- April 26, 2020
बाते बदरंग बैतूल की —— रामकिशोर पंवार
मध्यप्रदेश में रसोई और राशन फैलाएगी कोरोना महामारी
पेट की भूख की लाइनो में नहीं हो सकता सोशल डिस्टेंस…!
विश्व स्वास्थ संगठन की गाइड लाइनो में कोरोनो जैसी महामारी से बचाव के उपायो में जिनका सख्ती से पालन करने को कहा गया है उन सभी सख्ती से पालन किए जाने वाले उपायो की अनदेखी आने वाले कल में भयावह समस्या का रूप ले सकती है. घर से बाहर न निकलने के साथ – साथ यदि बाहर जाए तो सोशल डिस्टेंस, एक दुसरे से हाथ न मिलाए…! सरकारी राशन की दुकानो में सबसे अधिक इन सख्ती से पालन किए जाने नियमो को अनदेखा करके महामारी को फैलाने का मौका दिया जा रहा है. सरकारी राशन की दुकानो से मिलने वाले राशन की आड़ में हर कोई झोला लेकर हाथ में राशनकार्ड के साथ आपको सड़को पर मिल जाएगा. उसे रोकने एवं टोकने पर आपको झोला और कार्ड दिखा कर निरूडतर कर देने वाला वह राशनकार्ड धारक मुफ्त के अनाज के चक्कर में स्वंय की जान को जोखिम में डालने जा रहा है. तपती धुप में ठंडी छांव के चक्कर में एक जगह पर एक से अधिक लोगो की बैठक सोशल डिस्टेंस का माखौल उड़ाने का सबसे बड़ा प्रमाण है. पास – पास बैठने से कोरोना जैसी महामारी के वायरस के फैलने से कोई रोक नहीं सकता.
राशन की दुकान और दीन दयाल रसोई
दोनो ही फैला रही है कोरोना महामारी का संक्रमण
देखने में आ रहा है सेवा और परोपकार की आड़ में दीन दयाल की रसोई से कथित गरीबो को घर – घर तक राशन पहुंचाने वाले सौ से अधिक युवको का घर – घर जाकर कर भोजन के पैकेट का देना और उन पैकेटो से संक्रमण नहीं फैलेगा ऐसी कोई ग्यारंटी नही है. घर – घर जाकर एक दुसरे के हाथो तक पहुंचाने वाले हाथो को बार – बार क्या सेनेटराइजर से धोया जाता है. लगभग बैतूल जैसे जिले की बाते करे तो 3 हजार से लेकर साढ़े तीन हजार लोगो तक सौ युवक या कार्यकत्र्ता भोजन के पैकेट पहुंचाते है तो ऐसा माना जा सकता है कि एक व्यक्ति कम से कम 30 लोगो के सपंर्क में आता है.
ऐसे में क्या यह कल्पना की जा सकती है कि क्या 30 बार अपने हाथों को अच्छी तरह से धोता है. चलो एक बार मान भी ले कि वह सौ लोग 30 बार हाथ धोते है तब क्या यह सोचना सार्थक होगा कि वे साढ़े तीन हजार लोग भी भोजन का पैकेट हाथ धोकर या लेने के बाद हाथ धोते है…! ठीक इसी तरह एक राशन की दुकान में का का औसतन 300 कार्डधारक होते है. एक दिन में 30 कार्ड धारको को राशन सामग्री देने वाला तौलिया से लेकर उसकी एन्ट्री दर्ज करने वाले अपने हाथो को हर बार साबुन या सेनेटराइजर से धोता है..!
कार्ड धारक को दी जाने वाली राशन सामग्री को पोर्टल पर दर्ज करने वाला सेल्समेन उन 30 कार्ड धारको के अंगुठे (थम्ब) को मशीन पर लगाने के पूर्व या बाद मे उस व्यक्ति के हाथो को धुलाता है जिसको वह पकड़ कर मशीन से उसका अंगुठा का सत्यापन करता है. ऐसे में राशन की दुकानो से कोरोना जैसी महामारी के फैलने की संभावनाओ से कोई भी इंकार नहीं कर सकता. ग्राम पंचायत से लेकर नगर निगम तक में स्थित मध्यप्रदेश की राशन की दुकानो में एक माह में लगभग 5 से दस दिन तक दुकानो से वितरण होने वाली राशन सामग्री से कोरोना का रोना घर – घर दस्तक दे सकता है.
तथाकथित समाज सेवियो एवं दानदाता रूपी
मददगारो की मदद भी बनेगी जान की दुश्मन…!
सबसे बड़ी विडम्बना है कि कोरोना जैसी महामारी में गरीबो की मदद के नाम पर उनके घरो तक तथाकथित मदद पहुंचाने वाले समाजसेवियों एवं दानदाताओं के चंगू – मंगू अपने साथ पैकेट – पैकेज के संग मोबाइल कैमरा और एक स्टेपनी लेकर चलते है. कई बार चौपहिया वाहनो मे ंदो से अधिक लोग गांव – गांव की गलियों में उद्घोषणा के साथ लोगो की भीड़ को ही एक स्थान पर बुला कर उन्हे सामग्री दे देते है लेकिन कुछ घरो तक पहुंचने के बाद वे न तो पैकेट या पैकेज देने के पूर्व न तो वे स्वंय अपना हाथ धोते है और न उस व्यक्ति को कहते है कि हाथ धोकर लेना है या ले जाने के बाद अपने हाथो को साबुन से धो लेना…! ऐसे में कोरोना जैसी छुआछुत की महामारी से बचाव कैसे संभव है.
दीनदयाल की रसोई से शिवदयाल की समाजसेवा
27 दिनो में ही घाटे में चल गई दीनदयाल रसोई
इस समय शिवराज सिंह की सरकार और महामारी साथ – साथ आई तो अपने संग दीन दयाल की रसोई भी ले आई जिसके माध्यम से घर – घर तक दीनदयाल के बहाने शिवदयाल की दानवीरता – समाजसेवा – की महीमा पहुंच सके. मध्यप्रदेश में सिर्फ अकेले बैतूल जिले की सारण्ी, बैतूल, मुलताई, आमला में शुरू की गई रसोई की बातें करे तो पता चलता है कि 27 मार्च से या उसके बाद शुरू हुई दीन दयाल रसोई में अब तक आए चंदो का कोई सार्वजनिक लेखा – जोखा प्रस्तुत नहीं किया जा सका है जबकि बैतूल नगर के बारे में पूर्व विधायक एवं भाजपा कोषाध्यक्ष हेमंत खण्डेलवाल द्वारा दांवा किया गया था कि एक लाख से अधिक लोगो को भोजन पैकेट दिया जा चुका है.
पूर्व विधायक हेमंत खण्डेलवाल ने एक लाख रूपये, राजेश आहुजा ने पचास हजार तथा अतिक पंवार ने पचार हजार रूपये कुछ मिला कर पहले दिन दो लाख रूपये से शुरू की गई दीन दयाल रसोई को 27 मार्च के बाद से लगातार दान नगद एवं राशन सामग्री के रूप में मिलता चला आ रहा है. मात्र 27 दिनो में रसोई को 13 लाख रूपये का खर्च आया. जिसमें 6 लाख रूपये ही दान दाताओ से जमा हुए. रेडक्रास सोसायटी के पास शुरूआत में जमा की गई 2 लाख 83 हजार रूपये भी रसोई को दिये जा चुके है.
रसोई के संचालन पर ऊंगलिया उठाने पर
पत्रकारो को डराने धमकाने से बाज नहीं आ रहे
कहने को तो बैतूल जिले की नगर पालिकाओ द्वारा दीन दयाल रसोई का संचालन किया जा रहा है लेकिन पालिका की ओर से यह नहीं बताया जा सका है कि पालिका के कितने कर्मचारी और कितने रूपये की प्रतिदिन लागत से उक्त रसोई चलाई जा रही है. लगभग एक माह पूरे होने जा रहे है ऐसे में दीद दयाल रसोई जिसका संचालन कहने को नगर पालिका के हाथो में है लेकिन उसे चला रहे भाजपाई भी उनको मिलने वाले दान का पाई – पाई हिसाब देने के बजाय उन लोगो को चमकाने – धमकाने में लगे हुए है जो दीन दयाल रसोई के गड़बड़ झाले की ओर ऊंगलिया उठाते है. बीते दिनो एक अनुसूचित जाति के पत्रकार को रसोई के संचालक ने बुरी तरह लताड़ा और उसे धमकियां दी कि यदि उसके द्वारा दीनदयाल रसोई को लेकर कुछ छापा या सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली तो परिणाम बुरे होगें.
पर्दे के पीछे के लोगो को मिला संरक्षण
लाएगा आने वाले समय में भयावह संकट
मध्यप्रदेश की राजधानी में दीनदयाल रसोई के बंद करने के पीछे महामारी के फैलने का खतरा प्रमुख कारण बताया गया. इस समय सिर्फ बाते बैतूल की ही करे तो जिला मुख्यालय के केशरबाग स्थित दीनदयाल रसोई में दोपहर दो से तीन बजे तक सौ से दो सौ लोगो को जमघट जमा हो जाता है. ए वो लोग है जो अपने – अपने वाहनो से अपने संग एक साथी को लेकर भोजन के पैकेट बांटने प्रतिदिन जाते है. रसोई में खाना बनाने वाले और बने हुए भोजन का पैकेट बनाने वाले एक साथ काम करते है.
ऐसे में सोशल डिस्टेंस की बाते कहना या उनके पालन करना दिन में तारे देखने के समान है. जिला प्रशासन चाह कर भी दीन दयाल रसोई में जाकर यह देखने का हिम्मत नहीं जुटा पाता है कि वहां पर सोशल डिस्टेंस का सा हाथो को बार – बार धोने के नियमो का पालन हो रहा है या भी नहीं .! प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपाई अपने पुराने दिनो के रंग और ढंग में दिखाई देने लगे है. हर छुटभैया नेता चक्कर रोड़ से लेकर श्यामला हिल्स की धमकियां देने में कसर नहीं छोड़ता. पत्रकार अशोक झरबड़े के प्रकरण में पत्रकार आन्दोलन के लिए आमदा हो गए थे लेकिन कुछ वरिष्ठ पत्रकारो की हिदायतो के चलते आन्दोलन को रोकना पड़ा.
रसोई बंद हो जाने से भूखे नहीं मरेगें…!
खिलाने वाले पाई के पचास आज भी जिंदा है
जब – जब दीनदयाल रसोई के संचालन को लेकर किसी भी प्रकार कोई ऊंगलिया उठती है तब दीन दयाल रसोई के तथाकथित संचालक धमकाने वाले अंदाज में यह कहना नहीं भूलते है कि कि ज्यादा टीका टिप्पणी की गई तो वे रसोई बंद कर देगें ..! लेकिन वे इस सवाल का उत्तर नहीं दे पा रहे है कि प्रदेश में डेढ़ साल तक कांग्रेस की सरकार में बंद पड़ी रसोई के चलते कितने लोग भूख से मर गए ..!! बैतूल जिले में पूर्व भाजपा शासनकाल में चली रसोई में बकायदा लोग अपने परिवार के खुशी या गम के क्षणो को याद करके दान दिया करते थे. रैन बसेरा में चली दीन दयाल रसोई में लोगो को पांच रूपये लेकर बैठाल कर खाना खिलाया जाता था. फ्री में सिर्फ इस बार भोजन के पैकेट दिये जा रहे है जिसका परिणाम यह निकल रहा है कि लोग एक से अधिक पैकेट लेकर बचा हुआ खाना फेक दे रहे है. इसके पूर्व मांग के अनुसार ही थाली में खाना दिया जाता था तथा लोगो को बार – बार हिदायते दी जाती थी कि थाली में अनाज रूपी जूठन न छोड़े. पैकेट के मामले में लोग अकसर एक से अधिक पैकेट ले लेते है और इस समय पडऩे वाली गर्मी में पुड़ी और अन्य पकी हुई सामग्री कुछ घंटो के बाद खराब होने लगती है.ऐसा भी नहीं है कि जिला मुख्यालय पर भाजपा के नेताओ के द्वारा संचालित दीन दयाल रसोई ही लॉक डाऊन के समय लोगो को दो वक्त का नहीं सिर्फ एक वक्त का खाना खिला रही है.
कुछ ऐसे भी लोग है जो छपास की बीमारी
से कोसो दूर रह कर जरूरत मंदो के मददगार बने
एक दर्जन से अधिक सेवाभावी संस्थाए और लोग अपने – अपने घरो से पांच लोगो को खाना का पैकेट लेकर आते है और देकर चले जाते है. आजाद वार्ड में कहना नहीं चाहिए लेकिन कुछ तो ऐसे भी चेहरे है जो मददगार बने है जिनके बारे में पुलिस का रिकार्ड भरा पड़ा हुआ है. किसी ने कहा है कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नहीं लेकिन आजाद वार्ड के मददगार चेहरो को नहीं भूलाया जा सकता है जो प्रतिदिन चार – पांच लोगो को स्वंय अपने पैसे से पका हुआ खाना पहुंचाने का काम कर रहे है. उनके चर्चे समाचार पत्रो एवं न्यूज चैनलो मे ंनहीं छपते क्योकि उन्हे छपास की महामारी नहीं लगी हुई है.
बरहाल प्रदेश से लेकर नगर सरकार तक को सोचना होगा कि मददगारो की मदद कहीं लोगो की जान की दुश्मन न बन जाए. ऐसे मे जरूरी है कि सुरक्षित हाथो से सुरक्षित हाथो तक मदद पहुंचे और उसका ढिढ़ोरा भी न पीटा जाए.