बाल्टी विरोध– अंधेर नगरी चौपट राजा

बाल्टी विरोध– अंधेर नगरी चौपट राजा

लखनऊ——— . लंबे समय से पानी की समस्या झेल रहे गरीब-गुरबों ने पानी की खाली टंकियों के सामने बाल्टियों के साथ लाइन लगा कर विरोध दर्ज किया. इंदिरा नगर के सी ब्लाक में स्थित गाजीपुर में हुए इस अनूठे प्रदर्शन में साजिदा खातून, रिजवाना, रूखसाना, नसीब अली, मोहम्मद हफीज, आरती, नीलू, लक्ष्मी, रामू आदि 50 से अधिक महिलाओं और पुरूषों के अलावा बच्चे भी शामिल थे. इसका आयोजन इंसानी बिरादरी की पहल पर शुरू हुए जीने का अधिकार अभियान की ओर से किया गया.

इंसानी बिरादरी के खिदमतगार और जीने का अधिकार अभियान के संयोजक वीरेन्द्र कुमार गुप्ता ने कहा कि यह प्रदर्शन पानी के संकट से बेहाल गरीब आबादी के प्रति नगर निगम और स्थानीय पार्षद के उपेक्षा और भेदभावपूर्ण रवैये के खिलाफ आयोजित किया गया था. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में इसके अलावा भी बुनियादी सुविधाओं का अकाल है. इस असमानता के खिलाफ जीने के अधिकार की आवाज ऊंची और व्यापक बनायी जायेगी.

उन्होंने बताया कि प्रदर्शन के फ़ौरन बाद नगर निगम के जोन-7 में नए आये अधिशासी अभियंता एससी त्रिवेदी गाजीपुर पहुंचे. उन्होंने इलाके में फैली बदहालियों को देखा, नागरिकों की शिकायतें सुनीं और उसे जल्द दूर किये जाने का आश्वासन देते हुए अपने मातहतों को निर्देश दिए. तुरत-फुरत नगर निगम के उच्चाधिकारियों तक अपनी रिपोर्ट भी पहुंचा दी. वीरेन्द्र गुप्ता ने इस मुस्तैदी को काबिले तारीफ़ बताते हुए कहा कि अब तक के उनके जीवन में यह पहला मौक़ा है जब किसी अफसर ने हमदर्दी जताई. कितना अच्छा हो कि सभी अफसर ऐसे ही हों.

उन्होंने बताया कि गाजीपुर की तीन टंकियां कई दिनों से खाली पड़ी हैं. एक चिटक चुकी है, दूसरी का सबमर्सिबल पंप खराब है और तीसरी के सबमर्सिबल की वायारिंग भी जर्जर है. उसे ठीक कराने या नया लगाने की जिम्मेदारी लोगों पर रहती है. गड़बड़ी होती है तो लोग चंदा जमा कर उसे ठीक भी कराते रहे हैं.

मजार के सामने की टंकी एक महीने से सूखी पड़ी है. इसे चालू करने के लिए चंदा भी जुटाया गया लेकिन इतना नहीं जमा हो सका कि उसका खर्चा पूरा हो सके. इसकी क्षमता कुल पांच सौ लीटर की है और उस पर पानी लेनेवालों का तांता लगा रहता है. टंकी चालू भी हो गयी तो उस पर जरूरत से बहुत ज्यादा लोड बना रहेगा यानी उसके दोबारा बिगड़ने का खतरा भी बना रहेगा.

उन्होंने कहा कि जहां दो जून की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो, वहां चंदे का जुटना आसान भी नहीं होता. कायदे से पानी की टंकियों के रखरखाव का जिम्मा नगर निगम को लेना चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य से गरीब बस्तियों के साथ उसका दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार है. गैर जरूरी मदों में पानी की तरह पैसा बहा दिया जाता है लेकिन गरीब बस्तियों में पानी जैसी मूलभूत जरूरतों की पूर्ति की जिम्मेदारी से मुंह चुराया जाता है.

उन्होंने बताया कि गाजीपुर की दो टंकियां कुल पांच सौ लीटर की हैं और इन्हीं दोनों टंकियों पर पानी लेनेवालों की भीड़ सबसे ज्यादा लगती है. इसके चलते पानी को लेकर कहासुनी होती रहती है जो कभी-कभार मारपीट में भी बदल जाती है. बाकी टंकियां एक हजार लीटर की हैं.

भाजपाई पार्षद दिलीप श्रीवास्तव की छोटी सी कालोनी में ऐसी ही दो टंकियां हैं जहां पानी लेनेवालों की संख्या बहुत-बहुत कम रहती है. गाजीपुर और उसके आसपास बसे लोगों को उनके घर के सामने लगी टंकी से पानी लेने की मनाही है. लगता है जैसे पानी के मामले में वह मैथलीशरण गुप्त वार्ड के नहीं, अपने मोहल्ले के पार्षद हों.

थोड़ा कम या ज्यादा- लखनऊ के सभी गरीब इलाकों का बुरा हाल है. बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं और सरकारी तंत्र को गरीब बस्तियों की कोई चिंता नहीं. जीने का अधिकार अभियान इस निर्मम भेदभाव को मिटाने की दिशा में गरीबों का दबाव समूह बनाने के लिए है ताकि गरीबों के पक्ष में माहौल बने और सरकारी तंत्र को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जा सके.

संपर्क —
वीरेन्द्र कुमार गुप्ता
खिदमतगार- इंसानी बिरादरी
8960087282

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