- December 31, 2019
बिहार को पूर्व दिशा की ओर अग्रसर होने के लिए दोषी कौन ??— शैलेश कुमार
*** बिहार को पूर्व दिशा की ओर अग्रसर होने के लिए दोषी कौन ??
**** उत्तरदायीहीन जनप्रतिनिधि—-
मधुबनी में कुल 21 प्रखंड और 1126 गांव है।
बीजेपी ये बताए की उक्त गांवों में कितने पर अच्छी पकड़ है।
सबसे अधिक गांव बेनीपट्टी प्रखंड में है।
जेडीयू के लिए भी यही प्रश्न ?
समस्त बिहार छोड़िए ?
समस्त बिहार में तो 45,103 गांव है। भौगोलिक दृष्टि से विषम है, नदी नालों से काटा हुआ है, बदमाशों और दबंग लोगो का साम्राज्य है।
80% बदमाशों पर राजद का पकड़ है जो सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
चुनाव पूर्व , क्षेत्रो में समीकरण तैयार करने में व्यस्त है।
किस आधार पर जेडीयू और बीजेपी सत्ता के दौर में है ?
जेडीयू और बीजेपी के गलत नीति के कारण बिहार की राजनीति पूर्व दिशा की ओर अग्रसर है!
जनता दल को अभी 69 सीटें हैं और कितना + होगा । बहुत ज्यादा तो 80+ -।
राजद को अपना सीट तो आरक्षित है ही इसके बाद जनता दल जो भी सीटें खोयेगा वह राजद के झोलें में जायेगा, किसी ख़्वाब में न रहे।
क्योंकि बीजेपी जेडीयू के साथ अपना भी दाल मखनी कर लिया है।
बीजेपी 59 हैं और 11+- वह भी मोदी जी के राष्ट्रीय नीति पर , युवाओं के लिए बीजेपी ठन ठन गोपाल।
अगर राजद परिवार से हटकर और बिहार विकास के रचनात्मक मुद्दे के साथ सशक्त व्यक्ति प्रस्तुत करता है तो 110+- तक पहुंच सकता है। लेकिन वर्तमान कि स्थिति मे उसने जो मुख्यमंत्री का चेहरा प्रस्तुत किया है उसके आधार पर 90+- सीटें मिलती नजर आ रही है.
जेडीयू का चरित्र चित्रण
अपराध नियंत्रण—-
अपराध यहां तक नियंत्रण है कि घटना के 72 घंटे के अंदर अपराधी पुलिस के गिरफ्त मे रहता है.हमारे नजरों में अपराध पर 80 % सशक्त अंकुश लग चुका है।
20 % अपराध उच्चस्तरीय संरक्षित है.यह भी भूमिगत है और आस्तीन का सांप बना हुआ है. यही आस्तीन का सांप राजद को लाने के लिये भूमिगत सक्रिय है।
भ्रष्टाचार चरम पर———आफिस में लिपिक नही है. कुर्सी खाली है. नियुक्ति नही की गई है. केवल अधिकारी रहने से क्या फायदा है ?
पंचायत मे नियुक्त पंचायत टीम भ्रष्टाचार के मुख्य कारण है जिस पर अंकुश नही है क्योंकि पंचायत के जनप्रतिनिधि इस टीम का रिंग मास्टर है. यही से जेडीयू विरोधी भावना घर कर गया है. इस भावना की घेरेबंदी में बीजेपी भी साथ है।
उद्योग —धंधा में लालू प्रसाद यादव का काल और एनडीए (बिहार) का काल बराबर है,राजद किसान, ईख, सड्क और उद्योग को बिहार से झाडु मारकर साफ कर दिया और एनडीए उसको बरकरार रखा है.जेडीयू के पतन का कारण यही से शुरु हो रहा है.
मधुबनी जिला खादी ग्रामोद्योग के कपडे समस्त देश में विख्यात था, सिर्फ यह एक ऐसा उद्योग केंद्र था जिसमें महिलायें भी अपने घर के कपडे की उचित व्यवस्था कर रही थी लेकिन आज खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारी के खाने के लाले पर रहा है.
बेरोजगार की श्रृखला— न उद्योग,न बैंक लोन, किसी तरह कि कोई सुविधा नही. हार थक कर युवा बिहार से बाहर चले जाते हैं. बिहार में क्रांति लाने वाले युवा बाहर में रहट की जिंदगी जी रहे हैं.
शिक्षा —- अंकुशहीन शिक्षकों की मनमानी। प्राथमिक विद्यालय को मध्य विद्यालय के अधिन करना,जिसके शिक्षक खुद ही जडवद्ध है.शिक्षा को इस तरह बर्बाद कर दिया गया है कि गली-गली में निजी विद्यालय की चांदी कट रही है.
चिकित्सा पर अंकुश नही—- निजी क्लिनिक और अस्पताल की तांता लग चुका है , सरकारी अस्पताल में जो मरीज जाता है चिकित्सक उसे निजी अस्पताल में या निजी क्लिनिक में जाने के लिये प्रेरित करता है.
यातायात— सुगम, सडक मार्ग से दिल्ली, कलकता आदि जाना आसान.
जीविका— जीविका दीदीयों के प्रयास से ग्रामीण महिलाओं के आर्थिकी में बेहतर सुधार.
मुझे जीविका ही ऐसी संस्था दिख रही है जिसके कर्मी इमानदारी से काम कर रहें हैं क्योंकि बिहार सरकार अपना दिमाग इसमें नही लगाई है, नही तो यह भी गोबरे रह जाता।
उत्तरदायीहीन जनप्रतिनिधि—-
जन प्रतिनिधि(सांसद,विधायक और अन्य) की आय में दिन -दुगुना और रात चौगुना बढोतरी हो रही है।
सांसद,विधायक को ये नही लग रहा है कि वे चुनाव से आते हैं क्योंकि ये लोग 365 दिन में हमें नही लगता है की 100 क्षेत्र में रह कर आम जनता के संपर्क में रहते हैं?
40-40 सांसद होकर अगर अपने अपने क्षेत्र में केंद्र से योजना नही ला सकते हैं तो फिर सांसद किस बात की और सांसद के अकर्मण्यता के कारण बिहार को कोई केंद्रिय प्रोजेक्ट नही मिल रहा है.हमें लगता है की बिहार के सांसद दिल्ली की सडक देख कर ही बिहार को भूल जाते होगें जो बिहार विकास के लिये अभिशाप है।
सांसद और विधायक अपने फंड को भी अगर उद्योग लगाने में खर्च कर दें तो क्या केंद्र को इस पर आपति होगी ?
बिहार का राजनैतिक इतिहास रहा है कि यहां के मतदाता केंद्रीय सत्ता के विरोध में सरकार बनाती आ रही है. फिलहाल जो राजनीतिक दलों की छवि है वह केंद्रीय सरकार के विरुद्ध है, इस परिपेक्ष में महाराष्ट्र और झारखंड को विल्कुल नजरअंदाज नही किया जा सक्ता है.
बिहर में चुनाव मुद्दे पर नही लडी जाती है, यहां की सरकार क्या किया या नही किया यह मायने नही है, मायने है की वह उम्मीद्रवार किस जाति की है?
वोट किस जाति के पास है ? किस किस जाति के मिश्रण से वोट जीत सकते हैं.यह महत्वपूर्ण है.
अगर यहां के मतदाता परिपक्व होते तो 39 वर्ष कांग्रेस , 15 राजद और 15 एनडीए को नही देते वैसे भी सत्ता परिवर्तित होते रहने से समस्या का कुछ न कुछ समाधान होता रहता है जिससे जनता को फायदा होता है और राजनीतिक दलों को भय बना रहता है कि अगर काम नही करेंगे तो हम अगले टर्म में नही रह पायेंगे.
बिहार में एक बार सत्ता पाने के बात सत्ताधारी गब्बर बन जाता है। यही दुर्भाग्यपूर्ण है।