- December 5, 2019
भारतीय संस्कृति के अतित पर भारी पड़ रहा है वर्तमान का बलात्कार ! — मुरली मनोहर श्रीवास्तव
बलात्कार, जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सुनकर हैवानियत मानों किसी अबला के दर्द का ऐहसास कराने लगता है। बलात्कार एक मानसिकता है, वर्ना जिस अज्ञान बालिका को इसका “ब” भी नहीं मालूम हैवान उसको भी अपना कोपभाजन बनाने से बाज नहीं आते। लानत है तेरी मर्दानगी पर, अगर इसे तू मर्दानगी समझता है तो तुझे जन्म देने वाली मां को भी ऐसी घिनौनी हरकत पर जरुर तरस आती होगी।
पर, तू कब समझेगा, आखिर कब संभलेगा….
और एक बार फिर से निर्भया के बाद हैदराबाद की वेटनरी डॉ. प्रियंका रेड्डी को भी दरिंदों ने रौंद डाला। उसका बस इतना ही गुनाह था कि वो एक सुंदर लड़की थी। रोज अपनी गाड़ी टॉल टैक्स काउंटर के पास खड़ा करके कैब से जाती थी। बहुत पहले से बूरी नजर बनाए दरिंदों ने एक दिन घटना को अंजाम दे ही दिया, पहले रेप उसके बाद जिंदा जलाकर मार डाला।
तुम्हारी हवस तो पूरी हो गई, मगर उस मासूम पर पल भर के लिए भी तरस नहीं आयी। कितने लाड प्यार से उसके मां-बाप ने पाला होगा, भविष्य की आंखों में कितने सपने सजे होंगे। उन सपनों को इन दरिंदों ने इतने टूकड़े किए अब प्रियंका के घर वालों को उसकी यादें समेटते-समेटते पूरी जिंदगी गुजर जाएगी।
जिस नारी के गर्भ से पैदा हुए उसी गर्भ पर कालिख पोतकर अपने मर्दाना होने का हक जता दिया। लानत है तुझ जैसे मर्दों पर जो एक अबला को बार-बार ऐसी घटनाओं से मर्माहत करते हैं। कम से कम एक नारी के उस नारीत्व को करीब से अपनी मां, बहन और अपने रिश्तों में देखा था, तुझे तनिक भी तरस नहीं आयी ? प्रियंका तुम्हारे जाने के बाद निर्भया की तरह ही संसद में आवाज गुंजेगी, सड़कों पर लोग तख्तियां लटकाए मुजरिम को सजा दिलाने की गुहार लगाएंगे।
क्या इससे हमारे समाज में इस गंदी मानसिकता के लोग समाप्त हो जाएंगे। क्या मेरी और आपकी बेटियां सुरक्षित हो जाएंगी। इसकी गारंटी कौन लेगा। लोकतंत्र के रक्षक इसके लिए कानून तो सख्त बनाते हैं मगर दर्द इस बात का है कि इस गंदी मानसिकता को कहीं न कहीं झोपड़पट्टी से लेकर ऊंचे महलों तक में अंजाम दिया जाता है। मगर कुछ बातें जो खुलकर सामने आ जाती हैं तो बय़ान बहादुरों की लंबी कतार खड़ी हो जाती है।
काश! हर बेटी ऐसी घिनौनी मानसिकता के खिलाफ खड़ा होतीं, हर भाई अपनी बहन और मां की तरह समाज की हर बेटियों का रक्षक होता, उंची उड़ान की फिराक में उड़ान भरने वाली बेटियां ग्लैमर्स से दूर होतीं तो शायद समाज में इस बलात्कार की घटना को कुछ हद तक रोकी जा सकती है। मुझे महिलाओं की आजादी पर आपत्ति नहीं मगर इन दरिंदों की मानसिकता को सबक सीखाने से जरुर है।
विवश निर्भया, समाज के लिए सबकः
दिल्ली की सड़कों पर सरपट दौड़ती बस, अकेली बस में मजबूर और विवश निर्भया, रात के अंधेरे में दरिंदों ने उसकी मासूमियत का बार बार रेप किया, जब उससे भी जी नहीं भरा तो उसके साथ ऐसा घृणित करतूत किया जिसको याद कर दिल दहल उठता है। आखिरकार जिंदगी जंग लड़ते-लड़ते वो जिंदगी की जंग हार गई। 18 दिसंबर 2012 को यह मामला संसद में गुंजने लगा था।
आक्रोशित सांसदों ने आरोपियों के मृत्युदंड तक की मांग की, तत्कालीन गृह मंत्री सुशील शिंदे ने आश्वासन दिया कि राजधानी की महिलाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाएंगे। लेकिन वो सरकार ये भूल गई कि सिर्फ दिल्ली और हैदराबाद में ही लड़कियां दरिंदों की शिकार होती हैं बल्कि गांव से लेकर शहरों तक कमोबेश कुछ ऐसे ही हालात है।
2012 में कानून बना पाक्सोः
हमारे समाज में मानसिक रुप से विकृत ऐसे भी दरिंदे हैं कि अपनी जिस्मानी प्यास बुझाने के लिए मासूमों तक को भी शिकार बना देते हैं। इन्हीं दरिंदगियों से बचाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2012 में ही बच्चों के यौन हिंसा से निपटने के लिए ‘द प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन अगेन्स्ट सेक्शुअल ऑफेन्सिस एक्ट’ (पॉक्सो) कानून बनाया गया था।
कानून में बलात्कार तक ही सीमित नहीं था बल्कि यौन हिंसा, जैसे ‘ओरल सेक्स’, बच्चों के निजी अंगों के साथ छेड़छाड़, बच्चे से वयस्क के गुप्तांगों की छेड़छाड़ करवाना भी शामिल है। लेकिन इस कानून के बनने के बाद 4 साल तक की मासूमों को नहीं छोड़ते गंदी मानसिकता के लोग, वर्ना उस मासूम को तो लोग किसी फूल से कम नहीं समझते। मगर विकृत प्रवृति के लोग उसके संपर्क में आकर ओछी मानसिकता का परिचय देते हैं।
भारतीय संस्कृति में बलात्कार नया दागः
जिस भारत की सभ्यता, संस्कृति से पूरी दुनिया सीख लेती है आज वहीं भारतीय संस्कृति प्रति 20 मिनट पर एक महिला के बलात्कार से दागदार हो रही है। 80 फीसदी महिलाएं लोक लज्जा, अनपढ़ता, असहाय होने की वजह से थाने तक भी नहीं पहुंच पाती हैं। जिस देश में रामायण, महाभारत, वेद इत्यादि ग्रंथो में युद्ध तो हुए, जीत-हार भी हुई मगर इन ग्रंथों में किसी ने किसी महिला का बलात्कार नहीं किया।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो सिकंदर विजेता हुआ तो पुरु को राज सौंपकर बेबिलोन चला गया। चीन से आए कुषाण ने शाक्यों को पराजित कर भारत पर कब्जा जमाया। हून जब आए तो परसिया को जीतकर भारत भी आए मगर इनलोगों ने कभी ओछी मानसिकता का परिचय देते हुए बलात्कार जैसी घटना को अंजाम नहीं दिया।
हां, ये मेरा मानना है कि तानाशाही के दौर में कुछ घटनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है, मगर आज की तारीख में बलात्कार आम हो गया है, इस घृणित मानसिकता वाले लोगों को कठोर सजा देनी चाहिए ताकि आगे से इस तरह की घटना को अंजाम देने से पहले एक बार इस बीमार मानसिकता लोग जरुर सोचते।