• April 27, 2015

फटने लगा है धरती का कलेजा – डॉ. दीपक आचार्य

फटने लगा है  धरती का कलेजा  – डॉ. दीपक आचार्य

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लो फिर भूकंप आ गया, तबाही मचा गया।

जो जख्म दे गया है वह जाने कब तक हरे रहेंगे, कोई कुछ नहीं कह सकता।

राहत के छींटों और बयानों की बारिश, दौरों और घोषणाओं का दौर हर बार की तरह फिर चल पड़ा।

कोई किसी को दोष देगा, कोई पीठ थपथपाएगा। जो भूकंप पीड़ित हैं उनकी अपनी पीड़ाओं को वे जानें।

भूकंप भावी विनाश का संकेत है। धरती चेतावनी दे रही है, फिर भी हम संभलते नहीं, धरा का शोषण करते ही चले जाते हैं।

बात दो-चार-दस दिन की है, हो हल्ला होगा, होता रहेगा। फिर कोई दूसरा मुद्दा आकर गर्मी पैदा कर जाएगा। और हम सब भूल जाएंगे भूकंप की त्रासदी को।

तब हमारे लिए फिर कुछ नया होगा मसालेदार, चटपटा और चर्चाओं की चाशनी देने वाला।

भूकंप को धरती के गर्भ में आने वाले सामान्य परिवर्तनों का दौर मानकर अपने आपको समझा देना ठीक नहीं होगा।

भूगर्भीय परिवर्तन प्रकृति का नियम है लेकिन ऎसे परिवर्तन जब मानवी परिवेश, सभ्यता और संस्कृति की बरबादी करने वाले हो जाएं, तब यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नियति कुछ और चाहती है।

अन्यथा भूकंप उन निर्जन स्थलों में भी आ सकता था जहाँ जन-धन और बस्तियों की हानि नहीं होती।

यह तो सरासर ऎसा हो रहा है जैसे कि धरती कुपित होकर हमारे सामने आ खड़ी हुई है बरबादी का पैगाम लेकर। और यह चेतावनी दे रही है कि – लो कर लो, अपनी वाली, अब मैं भी नहीं छोड़ने वाली, देखते जाओ बस।

हम सभी को तहे दिल से इस सच्चाई को स्वीकार करना ही होगा कि पृथ्वी पर पापों का बोझ बढ़ गया है, कलियुग अपने पूरे यौवन के साथ हुड़दंग करने लगा है।

जब-जब भी धर्म विरूद्ध कृत्य होते हैं, मानवीय मूल्यों का संहार होता है, इंसानियत छोड़कर पशुता और आसुरी भावों का परचम लहराने लगता है, झूठ ही झूठ पसरने लगता है, लोग दुराचारी, हिंसक, भ्रष्ट, बेईमान, चोर-डकैत, शोषक और हरामखोर हो जाते हैं, अधर्म फैलता है, आदमी आदमी को खाने दौड़ता है, सारी सामाजिकता छोड़कर इंसान असामाजिक और आपराधिक हो जाता है, परायी धन-सम्पत्ति को हड़पने लगता है, धरती की मौलिक संरचनाओं को बिगाड़ने में लग जाता है, अतिक्रमण को अधिकार समझने लगता है, धर्म के प्रतीक बैल और पृथ्वी का पर्याय गायों की हत्या होती है, गौवंश का निर्मम कत्ल होता है वहाँ पृथ्वी का रूठना और कुपित होना स्वाभाविक ही है।

जब पिण्ड में विकृति आती है तब ब्रह्माण्ड की संरचना में फेरफार होता ही है। आज पिण्ड प्रदूषित मानसिकता और आसुरी कर्मों से घिरा है, अपने-पराये, धर्म-अधर्म, सत्यासत्य का कोई विवेक नहीं रहा, ऎसे में हम पृथ्वी से यह आशा कैसे कर सकते हैं कि वह चुपचाप बैठी रहकर सब कुछ यों ही देखती रहेगी।

कहा भी गया है – अपूज्या यत्र पूज्यन्ते, पूज्यानां तु व्यतिक्रम। त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयं। अर्थात जहाँ नालायकों की पूजा होती है, पूजने योग्य लोगों का निरादर होता है, वहाँ दुष्काल, मरण और भय हमेशा बने रहते हैं। और यही सब हो रहा है अपने यहाँ, उनके वहाँ।

इस लिहाज से इन प्राकृतिक आपदाओं के लिए हम सभी लोग दोषी हैं जो धर्म, सदाचार और मानवीय मूल्यों के मार्ग को छोड़ चुके हैं और विधर्मियों, असुरों और नालायकों को पनाह और आदर-सम्मान सब दे रहे हैं।

हम सभी को पता है कि हमारी आयु अब बहुत कम बची हुई है फिर भी मृत्यृ के परम सत्य के बावजूद बेखौफ होकर अधर्माचरण कर रहे हैं।

अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में हम निरन्तर पाप करते जा रहे हैं। दूसरे सारे पापों का जिक्र न भी करें तो हम रोजाना इतने सारे दोहरे-तिहरे चरित्र वाले भ्रष्ट, बेईमान, व्यभिचारी, शोषक, हरामखोर, नालायक, असामाजिक और अपराधी लोगों को नमस्कार करते हैं, चापलुसी व चरण वंदना करते हैं या उनके कामों में मदद करते हैं, और यह सब कुछ पाप की श्रेणी में आता है।

इन लोगों को नमस्कार करना भी पाप है, इनका सान्निध्य भी महापाप का भागी बनाता है। हमारे इन कुकर्मों को देखते हुए भी धरती मैया कुछ न करें, यह संभव नहीं है।

धरती को दोष न दें, सारा का सारा दोष हमारा ही है। हम जब तक यह स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक नहीं सुधरेंगे, तब तक धरा का कोप यों ही चलते रहने वाला है।

पिण्ड की जितनी शुचिता होती है उतना ब्रह्माण्ड पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी ने भूकंप, बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, बेमौसम बारिश आदि प्राकृतिक आपदाओं के जरिये हम सभी को चेता दिया है, चुनौती दे डाली है, अब संभलना हमें ही है।

धरती का शोषण रोकें, अपनी बुराइयों और पापों का शमन करें और अच्छे इंसान के रूप में जीने की कोशिश करें। हम अभी भी निष्ठुर बने रहे, नहीं सुधरे तो आने वाला समय बहुत बुरा होगा।

यह भविष्यवाणी की ही जा सकती है कि सन् 2020 तक दुनिया की आबादी आधी से भी कम रह जाएगी।

धरती को अब दोष न दें, अभी उसका प्रकोप शुरू ही हुआ है बस।

यों ही आसुरी भाव चलते रहे तो तैयार रहें भुगतने के लिए।

हमारी नालायकियों, हिंसा और अधर्म को देखकर धरती मैया का कलेजा फटा जा रहा है, चेतावनी को दरकिनार न करें  वरना ….।

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