है तो दूसरी ओर अनाथ पौत्रों की चिंता। ऐसी जटिल समस्या है जिससे उबर पाने के लिए कोई ठोस विकल्प नहीं है। इस समय जान बचा पाना बहुत बड़ा चैलेंज है जिससे निपट पाने के लिए कोई किरण कहीं दूर-दूर दिखाई नहीं दे रही।
देश का जर्जर चिकित्सीय ढ़ाँचा जिस प्रकार से हाँप रहा है वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। इस हाँफते हुए ढ़ाँचे ने जिस प्रकार से देश की जनता का भरोसा छीना है उससे प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह से आहत है। प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति की आत्मा इस प्रकार की जर्जर व्यवस्था को कोस रही है। इसी कारण है कि देश की जनता पूरी तरह से डरी एवं सहमी हुई है। इस जर्जर हुए ढ़ाँचे पर कोई विश्वास करे तो कैसे करे जहाँ आम जनमानस कि चिंता करने वाला कोई है ही नहीं। ऑक्सीज़न एवं दवाई तो दूर की बात है अस्पताल में बेड प्राप्त कर पाना किसी बड़े युद्ध को जीतने जैसा है। जो व्यक्ति इस समय अस्पताल में बेड प्राप्त कर लेता है वह अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली समझता है। क्योंकि एक बेड के लिए वह कहाँ-कहाँ अथवा किस-किसके की चौखट पर गिड़गिड़ाने नहीं गया।
सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि इस महामारी में कुछ लोगों ने दुकानदारी का अवसर खोज निकाला है। सभी प्रकार की छोटी से छोटी मेडिकल संबन्धी आपूर्ति अब मुँह माँगे दामों में बेची जा रही है। जोकि बहुत ही खतरनाक है। महामारी को जिस प्रकार से दुकानदारी का रूप दिया जा रहा है उससे और भय व्याप्त है। क्योंकि जिस प्रकार से सरकारी अस्पतालों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं उससे आम आदमी की सांसे थमने लगी हैं। क्योंकि प्राईवेट अस्पातालों जिस प्रकार से एक-एक बेड की मुँह माँगी कीमत वसूल कर रहे हैं। वह बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा है। आम आदमी के सामने अब क्या विकल्प रह गया है। कुछ नहीं। मध्यम एवं न्यूनतम व्यक्ति के पास न तो पैसा है और न ही उसके पास किसी प्रकार का सत्ता का विटो पावर। इसलिए साधारण व्यक्ति अपनी खुली हुई आँखों से साक्षात यमराज को देख रहा है। क्योंकि जिस प्रकार से देश का चिकित्सीय ढ़ाँचा अपनी तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है वह बहुत ही भयावह है।
शमशान घाट एवं कब्रिस्तानों की स्थिति किसी से भी छिपी हुई नहीं है। अस्पतालों की बदहाल तस्वीर से देश का प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह से घबराया हुआ है। दवाईयों एवं मेडिकल से संबन्धित सभी प्रकार की आवश्यक्ताओं का जिस प्रकार से बाजार बनाया जा रहा है वह बहुत ही घातक है। बेचारा पीड़ित व्यक्ति करे तो क्या करे। एक ओर प्राण बचाने के लिए मेडिकल से संबन्धित सभी प्रकार की आवश्यकताएं तो दूसरी ओर खाली जेब। अब ऐसी दो धारी तलवार पर व्यक्ति फंसा हुआ है जिसके पास कोई रास्ता ही नहीं है बचता। अब करे तो क्या करे। क्योंकि अपनी आँखोँ के सामने अपने परिवार के सदस्य को मरता हुआ नहीं देखा जा सकता। तो दूसरी ओर उपचार के लिए इतना भारी भरकम खर्च का बोझ सहन करने की क्षमता ही नहीं है। क्योंकि अगर प्राण बचाने हैं तो खर्च करने की बाध्यता है। अब खर्च करने की बाध्यता का पूरक होना सामर्थ पर निर्भर करता है। तो सामर्थ है ही नहीं। अब कोई रास्ता नहीं बचा इसलिए पूरे देश के अंदर बहुत भय का माहौल व्याप्त है।
अतः इस दुकानदारी की मानसिकता पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है। क्योंकि भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का अधिकार प्रदान करता है वह अपना उचित उपचार करवाने का भागीदार है। संविधान का मौलिक अधिकार शिक्षा तथा उपचार की स्पष्ट रूप से व्याख्या करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उचित इलाज का प्रबंध होना चाहिए। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इस दुकानदारी पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है तो इसके लिए किसी वैज्ञानिक विधि की आवश्यकता नहीं है। इस दुकानदारी को समाप्त करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। भाषणों एवं प्रचारों से बाहर निकलकर धरातल पर कार्य करने की आवश्यकता है। जितना पैसा प्रचार एवं प्रसार पर खर्च हो रहा उसी पैसे को चिकित्सीय व्यवस्था के बुनियादी ढ़ाँचे में खर्च करने की जरूरत है। अस्पतालों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। चिकितिसालयों में उचित उपचार का प्रबंध होना चाहिए। ऑक्सीजन से लेकर सभी प्रकार की व्यवस्था अस्पतालों के अंदर स्वयं की मौजूद होनी चाहिए। प्रत्येक अस्पताल इस प्रकार से डेवलेप होना चाहिए कि वह किसी भी प्रकार की परिस्थिति का सामना कर सके। प्रत्येक जनपद के अंदर आबादी के अनुपात के अनुसार अस्पाताल में बेड से लेकर सभी प्रकार की व्यवस्थाओं का उचित प्रबंध होना चाहिए। यदि सरकार इस प्रकार का ढ़ाँचा खड़ा कर देती है तो निश्चित यह दुकानदारी पूरी तरह से चरमा जाएगी। क्योंकि जब साधारण व्यक्ति को उचित उपचार सरकारी अस्पतालों में सरलता पूर्वक प्राप्त हो जाएगा तो प्राईवेट अस्पतालों के चक्कर कोई नहीं लगाएगा जिससे देश की जनता के अंदर एक बड़ा मैसेज जाएगा और जो यह भय व्याप्त है वह पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा।
इसलिए सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है कि देश के चिकित्सीय ढ़ाँचे को तुरंत मजबूत किया जाए। देश के अंदर अनेकों प्रकार के और कार्यों को कुछ समय के लिए रोका भी जा सकता है लेकिन चिकित्सा से संबन्धित कार्य को तुरंत युद्ध स्तर पर खड़ा करने की जरूरत है।