- November 30, 2015
बंद करो ये परंपरा नहीं जमाना कार्ड का – डॉ. दीपक आचार्य
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नए जमाने के अनुरूप अब सूचनाओं के सम्प्रेषण की नई तकनीक विकसित हो चली है, विस्तार पाती जा रही है, हर कोई अब सूचना संचार की अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग कर रहा है, और हम हैं कि कुछ मामलों में नए जमाने के अनुरूप अब तक नहीं ढल पाए हैं। या हमारे भीतर उतना साहस नहीं रहा क्योंकि हम अपनी इच्छा से नहीं चलते, जमाना हमें चला रहा है।
शादी-ब्याह, शुभाशुभ आयोजनों और तमाम प्रकार के कार्यक्रमों में महंगे से महंगे और भव्यता दर्शाने वाले कार्ड छपवाने, डाक का खर्च करने और समय नष्ट करने में तुले हुए हैं। इनसे हम क्या साबित करना चाह रहे हैं, पता नहीं।
कोई यह कह सकता है कि यह आतिथ्य की परंपरा का एक हिस्सा है और ऎसा करना जरूरी है। लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि जब हम दूसरे सारे कामों के लिए संचार की पेपरलेस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, फिर अब शादी-ब्याह और दूसरे आयोजनों के निमंत्रण के लिए आखिर कार्ड्स छपवाने और वितरित करने की पोंगापंथी में क्यों रमे हुए हैं।
केवल दिखावों, ढकोसलों और आडम्बरों में रमे रहकर धन, समय और परिश्रम का अपव्यय करना कहां की बुद्धिमानी है। उस जमाने में संचार की सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए निमंत्रण पत्र छपवाने और पहुंचाने की जरूरत हुआ करती थी।
अब देश, काल और परिस्थितियों से लेकर सब कुछ बदलता जा रहा है। निरन्तर नवीन आविष्कारों और वैज्ञानिक विधाओं ने आम आदमी का जीना आसान कर डाला है। सूचनाओं के संचार का तंत्र इतना अधिक विकसित हो चला है कि चंद क्षणों में दुनिया के किसी भी कोने से संपर्क कर सीधा संवाद कायम किया जा सकता है।
इस स्थिति में निमंत्रण पत्र, काडर््स और स्टेशनरी के नाम पर जो कुछ हो रहा है उसे अपव्यय ही माना जा सकता है क्योंकि इससे भी अच्छा और प्रभावी विकल्प हमारे सामने मौजूद है। यों भी यह परंपरा भारतीय न हो कर विदेशी है। वरना 60-70 साल पहले तक हमारे यहां केवल पीले चावल रखकर निमंत्रण की पुरातन परंपरा ही थी इसलिए जो प्रथाएं अनौचित्यपूर्ण हो चुकी हैं उनका खात्मा करना आज की प्राथमिकता हो गई है।
जब किसी का भी पुराने समय से और अधिक अच्छा, सस्ता और प्रभावी विकल्प उपलब्ध हो तो उसी का इस्तेमाल करना चाहिए। महंगे कार्ड, आकर्षक और भारी भरकम निमंत्रण पत्रों के माध्यम से अपने आपको वैभवशाली स्थापित करने का शगल न हमारे अपने लिए अच्छा है, न भारत जैसे गरीब देश के लिए अच्छा है और न ही समाज के लिए।
सादगी और मितव्ययता के लिए हमारा देश प्रसिद्ध रहा है और यही वे पैमाने हैं जिनके आधार पर सामाजिक समरसता जिन्दा है, भेदभाव दिखता नहीं, और सभी लोग परस्पर आदर-भाव के साथ रहते हैं।
बातें तो हम सादगी की करते हैं और काम ऎसे करते हैं जिनमें अपने आपको वैभवशाली और दूसरों से श्रेष्ठ दर्शाने के लिए जमाने भर की फिजूलखर्ची करते हैं। हम अच्छा दिखाने भर के लिए कर्ज लेकर भी आधुनिकता और समृद्धि के चोंचले करने के आदी होते जा रहे हैं।
यह सब कुछ समाज और देश के लिए कभी अच्छा नहीं कहा जा सकता। हर जगह अब काम करने वालों की संख्या सीमित होती जा रही है, सारा कामकाज मशीनों और कम्प्यूटरों से हो रहा है, ऎसे में महंगे कार्ड और शादी-ब्याहों तथा दूसरे प्रकार के निमंत्रण पत्रों की छपाई और वितरण का पुराना हो चुका ढर्रा अब पूरी तरह त्यागने योग्य है, और त्यागा जाना चाहिए।
इसके लिए सामाजिक और सार्वजनिक स्तर पर भी कठोरता से निर्णय लिया जाना चाहिए। जब सभी मामलों में हम वैज्ञानिक पद्धतियाेंं और आधुनिकताओं को अपनाने में भिड़े हुए हैं, दिन-रात में घण्टों मोबाइल पर लगे रहते हैं, तब इस मामले में पीछे क्यों बने हुए हैं।
भागमभाग भरी जिन्दगी में अब कितना अच्छा हो कि सभी प्रकार के आयोजनों से संबंधित निमंत्रण एसएमएस और व्हाट्सएप आदि माध्यमों से दिए जाएं। इससे समय, पैसा और परिश्रम बचेगा। इसके साथ ही सबसे बड़ी बात यह होगी कि कागज बचेगा तो पेड़ों की हत्या का पाप भी नहीं लगेगा, पर्यावरण की सुरक्षा भी होगी और प्रकृति भी हम पर प्रसन्न रहेगी।
हमारे जीवन की इन सभी गतिविधियों का संबंध प्रकृति से है, प्रकृति राजी होगी तो परमेश्वर भी हमसे खुश रहेगा। वर्तमान पीढ़ी को इस दिशा में दृढ़ संकल्प लेकर आगे आना होगा और छपे हुए निमंत्रण कार्ड्स की परंपरा को समाप्त करना होगा।
साहस हमें ही करना होगा, इसके लिए ऊपर से कोई नहीं आएगा। हो सकता है कुछ दंभी और अहंकारी लोग किसी भी आयोजन के लिए कार्ड की मांग करें, अपनी नाम पिपासा शांति चाहने के लिए कार्ड्स की उपयोगिता का कुतर्क दें लेकिन सच यही है कि आज के जमाने में किसी भी आयोजन के लिए कार्ड की बजाय संचार की नई विधियों से आमंत्रण दिया जाना चाहिए। हम आज सुधर जाएं तो ठीक हैं वरना आने वाला समय अपने आपको सुधार देगा।