नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस की जयंती– पी मधुसूदन नायडू

नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस की जयंती– पी मधुसूदन नायडू

आज़ादी आंदोलन में नेताजी पराक्रम के प्रतीक थे –प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल

वर्धा———–: महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा है कि आज़ादी के आंदोलन में नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1857 से 1947 तक आज़ादी के पराक्रम का प्रदर्शन चलता रहा। नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस उस पराक्रम के प्रती‍क थे। प्रो. शुक्‍ल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष्‍य में शनिवार, 23 जनवरी को ‘नेताजी की पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित व्‍याख्‍यान समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए बोल रहे थे। विश्‍वविद्यालय में नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस की जयंती पराक्रम दिवस के रूप में मनायी गई। यह कार्यक्रम भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की योजना ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ के अंतर्गत ग़ालिब सभागार में आयोजित किया गया। ‘नेताजी की पत्रकारिता’ पर मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता एवं जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने व्‍याख्‍यान दिया।

अपने उद्बोधन में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि भारत सरकार ने निश्चय किया है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती भारत में पराक्रम दिवस के रूप में मनायी जाए । पराक्रम दिवस का तात्पर्य हिंसा का समर्थन नहीं है। नेताजी के द्वारा आईएनए की स्थापना हिंसा का समर्थन नहीं है । किसी आततायी के विरुद्ध, किसी आक्रांता के विरुद्ध, किसी राष्ट्र पर कज्बा किए हुए विदेशी शासकों के प्रति उस देश की जनता के द्वारा किया जा रहा सशस्त्र प्रतिरोध हिंसा नहीं है। यदि यह हिंसा होती तो 1948 में पाकिस्तान के द्वारा जम्मू कश्मीर पर किए गए आक्रमण पर गांधी ने भारतीय की सेना की कार्यवाही को उचित न ठहराया होता ।

प्रो रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि नेताजी ने बहुत ही स्पष्टता के साथ कुछ बातें की थी, उनको समझने की जरूरत है कि इस देश की आज़ादी में किसी एक रास्ते मात्र का योगदान नहीं है । यह विविध दृष्टियों से भारत का जो पराक्रम प्रकट हुआ था, उस पराक्रम की स्वाभाविक परिणति है । भारत की आज़ादी न तो किसी एक दल का योगदान है, न किसी खास पद्धति का योगदान है अपितु भारत को आज़ाद होना चाहिए, हम आज़ादी से नीचे कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं, अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना होगा, उनको छुड़ाने के रास्ते कौनसे होंगे, इसपर बहस को बंद करके जब देश का जन-जन इस संकल्प के साथ सभी प्रकार के साधनों का उपयोग करता हुआ दिखने लगा तो अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं था ।

कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि नेताजी ने रेडियो संदेश के माध्‍यम से पहली बार गांधी जी को राष्‍ट्रपिता संबोधित किया। दोनों नेताओं के रास्‍ते अलग-अलग थे पर लक्ष्‍य था – भारत मॉं की आज़ादी। इन्‍होंने नया भारत बनाने के लिए भरसक प्रयास किये। संपूर्ण भारत नेताजी के पराक्रम के प्रति आदरांजलि प्रदान करता है। उन्‍होंने कहा कि नेताजी ने फारवर्ड ब्‍लाक समाचार पत्र के माध्‍यम से संपूर्ण भारत के परिदृश्‍य को सामने लाया। उन्‍होंने बंगाल के युवकों के सपनों को लेकर भी अपनी पत्रकारिता में स्‍थान दिया था।

नेताजी का ‘फारवर्ड ब्‍लाक’ आज़ादी के लिए पत्रकारिता का हथियार था:- प्रो. कृपाशंकर चौबे

विश्‍वविद्यालय के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता एवं जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने मुख्‍य वक्‍ता के रूप में ‘नेताजी की पत्रकारिता’ विषय पर कहा कि नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस ने आज़ादी के आंदोलन के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया और उन्‍होंने फारवर्ड ब्‍लाक के माध्‍यम से जनजागरूकता फैलायी।

नेताजी देश-विदेश की समस्‍याओं से जुड़े विषयों पर उम्‍दा तरीके से लिखते थे। नेताजी ने 5 अगस्‍त 1939 को राजनीतिक साप्‍ताहिक समाचार पत्र फारवर्ड ब्‍लाक निकाला और 1 जून 1940 तक उसका संपादन किया। 20 पन्‍ने के अखबार में समाचार, सामयिक टिप्पणियां, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विषयों पर लेख, पुस्‍तक समीक्षा और संपादक के नाम पत्र छपते थे। प्रो. चौबे ने कहा कि नेताजी ने ‘नीड ऑफ आवर नेशन’ संपादकीय टिप्पणी के माध्यम से पूर्ण स्‍वराज की मांग की। नेताजी मुद्रित माध्‍यमों के अलावे रेडियो के माध्‍यम से भी संदेश प्रसारित किया करते थे।

व्‍याख्‍यान के दौरान नेताजी द्वारा लिखे गये महत्‍वपूर्ण लेखों को स्‍लाइड के माध्‍यम से प्रदर्शित किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप दीपन व नेताजी के चित्र पर माल्‍यार्पण कर किया गया। यह कार्यक्रम ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन दोनो मदयमों में आयोजित किया गया। इस अवसर पर एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के नोडल अधिकारी डॉ. सुशील कुमार त्रिपाठी ने एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के परिप्रेक्ष्‍य में पराक्रम दिवस पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. धरवेश कठेरिया ने किया। कदम कदम बढ़ाए जा इस गीत से कार्यक्रम का समापन किया गया। इस अवसर पर अधिष्‍ठाता, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक और कर्मचारी प्रमुखता से उपस्थित थे।

काव्‍य संध्‍या में कवियों ने किया काव्‍य पाठ

नेताजी की जयंती के ही उपलक्ष्‍य में शनिवार की शाम 06 बजे से ग़ालिब सभागार में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल की अध्‍यक्षता में काव्‍य संध्‍या का आयोजन ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन दोनों माध्यमों से किया गया। काव्य संध्या का आयोजन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित योजना “एक भारत श्रेष्ठ भारत” के अंतर्गत किया गया। काव्‍य संध्‍या में आमंत्रित कवि योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरूण’ (रुड़की), बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून), प्रेम शंकर त्रिपाठी (कोलकाता), रास बिहारी पांडेय (मुंबई), विनोद मिश्र (मा‍रीशस), मधु शुक्‍ला (भोपाल) तथा विनोद श्रीवास्‍तव (कानपुर) ने अपनी रचनाओं का आनलाइन माध्‍यम से पाठ किया। काव्‍य संध्‍या का संयोजन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने किया। इस मौके पर विश्‍वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. अनिर्वाण घोष ने नेताजी पर लिखी बांग्‍ला कविता की आवृत्ति की।

काव्‍य संध्‍या में वरिष्‍ठ कवि योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरूण’ ने पराक्रम दिवस को समर्पित कविता ‘गीत गाता हूं मैं आज उनके लिए जो जिए भी मरे भी वतन के लिए’ का पाठ किया। मुंबई से रासबिहारी पाण्‍डेय ने ‘सच कहते हैं जब तक यारो हर नारा बेकार है, हम है पतन की ओर या उत्‍थान कर रहे हैं’ कविता सस्‍वर प्रस्‍तुत की। भोपाल से मधु शुक्‍ला ने नारी संवेदना पर ‘तुलसी मानस के राम लिखू, मॉं शक्ति दो इतनी मैं गीत देश के नाम लिखू’ कविता प्रस्‍तुत की। प्रेम शंकर त्रिपाठी ने ‘भारत माता के वंदन में अपना सर्वस्‍व लुटाया था’ कविता के साथ साथ आकांक्षा और कामना के दोहे भी सुनाए। विश्‍व हिंदी निदेशालय मारीशस के महा‍सचिव विनोद मिश्र ने ‘ध्‍वंस के आगे चलें निर्माण की बातें करें’ और ‘हर तरफ से जला आशियां देखिए, यही है वक्‍त अंधेरों को आजमाने का’ कविताओं का पाठ किया। वरिष्‍ठ पत्रकार कवि विनोद श्रीवास्‍तव ने ‘हमने भी किया नहीं अंतत: बचाव, फिर नदी अचानक सिहर ऊठी, ये कौन छू गया सांझ ढ़ले’ इत्यादि कविता की सस्‍वर प्रस्‍तुत दी। वरिष्‍ठ कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने ‘मेरी आवाज़ है बंदगी ये नहीं अनसुनी जाएगी’, ‘कुछ भी नहीं असंभव हमसे’ और गणतंत्र पर ‘अमर रहे गणतंत्र हमारा, जन की आस सुबह का तारा’ आदि कविताएं प्रस्‍तुत की।

अध्‍यक्षीय उदबोधन में विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने अपनी पांच कविताएं प्रस्‍तुत की। ‘आओ हम फिर एक नया इतिहास बनाते है, ‘बुद्ध सौगत को नमन है’, ‘चल पड़ा छोड़कर बंधनों को’, ‘अंधेरा नहीं जीतता’ और ‘धुआं धुआं’ इन रचनाओं के माध्‍यम से कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने श्रोताओं का मंत्रमुग्‍ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत मे आभार ज्ञापन विश्वविद्यालय में “एक भारत श्रेष्ठ भारत” योजना के सह नोडल अधिकारी डॉ. ज्‍योतिष पायेंग ने व्‍यक्‍त किया। काव्‍य संध्‍या में कुसुम शुक्‍ल, प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, कुलसचिव कादर नवाज़ ख़ान, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी, प्रो. के. के. सिंह, डॉ. सुशील कुमार त्रिपाठी, डॉ. जयंत उपाध्‍याय, डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्‍डेय सहित अध्‍यापक, अधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे।

संपर्क —
पी मधुसूदन नायडू
मो. 09765250189
purmamadhusudan@gmail.com

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