पीरियड्स लज्जा नहीं — कुमारी तानिया (कक्षा-12वी) :: मेरा सपना – कृष्णा बघर

पीरियड्स लज्जा नहीं — कुमारी तानिया  (कक्षा-12वी)  :: मेरा सपना – कृष्णा बघर

चोरसौ, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
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यह तो है प्रकृति की देन
मत समझो इसे लज्जा की देन
इन दिनों सब पीड़ा वह सह लेती
फिर भी चेहरे पर उसके एक मुस्कान सी रहती है।।

छुप छुप कर उसे रहना पड़ता है।
इन दिनों उसे क्या क्या नहीं उसे सहना पड़ता है ।।
माहवारी हो तो मंदिर मस्जिद मत जाना
घर से बाहर ही मत आना।।

बहुत ही पीड़ा से गुजरती है वो हर महिला
चाहे हो 12 साल की या हो 45 साल की।।
स्त्री की जब माहवारी आती है
तभी तो घरों में चिराग जलते है।।

———– मेरा सपना ———–

कृष्णा बघर
कक्षा-8
बघर, कपकोट

बागेश्वर उत्तराखंड

सबका होता है एक सपना, जो होता है उसका अपना,
सपना तो एक मेरा भी है, पूरा करना जो मुझे यही है,

कलम पकड़ी थी मैंने हाथों में, वह करके कुछ जज्बातों में,
उस कलम को ही अपना सपना बना लिया, उसी में अपना जीवन छुपा लिया।।

कहना था कुछ, पर कहती किससे, इसलिए मैंने दोस्ती कर ली इससे,
इससे अच्छा दोस्त मुझे मिलता कहा, और कौन है किसका यहां।।

अपने मन की सब लिख दी, इसी से बजाय कहने के यहाँ,
और किसी से लिखते लिखते मुझे याद आया, जो कविता रुप पाया।।

मैंने जो जज्बात अपने लिखे थे, तो अब तक एक कविता बन चुकी थी,
फिर सोचा मैंने ये भगवान की ही है मर्जी, अब उसी के दरबार में है अर्जी।।
यही मेरा सपना जो पूरा करना है, नाम करना है बहुत और ये जीवन संवारना है।

(चरखा फीचर)

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