• May 8, 2020

प्रमोशन में आरक्षण राज्य के विवेक पर निर्भर

प्रमोशन में आरक्षण  राज्य के विवेक पर निर्भर

बिहार विधानसभा की लॉबी में सभी पार्टी के दलित विधायकों नें एससी/एसटी आरक्षण के विषय पर बैठक की एवं महामहिम राष्ट्रपति व मा० प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा है।

इस पत्र में उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति को प्राप्त संवैधानिक संरक्षण एवं सामाजिक न्याय के अधिकारों के विरूद्ध माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा लगातार दिए गए निर्देशों को निरस्त करते हुए प्रतिनिधित्व आरक्षण के प्रावधान को संविधान को नौवीं अनुसूची में शामिल करने के की मांग की है।

इस 4 पन्नों के पत्र पर उद्योग मंत्री श्री श्याम रजक, पूर्व मुख्यमंत्री श्री जीतन राम मांझी, स.वि.स लालन पासवान, रामप्रीत पासवान, शिवचंद्र राम, प्रभुनाथ प्रसाद, रवि ज्योति, शशिभूषण हजारी, निरंजन राम, स्वीटी हेंब्रम सहित कुल 22 दलित विधायकों नें अपने हस्ताक्षर किये हैं।

इस पत्र में उन्होंने लिखा कि माननीय उच्चतम न्यायालय भारतीय संविधान का संरक्षक और अंतिम व्याख्याकार है।

किन्तु बहुत ही दुख कहना है कि 2017 से अब तक लगातार बारी बारी से माननीय सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्राप्त प्रतिनिधित्व आरक्षण एवं प्रमोशन में प्रतिनिधित्व आरक्षण के विरोध में निर्णय आया है।

समस्त विधायकगण इस सम्बन्ध में श्रीमान का ध्यान निम्नांकित तत्थों की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं ताकि आपके स्तर से ससमय उचित और न्यायसंगत निर्णय लिया जा सके।

भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार के अतर्गत अनुच्छेद 15.4 और 16.4 में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लिए शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में तथा सरकारी सेवाओं की नियुक्तियों में विशेष प्रावधान किया जा सकेगा।

उपर्युक्त सभी श्रेणियों को शिक्षण संस्थानों में नामाकन में तथा राज्य की सेवाओं में प्रतिनिधित्व आरक्षण एवं प्रमोशन में आरक्षण दिया जा रहा था। यहां यह धातव्य है कि इसमें आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रतिनिधित्व देने की कोई बाते नहीं कही गई है।

उत्तराखंड में भाजपा की सरकार ने 2019 में अनसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पूर्व से जारी प्रमोशन में आरक्षण को लागू नहीं करने का निर्णय लिया। इसके विरोध में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी आया था और सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को निरस्त कर दिया था।

उत्तराखंड सरकार ने उसे लाग नहीं कर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दो माननीय न्यायाधीशों श्री नागराज एवं श्री गुप्ता की बैंच ने सुनवाई करते हुए 07 फरवरी, 2020 को निर्णय दिया है कि प्रमोशन में आरक्षण लागू करने हेतु न्यायालय राज्य सरकार को कोई आदेश नहीं दे सकती है और यह मामला राज्य के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह आरक्षण लागू कर या न करें।

माननीय न्यायालय ने अपने संवैधानिक सीमा और दायित्व से अलग हटकर कहा है कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। जबकि लोग जानते है कि प्रमोशन में आरक्षण के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 16.4(क), 16.4 (ख) में है और वह मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है ।

इस पत्र के माध्यम से विधायकगणों नें कुल 12 बिंदुओं पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ट करवाया है।

समस्त विधायकगण नें राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री महोदय से पत्र में वर्णित सभी तथ्यों पर गंभीरता और सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए पूर्व से जारी आरक्षण और प्रमोशन में आरक्षण को पुनः लागू करने एवं न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित करने केलिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करने के लिए अधिसूचना Ordinance लाने और कानून बनाने की मांग की।

साथ ही उन्होंने इस विवाद को सदा के लिए सुलझाने हेतु अनसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के आरक्षण एवं प्रमोशन में आरक्षण के सभी प्रावधानों को संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने के लिए संविधान संशोधन की आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की।

उन्होंने पत्र में लिखा कि कोरोना के संकट से हमलोग भी चिंतित है एवं जान रहे हैं कि संसद सत्र आये बिना इस विषय को संविधान को नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता है परंतु पूरा अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग संशकित व अपमानित महसूस करते हुए आक्रोशित है ऐसे में तत्काल इसविषय पर आप स्वयं या भारत सरकार एक वक्तव्य देने की कृपा करेगे ताकि हमलोगों को विश्वास हो कि आने वाले संसद सत्र में इसका निराकरण हो जायेगा।

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