- September 15, 2015
पैदा ही नहीं होगी, तो कहां से मिलेगी बहन या बीवी ? – ऋतिका राय
ड्यू. काम – हर रक्षाबंधन जिन भाईयों की कलाई पर राखी बांधने वाली कोई बहन नहीं होती, या फिर हरियाणा और राजस्थान के वे पुरुष जो शादी के लिए लड़कियों की तलाश में हर उपाय करके थक गए हैं, उनको बता दूं कि वाकई लड़कियों का अकाल पड़ रहा है.
देश में किसान कहीं सूखे तो कहीं कर्ज से परेशान होकर अपनी जान ले रहे हैं. दूसरी ओर ऐसे परिवार हैं जो कभी दहेज के खर्च से डर कर तो कभी बोझ मानकर अपनी ही होने वाली बेटियों की जान ले रहे हैं. जब हम अपने इंसानी अधिकारों की सीमा लांघ कर कोई भी जान लेने की जुर्रत करते हैं, तो वह पूरी मानवता को विनाश की ओर ले जाने वाला रास्ता है.
ऐसा भी नहीं कि लड़कियों की ये कमी केवल भारत में ही है. यूरोप के विकसित माने जाने वाले पश्चिमी देशों में भी मादा भ्रूण हत्या के मामले बढ़ रहे हैं. विज्ञान कहता है कि 100 लड़कियों पर 105 लड़कों का होना सामान्य जैविक लिंग अनुपात है. जनसंख्या पर अनुसंधान करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफपीए के आंकड़े दिखाते हैं कि 90 के दशक से दुनिया के कई इलाकों में मादा के मुकाबले नर शिशुओं के जन्म में करीब 25 फीसदी की बढ़त दर्ज हुई है. जाहिर है कि यह आदर्श अनुपात से काफी दूर है.
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क्यों होते हैं बलात्कार?
तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
मादा भ्रूण हत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए दुनिया में कहीं लिंग निर्धारण टेस्ट कराने पर तो कहीं गर्भपात कराने की मनाही है. तमाम कानूनों और नियमों के बावजूद अब तक यह बात सामाजिक चेतना में घर नहीं कर पाई है कि चुन चुन कर लड़की को मारने से एक दिन सब खत्म हो जाएगा.
माना कि कई लोग लड़के के माता पिता होने पर गर्व महसूस करते हैं, लेकिन लड़का भी बहन ना होने पर खुश या गौरवान्वित है, ये मानना मुश्किल है. मां के लाडले बेटे को जब एक अदद महिला साथी या पत्नी भी ना नसीब हो तब भी क्या कोई मां उस स्थिति पर खुशी या गर्व महसूस करेगी?
आज हम जिस हाल में पहुंच चुके हैं उसे इतनी जल्दी पलटा नहीं जा सकता. लेकिन अगर वे भाई जिनको रक्षाबंधन पर अपनी सूनी कलाई सालती है या फिर वे शादी योग्य लड़के जो दुल्हन की आस में हर सही-गलत राह टटोल रहे हैं, ठान लें कि वे इस विनाशकारी सिलसिले को किसी भी हाल में आगे नहीं बढ़ने देंगे, तो सबको बेटी के स्नेह, बहन का लगाव और पत्नी के प्रेम का स्वाद पता चलेगा.