• June 15, 2019

नीति आयोग–राज्यों को दी जाने वाली राशि में काफी कटौती से प्रतिकुल प्रभाव —- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

नीति आयोग–राज्यों को दी जाने वाली राशि में काफी कटौती से प्रतिकुल प्रभाव —- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

नई दिल्ली ——— मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्रीजी को धन्यवाद देते हुए कहा हमें नीति आयोग के गवर्निंग काउंसिल की पंचम बैठक में आमंत्रित कर अपना सुझाव रखने का अवसर दिया।

भारत के संघीय ढाँचे में सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों की सहभागिता से समस्याओं का निराकरण करने तथा लोकोपयोगी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए बेहतर माहौल बनाने में नीति आयोग अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

बदलते हुए वैश्विक, आर्थिक, सामाजिक एवं तकनीकी परिवेश में देश के विकास के लिये समावेशी सोच एवं दृष्टि की आवश्यकता है। यह बैठक हमें अपनी परिस्थितियों पर विचार-विमर्श कर उनका समाधान ढूँढ़ने का मंच प्रदान करेगी, जिसमें केन्द्र एवं राज्यों की साझेदारी एवं समावेशी/सतत् विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

नीति आयोग द्वारा गवर्निंग काउंसिल की इस बैठक हेतु कुछ विषयों को एजेंडा में शामिल किया गया है। मुझे आशा है कि राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं, नीतियों तथा विभिन्न क्षेत्रों की रणनीतियों के साथ-साथ राज्यों द्वारा उठाये जा रहे सामयिक विषयों पर इस बैठक में सकारात्मक चर्चा होगी एवं केन्द्र तथा राज्यों के बीच महत्वपूर्ण विषयों पर आम सहमति बनेगी।

राज्यों के सामयिक विषयों पर सकारात्मक पर आम सहमति बनेगी।

गवर्निंग काउंसिल की इस बैठक हेतु परिचालित कार्यसूची के आलोक में एजेन्डा-वार विस्तृत प्रतिवेदन अलग से समर्पित किया गया है। मैं बिहार से संबंधित कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों को आपके विचारार्थ रखना चाहूँगा-

केन्द्र प्रायोजित योजना – वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा अनेक केन्द्र प्रायोजित योजनाओं का कार्यान्वयन कराया जा रहा है, जिसमें केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार का अंशदान सम्मिलित रहता है।

14 वीं वित आयोग द्वारा राज्यों को अंतरित किए जाने वाले हिस्से को 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत किए जाने की अनुशंसा को आधार मानते हुए केन्द्रीय बजट में राज्यों को दी जाने वाली राशि में काफी कटौती की गयी है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव सबसे अधिक बिहार पर पड़ा है।

केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के तहत राष्ट्रीय विकास एजेंडा से संबंधित योजनाओं में 75 प्रतिशत से लेकर 90 प्रतिशत तक अंशदान केन्द्र सरकार का रहता था तथा शेष अंशदान राज्य सरकार का होता था।

केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय विकास एजेंडा से संबंधित सभी 21 योजनाओं का वित्तीय पैर्टन 60ः40 (केन्द्रांशःराज्यांश) कर दिया गया है। कुछ केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में तो केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार का अंशदान 50ः50 कर दिया गया है।

वित्तीय पैटर्न में इस बदलाव के कारण राज्य सरकार को अपने स्रोतों से वित्तीय वर्ष 2015-16 में 4500 करोड़ रूपये, वित्तीय वर्ष 2016-17 में 4900 करोड़ रूपये, वित्तीय वर्ष 2017-18 में 15335 करोड़ रूपये एवं वित्तीय वर्ष 2018-19 में 21396 करोड़ रूपये व्यय करना पड़ा है।

स्पष्ट है कि राज्य को अपने संसाधन का एक बड़ा भाग राज्यांश के रूप में केन्द्र प्रायोजित योजनाओं पर प्रतिबद्ध करना पड़ रहा है जिससे राज्य की अपनी प्राथमिकता वाली योजनाओं के लिए कम राशि उपलब्ध हो पाती है। इसके चलते राज्य आदेयता आधारित नागरिक सुविधाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं कर पाती है।

केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार का अंशदान सम्मिलित रहने के कारण वित्तीय प्रावधान कराने, लेखा-जोखा रखने एवं अनुश्रवण में भी काफी कठिनाई होती है। इतना ही नहीं राज्य की प्राथमिकता में नहीं रहने के बावजूद भी राज्य को केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में भाग लेना पड़ता है।

इस संबंध में हमारा सुझाव होगा कि क्रेन्द्र सरकार केन्द्र प्रायोजित योजनाओं को बंद कर प्राथमिकता वाली योजनाओं का क्रियान्वयन ब्मदजतंस ैमबजवत ैबीमउम के तहत कराने का प्रावधान किया जाना चाहिए।

राज्य की प्राथमिकता की योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य सरकारों को अपने संसाधनों से राज्य स्कीम के तहत करना चाहिए।

विशेष राज्य के दर्जा की मांग- राज्य सरकार पिछले कई वर्षों से 10 प्रतिशत से अधिक आर्थिक विकास दर हासिल करने में सफल रही है, जो राष्ट्रीय विकास दर से अधिक है। इसके बावजूद भी राज्य की प्रति व्यक्ति आय अन्य विकसित राज्यों एवं राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी कम है।

इस राज्य को देश के अन्य विकसित राज्यों तथा राष्ट्रीय औसत को प्राप्त करने हेतु राज्य सरकार द्वारा लंबे समय से बिहार के लिए विशेष दर्जा देने की मांग केन्द्र सरकार से किया जाता रहा है।

इस संदर्भ में, मैं केन्द्र सरकार द्वारा गठित रघुराम राजन समिति की अनुशंसाओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ, जिसमें राज्यों के लिए समग्र विकास सूचकांक प्रस्तुत किया गया था, जिसके अनुसार देश के 10 सर्वाधिक पिछड़े राज्यों को चिन्हित किया गया था, जिसमें बिहार राज्य भी सम्मिलित है।

इस समिति के प्रतिवदेन में यह भी उल्लेख किया गया था कि सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में विकास की गति बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार अन्य रूप में केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करा सकती है।

यदि अन्तर-क्षेत्रीय एवं अन्तर्राज्यीय विकास के स्तर में भिन्नता से संबंधित आँकड़ों की समीक्षा की जाए तो पाया जायेगा कि कई राज्य विकास के विभिन्न मापदंडों यथा प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, सांस्थिक वित एवं मानव विकास के सूचकांकों, पर राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं।

उदाहरण के रूप में बिहार का प्रतिव्यक्ति आय वर्ष 2017-18 में 28,485 रूपये था जो कि भारत का औसत प्रतिव्यक्ति आय 86,668 रूपये का मात्र 32.86 प्रतिशत था। राज्य में वर्ष 2005 में प्रतिव्यक्ति विद्युत उपभोग मात्र 76 यूनिट था जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 280 यूनिट हो गया, जबकि राष्ट्रीय औसत 1149 यूनिट था।

अगर मानव विकास के सूचकांकों को देखा जाये तो पाया जायेगा कि तेजी से प्रगति के बावजूद अभी भी हमे लम्बी दूरी तय करनी है। वर्ष 2005 में राज्य में मातृ मृत्यु दर (प्रति लाख जनसंख्या पर) 312 था जो वर्ष 2016 में घटकर 165 हो गया है जबकि राष्ट्रीय औसत 130 है।

वर्ष 2005 में शिशु मृत्यु दर (प्रति एक हजार जनसंख्या पर) 61 था जो वर्ष 2016 में घटकर 38 हो गया है पर अभी राष्ट्रीय औसत जो 34 है से हम पीछे हंै। इसके अतिरिक्त राज्य का जनसंख्या घनत्व 1106 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 382 है।

राज्य में 5 वर्ष आयु से कम के बच्चों में स्टंटिंग की समस्या 48.3 प्रतिशत पाई गई है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 38.4 प्रतिशत है। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि यद्यपि बिहार ने हाल के वर्षों मे अधिकांश क्षेत्रों में प्रगति की है परन्तु अभी भी विकास के सूचकांको में वह राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है।

तर्कसंगत आर्थिक रणनीति वही होगी जो ऐसे निवेश और हस्ततांतरण पद्धति को प्रोत्साहित करे जिससे पिछड़े राज्यों को एक निर्धारित समय सीमा में विकास के राष्ट्रीय औसत तक पहुँचने में मदद मिले। हमारी विशेष राज्य के दर्जे की मांग इसी अवधारणा पर आधारित है। हमने लगातार केन्द्र सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग की है।

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने से जहाँ एक ओर केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के केन्द्रांश में वृद्धि होगी जिससे राज्य को अपने संसाधनों का उपयोग अन्य विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं में करने का अवसर मिलेगा वही दूसरी ओर विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों के अनुरूप केन्द्रीय जी॰एस॰टी॰ में अनुमान्य प्रतिपूर्ति मिलने से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, उद्योग स्थापित होंगे, रोजगार के नये अवसर सृजित होंगे तथा लोगों के जीवन स्तर में सुधार आयेगा।

7 निश्चय एवं सुशासन के कार्यक्रम: न्याय के साथ विकास के सिद्धान्त पर राज्य सरकार द्वारा अपने सीमित संसाधनों से सभी प्रक्षेत्रों को दृष्टिगत रखते हुए अनेक विकासात्मक योजनाओं का क्रियान्वयन कराया जा रहा है।

हमारी विकास रणनीति के कुछ महत्वपूर्ण स्तंभ हैं—-

आधारभूत संरचना विकास, कृषि रोड मैप, कौशल विकास मिशन, औद्योगिक विकास, कमजोर वर्गों का कल्याण, बिहार विकास मिशन एवं 7 निश्चय।

विकसित बिहार के 7 निश्चय के तहत राज्य सरकार की प्राथमिकता है कि सभी राज्यवासियों को न सिर्फ मूलभूत सुविधाएँ यथाः पेयजल, शौचालय एवं बिजली उपलब्ध हो बल्कि आधारभूत संरचनाओं यथा सड़क, गली-नाली, पुल आदि का भी विस्तार हो।

राज्य सरकार युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सक्षम बनाने तथा उनके लिए उच्च, व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास की व्यवस्था करने के संकल्प पर कार्य कर रही है।

इन योजनाओं को सार्वभौमिक स्वरूप दिया गया ताकि इसका लाभ बगैर किसी भेद-भाव के सभी क्षेत्रों एवं वर्गों के लोगों को प्राप्त हो सके। विकास कार्यक्रमों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के अभियान भी चलाये जा रहे हैं। शराबबंदी को दृढ़तापूर्वक लागू करते हुए नशामुक्ति का अभियान चलाया जा रहा है। बाल-विवाह और दहेज-प्रथा के खिलाफ मुहिम जारी है।

राज्य सरकार अपने 7 निश्चय कार्यक्रम के तहत हर घर नल का जल उपलब्ध कराने की योजना का कार्यान्वयन करा रही है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य के सभी नागरिकों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना है।

इस कार्यक्रम के तहत गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के माध्यम से जलापूर्ति संबंधी योजनाओं का कार्यान्वयन कराया जा रहा है तथा अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत के वार्ड समिति के माध्यम से इस योजना का कार्यान्वयन सफलतापूर्वक कराया जा रहा है।

शहरी क्षेत्रों में भी नगर निकायों के माध्यम से इस योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। अप्रैल 2020 तक सभी घरों में नल का जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। 7 निश्चय कार्यक्रम के तहत घर तक पक्की नाली गलियां योजना के अन्तर्गत सभी गाँव और शहरों में घर तक पक्की गली एवं नालियों का निर्माण कराया जा रहा है।

हर घर बिजली निश्चय के अन्तर्गत राज्य के सभी इच्छुक परिवारों को विद्युत का संबंध गत वर्ष ही उपलब्ध करा दिया गया है।

बिहार पुनर्गठन अधिनियम-2000 के प्रावधानों को लागू किया जाना- बिहार पुनर्गठन अधिनियम-2000 में यह प्रावधान है कि विभाजन के फलस्वरूप बिहार को होने वाली वित्तीय कठिनाईयों के संदर्भ में एक विशेष कोषांग उपाध्यक्ष, योजना आयोग के सीधे नियंत्रण में गठित होगा और यह कोषांग बिहार की आवश्यकताओं के अनुरूप अनुशंसायें करेगा। इस वैधिक प्रावधान के तहत राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ सहायता पूर्व के वर्षों में प्राप्त हुई है।

पूर्व में योजना आयोग के द्वारा राष्ट्रीय सम विकास योजना के अन्तर्गत विशेष अनुदान उपलब्ध कराया गया था और बाद में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (ठत्ळथ्) के अन्तर्गत भी बिहार को विशेष अनुदान उपलब्ध कराया गया था। अब योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग कार्यरत है।

अतः अब नीति आयोग को ही इस वैधिक प्रावधान की मूल अवधारणा को अक्षरशः लागू करने की जिम्मेवारी निभानी चाहिए तथा बिहार को विशेष अनुदान दिया जाना चाहिए।

शिक्षकों का वेतन—वित्तीय वर्ष 2018-19 से सर्वशिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान एवं शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम को एकीकृत करते हुए समग्र शिक्षा कार्यक्रम लागू किया गया है। वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा समग्र शिक्षा के तहत शिक्षकों के वेतन मद में मिलने वाली राशि में भारी कटौती की गयी है।

पहले प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय के शिक्षकों के लिए प्रतिमाह 22500 रूपये प्रति शिक्षक की दर से राशि केन्द्र सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती थी जिसे घटाकर प्राथमिक विद्यालय के शिक्ष्कों के लिए 15000 तथा मध्य विद्यालय के शिक्षकों के लिए 20000 रूपये निर्धारित किया गया है एवं माध्यमिक शिक्षकों के लिए 25000 रू॰ प्रतिमाह वेतन निर्धारित किया गया है जबकि राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त इन शिक्षकों का औसत मासिक वेतन 30000 रू॰ है।

वर्ष 2018-19 एवं 2019-20 में भारत सरकार द्वारा क्रमशः 85000 एवं 89000 कार्यरत शिक्षकों का वेतन भी स्वीकृत नहीं किया गया है। इस कटौती के कारण 7000 करोड़ रूपये का वित्ती बोझ राज्य सरकार पर पड़ रहा है। हाल के दिनों में शिक्षकों के वेतन में भी बढ़ोतरी हुई है, जिसके फलस्वरूप आने वाले वर्षों में यह राशि और बढ़ने की संभावना है।

हमारी मांग है कि समग्र शिक्षा कार्यक्रम के तहत केन्द्र सरकार से शिक्षकों के वेतन मद में पूर्व से मिल रही राशि में कोई कटौती नहीं की जाए बल्कि शिक्षकों के वेतन एवं भत्ते में हुई बढ़ोत्तरी को ध्यान में रखते हुए तथा राज्य में शिक्षा का अधिकार अधिनियम शत-प्रतिशत लागू करने हेतु शत-प्रतिशत वित्तीय मदद राज्य को मिलनी चाहिए।

पेंशन योजना- केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा एक निश्चित आय वाले व्यक्तियों के लिए विभिन्न तरह की पेंशन योजनाएं यथा-इंदिरा गांधी नेशनल वृद्धावस्था पेंशन, इंदिरा गांधी विधवा पेंशन योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय निःशक्तता पेंशन योजना संचालित है, जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा इन्दिरा गाँधी नेशनल वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए 50 प्रतिशत का अंशदान दिया जाता है तथा अन्य पेंशन योजनाओं के लिए 75 प्रतिशत का अंशदान केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाता है।

यहां मैं यह बताना चाहूंगा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत कुल पेंशनधारियों की संख्या लगभग 45 लाख है, जबकि केन्द्र सरकार द्वारा मात्र 29.90 लाख पेंशनधारियों के लिए ही अंशदान की राशि उपलब्ध करायी जाती है, शेष पेंशनधारियों के लिए समस्त राशि राज्य सरकार को अपने संसाधनों से वहन करना पड़ता है, जिसका प्रतिकूल असर राज्य की अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर पड़ता है।

इस संबंध में केन्द्र सरकार से मेरी मांग है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत आच्छादित सभी पेंशनधारियों के लिए राशि उपलब्ध करायी जाए।

बाढ़ एवं सूखे की स्थिति- बिहार एक ऐसा राज्य है जो नियमित अंतराल पर किसी वर्ष बाढ़ से तो किसी वर्ष सूखे से उत्पन्न प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होता है। नेपाल एवं अन्य राज्यों से उद्भूत होने वाली नदियों से प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण भौतिक एवं सामाजिक आधारभूत संरचना में हुए नुकसान की भरपाई हेतु बिहार को अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ता है।

इस तरह की बाढ़ आने के कारणों पर बिहार का कोई नियंत्रण नहीं है, जिसके फलस्वरूप राज्य को प्रत्येक वर्ष बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है और बाढ़-राहत, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण कार्यों पर काफी राशि व्यय होती है। गंगा बेसिन के उपरी राज्यों में निर्मित बांधों, बराजों एवं अन्य संरचनाओं के चलते नदी के प्रवाह में कमी आई है।

पहाड़ी क्षेत्र में वनों के क्षरण एवं खनन गतिविधियों ने नदी के स्वाभाविक प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जिसके कारण मैदानी क्षेत्रों में गाद अधिक मात्रा में पहुँच रही है। इससे बिहार में बाढ़ की तीव्रता एवं व्यापकता में वृद्धि हुई है। सोन नदी के मामले में भी पड़ोसी राज्यों- मध्य प्रदेश एवं उ्त्तर प्रदेश के द्वारा कभी भी जल बँटवारे से संबंधित बाणसागर समझौते (1973) का अनुपालन नहीं किया गया है।

जब भी सोन नदी बेसिन में अधिक वर्षा होती है तो बाण सागर एवं रिहन्द बांध से अचानक अत्यधिक पानी छोड़ दिया जाता है जिसके फलस्वरूप बिहार में बाढ़ आती है और नुकसान होता है। अतः राज्यों की हिस्सेदारी से संबंधित मानदंडों के निर्धारण के दौरान इन बाह्य कारणों का समावेशन किया जाना चाहिए।

बिहार राज्य बाढ़ अथवा सुखाड़ की समस्या से कम या अधिक प्रायः प्रत्येक वर्ष प्रभावित होता है। अनुभव यह बताता है कि बिहार में पहले 1200-1500 मिमी वर्षा प्रति वर्ष हुआ करती थी। प्डक् बिहार शाखा के अनुसार राज्य में पिछले 30 वर्षो का औसत वर्षापात 1017 मिलीमीटर है।

अगर हम पिछले 11 वर्षों का औसत वर्षापात देखें तो यह 884 मिलीमीटर ही है। पिछले वर्ष का औसत वर्षापात तो मात्र 771.3 मिलीमीटर रहा है। इसके साथ हीं विगत वर्षों में बिहार में मानसून के आगमन में भी विलम्ब देखा गया है।

अन्य आपदाओं की तुलना में सुखाड़ का कुप्रभाव काफी लम्बे समय तक रहता है। सुखाड़ के कारण कृषि उत्पादन, वन संपदा, पशु एवं मत्स्य संसाधन, भू-गर्भ जलस्तर एवं जल के अन्य सतही जलस्रोत जैसे-जलाशय, झील, नहर इत्यादि बुरी तरह प्रभावित होते हैं।

मैं यहां यह भी बताना चाहता हूं कि 14वें वित्त आयोग के आकलन एवं अनुशंसा के आलोक में राज्य आपदा मोचन कोष में बिहार का अंश मात्र 4.2 प्रतिशत निर्धारित है, जबकि महाराष्ट्र को 13.4, राजस्थान को 10 प्रतिशत, मध्य प्रदेश को 7.9 प्रतिशत, तामिलनाडु को 6.1 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश को 6.1 प्रतिशत तथा गुजरात को 6.4 प्रतिशत अंश दिया गया है।

राज्यों की तुलना में बिहार में आपदाओं की अधिकता, तीव्रता एवं इससे होने वाली क्षति अधिक व्यापक हैं। वर्ष 2015-16 मंे राज्य सरकार के द्वारा 1293 करोड़ रूपये आपदा प्रबंधन पर खर्च किया गया था, जबकि मात्र 469 करोड़ रूपये का प्रावधान राज्य आपदा मोचन कोष के अंतर्गत था।

वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार के द्वारा 1392 करोड़ रूपये आपदा प्रबंधन पर खर्च किया गया, जबकि राज्य आपदा मोचन कोष में मात्र 492 करोड़ रूपये का प्रावधान राज्य आपदा मोचन कोष के अंतर्गत था।

वर्ष 2017-18 में राज्य सरकार के द्वारा 4382 करोड़ रूपये व्यय किया गया, जबकि इस कोष में मात्र 517 करोड़ रूपये का प्रावधान है। मेरा अनुरोध होगा कि राज्य आपदा मोचन कोष की राशि में राज्यों की आवश्यकता के अनुसार केन्द्र सरकार वृद्धि करे तथा इस कोष में बिहार के आपदा प्रवणता को ध्यान में रखते हुए इस राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ाया जाय।

वर्ष 2015 में अनुग्रह अनुदान (ळतंजनपजवने त्मसपम.िळत्) की अधिसीमा राज्य आपदा मोचन कोष के आवंटन का 25 प्रतिशत निर्धारित कर दी गई। बिहार जैसे राज्य में बाढ़ एवं सुखाड़ जैसी आपदाओं से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं।

अनुग्रह अनुदान पर अधिसीमा लागू रहने के कारण आपदा पीड़ितों को अनुग्रह अनुदान उपलब्ध कराने के लिए राज्य को राज्य निधि से ही एक बड़ी राशि का व्यय करना पड़ रहा है।

मेरा अनुरोध होगा कि अनुग्रह अनुदान उपलब्ध कराने हेतु राज्य आपदा मोचन कोष के 25 प्रतिशत की अधिसीमा को शिथिल करते हुए वर्ष 2015 के पूर्व की भांति जरूरत के मुताबिक राज्य को राशि मिलनी चाहिए।

कृषि से संबंधित बैक ऋण एवं बीमा-राज्य के कृषकों द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड योजना एवं अन्य योजनाओं के तहत बैंकों से खेती करने हेतु समय-समय पर कृषि ऋण लिए जाते हैं। बैंक इस तरह के ऋण के लिए अनिवार्य रूप से प्रधानमंत्री कृषि बीमा के तहत बीमा करते हैं एवं इसके लिए किसानों को अतिरिक्त प्रीमियम देना पड़ता है।

यहां उल्लेखनीय है कि इस राज्य में बिहार राज्य फसल सहायता योजना लागू की गयी है, जिसके तहत किसानों को उपज में ह्रास होने पर निःशुल्क वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

राज्य सरकार की अपेक्षा है कि किसानों को कृषि कार्य हेतु ऋण प्राप्त करने हेतु बीमित होने की शर्त से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि राज्य के किसानों को अतिरिक्त प्रीमियम का वित्तीय भार नहीं उठाना पड़े एवं राज्य सरकार को कृषि बीमा योजना में प्रीमियम की राशि का अंशदान न देना पड़े। केन्द्र सरकार के स्तर पर इस संबंध में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना- यह बड़ी खुशी की बात है कि भारत सरकार द्वारा कृषकों की आय को बढ़ाने हेतु वित्तीय वर्ष 2018-19 से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना लागू की गयी है। इस योजना के तहत वैसे किसानों को ही आर्थिक मदद मिल पाती है, जो भू-स्वामी हैं। बिहार में यह देखा गया है कि बहुत सारे भू-स्वामी स्वयं खेती नहीं करते हैं बल्कि अपने जमीन को पट्टे पर अथवा बटाईदारी के तहत दूसरे किसानों को दे देते हैं।

बिहार सरकार कृषि से संबंधित सभी योजनाओं विशेष रूप से डीजल अनुदान, कृषि इनपुट, बिहार राज्य फसल सहायता योजना जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में रैयत एवं गैर रैयत किसानों को समान रूप से वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। इस परिप्रेक्ष्य में हमारा सुझाव है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत गैर रैयत (बटाईदार एवं जोतेदारों) किसानों को भी शामिल किया जाए, ताकि वास्तविक रूप से खेती करने वाले किसानों को इस योजना का लाभ मिल सके।

मानदेय का पुनरीक्षण एवं वित्तीय भार का वहन- केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु योजना की मार्गदर्शिका के अनुसार अनेक कर्मियों को संविदा पर बहाल किया जाता है।

उदाहरण के तौर पर समेकित बाल विकास कार्यक्रम के तहत आंगनवाड़ी सेविका/सहायिका, मध्याह्न भोजन के तहत रसोईया आदि। समय-समय पर इन कर्मियों द्वारा अपने मानदेय को बढ़ाने की माँग की जाती है। बड़े हर्ष की बात है कि भारत सरकार द्वारा आंगनवाड़ी केन्द्रों में कार्यरत सेविका एवं सहायिका के मानदेय में वृद्धि की गयी है।

लेकिन मध्याह्न भोजन योजना के तहत कार्यरत रसोईया के मानदेय में वृद्धि नहीं की गयी है, जिसके फलस्वरूप उनमें काफी असंतोष है और वे बराबर अपने मानदेय बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। इसका कुप्रभाव मध्याह्न भोजन योजना पर भी पड़ता है।

मेरा अनुरोध होगा कि आंगनवाड़ी सेविका/सहायिका की भांति रसोईया के मानदेय में वृद्धि की जाए एवं इसका पूर्ण वित्तीय भार केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाए।

राज्य अंतर्गत राष्ट्रीय उच्च पथों का रख-रखाव- राज्य से गुजरने वाली राष्ट्रीय उच्च पथों की स्थिति बेहद खराब होने के कारण वर्ष 2006-07 से 2010-11 तक की अवधि में राज्य सरकार की निधि से 997.12 करोड़ रूपये की राशि का व्यय पथों के जीर्णोद्धार हेतु किया गया है। इस राशि की प्रतिपूर्ति हेतु कई बार भारत सरकार के पथ परिवहन एवं उच्च पथ मंत्रालय से अनुरोध किया गया है। पुनः अनुरोध है कि इस राशि की प्रतिपूर्ति करा दी जाय।

स्पेशल प्लान (ठत्ळथ्)- 12वीं पंचवर्षीय योजना अंतर्गत भारत सरकार द्वारा राज्य के लिए पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बी0आर0जी0एफ0) के तहत स्पेशल प्लान अंतर्गत ₹12000.00 करोड़ स्वीकृत किया गया, जिसके तहत योजना आयोग, वर्तमान में नीति आयोग द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 तक ₹11088.18 करोड़ रू0 राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जा चुका है।

मेरा अनुरोध होगा कि शेष राशि ₹911.82 करोड़ रू0 भी इस राज्य को शीघ्र उपलब्ध करा दिया जाए।

कृषि उत्पादन बाजार समिति अधिनियम का निरसन- राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2006 में बिहार कृषि उपज बाजार (निरसन) अधिनियम लागू किया गया। इसके साथ ही राज्य के अधीन सभी बाजार समितियों एवं बाजार पर्षद को विघटित कर दिया गया। बाजार समितियों को सरकारी बाजार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।

राज्य में कृषि उपज की खरीद बिक्री के लिए न तो किसी प्रकार की लाईसेन्स की जरूरत है न ही किसी प्रकार का शुल्क आरोपित किया जाता है। इससे एक स्वतंत्र कृषि बाजार विकसित हो रहा है।

राज्य सरकार फिर से कृषि बाजार को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस नहीं कर रही है। सरकारी कृषि बाजारों के विकास के लिए राज्य सरकार अपने संसाधन का उपयोग कर रही है।

वर्तमान में भारत सरकार द्वारा तैयार किये गए माॅड्ल। च्डब् ।बज की एक प्रमुख अवधारणा कृषि बाजार को नियंत्रित करने की है। बिहार पुराने बाजार नियामक व्यवस्था को वापस लाये बिना, बिहार राज्य में आधुनिक कृषि विपणन प्रणाली विकसित करना चाहता है।

कृषि बाजार को नियंत्रित किए बिना, भारत सरकार की माॅड्ल। च्डब् ।बज द्वारा बिहार में कैसे आधुनिक कृषि विपणन प्रणाली स्थापित की जा सकती है, के संबंध में केन्द्र सरकार को अपनी रणनीति से अवगत कराना चाहिए।

संपर्क
बिहार सूचना केंद्र, नई दिल्ली

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